नेट पर हिन्दी साहित्य ससीमित संभावनाएं और भविष्य रखती है इसमे कोई द्विविधा नहीं होनी चाहिए। लेकिन अभी से इसकी तुलना सैकड़ों वर्षों से स्थापित साहित्य से करना उचित नहीं लगता है।ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक ऐसा मंच है जिसने रचनाकारों मे प्रतिद्वंद्विता और द्वेष कम कर सहयोगात्मक विमर्श को जन्म दिया है और भौगोलिक दूरियों की वर्जनाएं तोड़ते हुए विभिन्न विचारों, संस्कृतियों और रचनात्मकता को वैश्विक सह अस्तित्व दिया है।ब्लागिंग के इस दौर मे अकादमिक साहित्य से तुलना करते हुए कोई भी निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी !"
हिंदी ब्लोगर रंजित कुमार का मानना है कि "सरोकारी लेखन की पहली शर्त है- मानव-मूल्यों में घोर आस्था और सर्जना की तीव्र भूख, लेकिन अधिकतर ब्लॉग-लेखकों में लेखन का उत्साह तो दिखता है, लेकिन साहित्यिक-मर्म के सहभागी बनने की इच्छा कम-ही दिखती है। यही कारण है कि बहुत-से संभावनाशील ब्लॉग-लेखक हतोत्साह होकर यहां से विदा भी ले रहे हैं। टिप्पणी-लालसा और टिप्पणियों के लेन-देन की जो कहानी अभी चल रही है, वह स्वस्थ्य और स्वच्छ नहीं है। लेकिन मुझे भी विश्वास है कि एक दिन ब्लॉग उत्कृष्ट साहित्य सृजन का मंच बनकर रहेगा। धीरे-धीरे... !" जबकि ब्लोगर सुशील वाक्लिवाल के इस सन्दर्भ में विचार कुछ इसप्रकार है "यदि साहित्य का मतलब धीर-गंभीर और वजनदार शैली में मुंशी प्रेमचंद या उन जैसे साहित्यकारों के लिखे को ही माना जावे तो शायद यह पूरी तरह से कभी भी संभव नहीं हो सकेगा । मेरी सोच में तो ब्लाग्स सिर्फ साहित्य मात्र का प्रतिनिधित्व करने वाला माध्यम नहीं है बल्कि वो सब कुछ जो हिन्दी भाषा में लिखा व पढा जा सकता है सभीका संयुक्त रुप से प्रतिनिधित्व करने वाला माध्यम है और आगे भी यह इसी रुप में कायम रहेगा ।"
जय कुमार झा का कहना है कि "साहित्य का भी असल मकसद सामाजिक विकाश तथा संवेदनाओं का विस्तार ही है.......और आज यह काम ब्लॉग जगत के द्वारा बखूबी किया जा रहा है.......हमसब सामाजिक प्राणी हैं इसलिए मैं तो सामाजिक सरोकार और समाज के उत्थान से सम्बंधित साहित्य का ही पक्षधर हूँ ..... !" डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक का मानना है कि "साहित्य के पुरोधा गण ब्लॉग को चाहे जितना भी कोस लें, पर भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमि को जितना उर्वर इस नए माध्यम के द्वारा बनाया जा रहा है, उतना साहित्य के अन्य माध्यमों के द्वारा नहीं।"
जबकि इसी विषय पर युवा ब्लॉग लेखक कौशलेन्द्र का कहना है कि "कोई भी चीज़ अब किसी वर्ग विशेष की बपौती नहीं रह गयी है. दूसरी बात यह कि ब्लॉग-साहित्य (यदि साहित्य शब्द पर पुरोधा लोगों को आपत्ति हो तो ब्लॉग-सन्देश ) अपने उद्देश्यों को पूरा कर पाने में सक्षम हो चुका है......वे उद्देश्य जो किसी साहित्य के होने चाहिए. ब्लागी-कलम के सिपाही अपना उत्तरदायित्व निभा पा रहे हैं ...यही संतोष जनक बात है .....रही बात प्रमाण-पत्र की ......तो उसकी मैं आवश्यकता इसलिए नहीं समझता कि एकलव्य के पास कोई डिग्री नहीं थी, दूसरे यह डिग्री देने के लिए अधिकृत कौन है ? .......सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट के हिसाब से जो साहित्य का उद्देश्य पूरा नहीं कर पायेंगे वे स्वयं काल-कलवित हो जायेंगे....जो फिटेस्ट होगा वही उभर कर सामने आ जाएगा .....अब कोई पुश्तैनी थुपा-थुपी नहीं चल पायेगी.साहित्य में अब कड़ी प्रतिस्पर्धा होने वाली है क्योंकि आधुनिक तकनीक ने हर किसी को मैदान में आने की सुविधा दे दी है ...इसलिए ब्लॉग साहित्य से सुस्थापित पुरोधाओं का घबडाना स्वाभाविक है .....अब रही बात स्वीकृति की और मान्यता की .......सक्षमता को किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती ......और जन सामान्य की मान्यता से बड़ी कोई मान्यता नहीं होती. सूर ..कबीर ...तुलसी ...रसखान ....आदि "लोकमान्य" पहले हुए .........."साहित्यमान" बाद में हुए . ब्लॉग को अपने दम-ख़म पर विकसित होना और सुस्थापित होना है ...किसी की बैसाखियों की आवश्यकता उसे नहीं है. जहां तक भाषा का प्रश्न है ...यह तो एक बहती हुयी नदी है ...इसे रोका नहीं जा सकता ..यह अपना रास्ता स्वयं बना लेगी. परिष्कृत भाषा का अपना महत्त्व है ...पर उसे थोपा नहीं जा सकता .....जब आप किसी पर उसके आचरण के लिए सत्यम ब्रूयात नहीं थोप सकते तो यह तो भाषा है जो स्वयं विकसित होती है ......थी तो परिष्कृत भाषा हमारे पास ...संस्कृत का क्या हाल है आज ? हाँ कुछ मर्यादाओं के पालन के साथ भाषा को विकृत होने से बचाने का प्रयास अवश्य करना है....तो यह कार्य प्रतिस्पर्धा की धार स्वयं कर लेगी. हमें तो अपना काम करना है ........करने से पहले उसे पहचानना है ....और हमारा कार्य है पहरेदारी जिसे हमने पहचान लिया है ...अब कोई भी शक्ति कोई भी तिरस्कार कालजयी साहित्य को ब्लॉग के खेतों में अंकुरित ...पल्लवित ....पुष्पित होने से रोक पाने में सक्षम नहीं है. !"
इस सन्दर्भ में व्यंग्यकार और हिंदी के प्रतिष्ठित ब्लोगर अविनाश वाचस्पति कहते हैं कि "साहित्य वो जिससे सबका हित सधे, चाहे वो साहित्यकार हो, ब्लॉगर हो या पाठक हो, कार में बैठा हो अथवा बेकार हो, पैदल चल रहा हो या साईकिल पर सवार हो, पढ़ रहा हो या पेट को भरने की उधेड़ बुन में लगा हो। मतलब मेरे कहने का यही है कि जिससे सबका हित सधे, वही साहित्य। चाहे पुस्तक में पढ़े, चाहे पत्रिका पढ़े, चाहे अखबार भी न पढ़े, सिर्फ रेडियो टी वी ही सुने। पर दिमाग उसका चले, खूब चले। मन में अच्छाई की तरंगें उठें, कलम से अच्छे अच्छे विचार जन्म लें, जो कीबोर्ड से लिखें, वे भी सच्चा लिखें और जो कलम से लिखें वे भी नम होकर लिखें। सख्त न हों, दरख्त भावना रखें। जैसे पेड़ सबको छाया देते हैं, साहित्यकार या ब्लॉगर उत्तम विचार दें और इस सबके लिए बहुत जरूरी है कि हिन्दी ब्लॉगिंग को प्राथमिक कक्षा से एक विषय के तौर पर लिया जाए, जिसका उत्तरोत्तर कक्षाओं में विस्तार किया जाए, पूरे सामाजिक सरोकार को जिया जाये। जिससे हर मन में जिम्मेदारी की भावना बने। वही भावना हिन्दी ब्लॉगिंग को नया मीडिया रूपी पांचवें खंबे के बतौर सुस्थापित करेगी। बस इतनी ही चाहना है मेरी। न तेरी गलत, न मेरी सही। खोल दें ऐसी बही। हिन्दी ब्लॉगिंग की बहा दें नदी। जो समुद्र बन जाए फिर बादलों के जरिए सबके तन मन को भिगो जाए, सरसा जाए, हर मन को हर्षा जाए। "
वाणी गीत मानती है कि "ब्लॉगिंग विकास की राह पर है ..ब्लॉग पर प्रकाशित साहित्य भी कम नहीं है ...क्या साहित्यिक पत्रिकाओं में संस्मरण , यात्रा वृतांत नहीं छपते ? वही यदि ब्लॉग पर लिखा जा रहा है तो उसे स्वान्तः सुखाय ही कह देना उचित है ?"
प्रवीण त्रिवेदी कहते हैं कि "ब्लॉग सामन्य अभिव्यक्ति से लेकर विशेषज्ञ अभिव्यक्ति का माध्यम है | देखा जाए तो यह अंतर बना रहेगा .......जाहिर सी बात है तुलनात्मक दृष्टि से ब्लॉग्गिंग कभी भी साहित्य की तरह नहीं हो सकती है ......पर लोकतांत्रिक होने के कारण जल्द ही उम्दा साहित्य भी यहाँ देखने को मिल सकता है| हाँ ऐसी बातों को तुरत-फुरत हवा में उड़ा देना भी उतना जरूरी नहीं अक्सर समालोचना गंभीर चीजों की ही होती है .....अतः इतनी गंभीरता ब्लॉग्गिंग में महसूस की जा रही ......यह क्या कोई कम है ? " वरिष्ठ ब्लॉग लेखिका निर्मला कपिला मानती हैं कि "अगर देखा जाये तो सभी पत्रिकायें भी तो श्रेष्ठ साहित्य लिये हुये नही होती फिर ब्लाग तो बहुत विसतरित मंच है। आज नही तो कल सहित्य के पुरोधा इसे जान लेंगे । अभी शायद उन्हें कम्प्यूटर का ज्ञान नही है।"