आज भले ही हिंदी साहित्य ब्लॉग पर अपनी शैशवास्था में हो पर आने वाला समय निश्चित रूप से उसी का है। वर्तमान में हिंदी के साहित्यकारों की पहुंच भी इन ब्लॉगों पर लगभग 10 प्रतिशत के आसपास ही है। लेकिन इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की बढ़ती संख्या आश्वस्त  करती है कि हिंदी का दायरा अब देश की सीमाएं लांघकर दुनिया भर में अपनी पैठ बना रहा है। साहित्य की तरह ही  ब्लॉग लेखन भी सृजनात्मकता के दायरे में आ चुका है  , इसका उद्देश्य  "स्वान्त:सुखाय" नही रहा, इसके केंद्र  में  मनुष्य की सामूहिक चिंताएं आ गयी है और  व्यक्तिगत मनोविनोद, जय-पराजय, सुख-दुख से ऊपर  सामूहिक प्रेम, बन्धुत्व, स्वतंत्रता और समानता का साहित्य इसपर प्रस्तुत किया जा रहा है  !नये मूल्यों  के अनुरूप वर्ग, वर्ण  और जातियों के बीच की दूरियां घटाई जा रही है ।


इसपर स्त्री-पुरूष सम्बन्धों की परिभाषाएं बदली है,  लिंगगत समानता आई है ।  सामाजिक सरोकार बढे हैं ।  भाषा की दृष्टि से  कठिन शब्दों का प्रचलन कम हुआ है । विधा की दृष्टि से कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, संस्मरण, यात्रावृत्त आदि विधाएं इसपर  बदस्तूर जारी है ।

ब्लॉग पर साहित्य की सार्थकता के सन्दर्भ में हिंदी के वहुचर्चित व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय का मानना है कि "ब्लॉग तो एक माध्यम है और आप यह भी जानते हैं की जैसे पत्रिकाओं में बकवासी साहित्य भी प्रकाशित होता है वैसे ही ब्लॉग भी बहुतों के लिए दिल बहलाव का माध्यम है -- कुछ भी , चिंतन विहीन, सतहीय भी बहुत आता है ब्लॉग के माध्यम से यदि आप यह उद्देश्य मानते है --उद्देश्य "स्वान्त:सुखाय" नही रहा, इसके केंद्र में मनुष्य की सामूहिक चिंताएं आ गयी है और व्यक्तिगत मनोविनोद, जय-पराजय, सुख-दुख से ऊपर सामूहिक प्रेम, बन्धुत्व, स्वतंत्रता और समानता का साहित्य इसपर प्रस्तुत किया जा रहा है !नये मूल्यों के अनुरूप वर्ग, वर्ण और जातियों के बीच की दूरियां घटाई जा रही है--- तो ऐसा साहित्य चाहे किताबों के माध्यम से आये या फिर ब्लॉग के माध्यम से , क्या शिकयत हो सकती है ?"

वहीं गिरीश पंकज मानते हैं कि " आज के हिंदी आलोचकों के लिये व्यंग्य बेकार है...गीत-ग़ज़ल बकवास है. नैतिकता दो कौड़ी की है. और अब ब्लॉग-साहित्य की बारी है, जबकि ये लोग भूल जाते है की अगर इस ''फार्म'' का बेहतर इस्तेमाल हो तो दुनिया में एक नया बौद्धिक वातावरण बन सकता है. अभिव्यक्ति का यह सशक्त माध्यम है. इसे कम से कम मैंने तो महसूस किया ही है. मेरी ग़ज़ले, मेरे व्यंग्य , मेरे सामयिक विचार ब्लॉग और ब्लॉगों के माध्यम से ही दूर-दूर तक जा रहे है. किसी के नकारने से कोई विधा या फ़ार्म हाशिये पर नहीं जा सकते. ब्लॉग के माध्यम से अब साहित्य और बेहतर तरीके से लोकव्यापी हो रहा है. "

जबकि इस दिशा में हिंदी के प्रमुख युवा ब्लोगर पद्म सिंह के विचार से "सर्वप्रथम तो ब्लॉगजगत अभी आत्मावलोकन के दौर मे है जहां इसकी संभावनाओं, विभिन्न आयामों और सीमाओं पर मंथन का क्रम जारी है। और यह मंथन आवश्यक भी लगता है।दूसरी बात- शायद अभी कुछ लोग उस मानसिकता से बाहर नहीं निकाल पाये हैं जहां "मंहगे का मतलब अच्छा" होता है। अभिव्यक्ति का जो उन्मुक्त प्रवाह आज हमें नेट पर प्राप्त है वह कागज़ी साहित्य मे बिरले ही मिले... यह भी संभव है कि अभी हम साहित्य को पेपर जिल्द की गुणवत्ता और प्रकाशक से जोड़ कर ही देख पा रहे हों। यह ठीक है कि हर व्यक्ति की अपनी अपनी रचनात्मक क्षमताएं हो सकती हैं... लेकिन नेट पर किए जा रहे बहुत से ऐसे कार्य हैं जिन्हें किसी भी तथाकथित साहित्य से कमतर आँका जाये।



ब्लॉग पर विज्ञान को प्रतिष्ठापित करने वाले हिंदी ब्लोगर अरविन्द मिश्र मानते हैं कि " दरअसल जब तक हिन्दी विभागों को साहित्य का एकमात्र स्रोत समझा जाता रहेगा हिन्दी का चतुर्दिक विकास संभव नहीं है -आज हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दी भाषा कितने ही अभिनव स्रोतों द्वारा समृद्ध हो रही है -ज्ञान विज्ञान ,दर्शन ,बहुल संस्कृतियाँ ,गीत संगीत लोकगीत..कितना कुछ -आज हिन्दी साहित्यकारों को कूप मंडूकता से बाहर निकलने और हिन्दी ब्लॉग पर ज्ञान विज्ञान के इस अभूतपूर्व दृश्य का आनंद उठाना चाहिए ! नहीं तो वे हाशिये पर होंगें ..और उधर ही खिसकते जा रहे हैं ! "

नेट पर हिन्दी साहित्य ससीमित संभावनाएं और भविष्य रखती है इसमे कोई द्विविधा नहीं होनी चाहिए। लेकिन अभी से इसकी तुलना सैकड़ों वर्षों से स्थापित साहित्य से करना उचित नहीं लगता है।ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक ऐसा मंच है जिसने रचनाकारों मे प्रतिद्वंद्विता और द्वेष कम कर सहयोगात्मक विमर्श को जन्म दिया है और भौगोलिक दूरियों की वर्जनाएं तोड़ते हुए विभिन्न विचारों, संस्कृतियों और रचनात्मकता को वैश्विक सह अस्तित्व दिया है।ब्लागिंग के इस दौर मे अकादमिक साहित्य से तुलना करते हुए कोई भी निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी !"

हिंदी ब्लोगर रंजित कुमार का मानना है कि "सरोकारी लेखन की पहली शर्त है- मानव-मूल्यों में घोर आस्था और सर्जना की तीव्र भूख, लेकिन अधिकतर ब्लॉग-लेखकों में लेखन का उत्साह तो दिखता है, लेकिन साहित्यिक-मर्म के सहभागी बनने की इच्छा कम-ही दिखती है। यही कारण है कि बहुत-से संभावनाशील ब्लॉग-लेखक हतोत्साह होकर यहां से विदा भी ले रहे हैं। टिप्पणी-लालसा और टिप्पणियों के लेन-देन की जो कहानी अभी चल रही है, वह स्वस्थ्य और स्वच्छ नहीं है। लेकिन मुझे भी विश्वास है कि एक दिन ब्लॉग उत्कृष्ट साहित्य सृजन का मंच बनकर रहेगा। धीरे-धीरे... !" जबकि ब्लोगर सुशील वाक्लिवाल के इस सन्दर्भ में विचार कुछ इसप्रकार है "यदि साहित्य का मतलब धीर-गंभीर और वजनदार शैली में मुंशी प्रेमचंद या उन जैसे साहित्यकारों के लिखे को ही माना जावे तो शायद यह पूरी तरह से कभी भी संभव नहीं हो सकेगा । मेरी सोच में तो ब्लाग्स सिर्फ साहित्य मात्र का प्रतिनिधित्व करने वाला माध्यम नहीं है बल्कि वो सब कुछ जो हिन्दी भाषा में लिखा व पढा जा सकता है सभीका संयुक्त रुप से प्रतिनिधित्व करने वाला माध्यम है और आगे भी यह इसी रुप में कायम रहेगा ।"

जय कुमार झा का कहना है कि "साहित्य का भी असल मकसद सामाजिक विकाश तथा संवेदनाओं का विस्तार ही है.......और आज यह काम ब्लॉग जगत के द्वारा बखूबी किया जा रहा है.......हमसब सामाजिक प्राणी हैं इसलिए मैं तो सामाजिक सरोकार और समाज के उत्थान से सम्बंधित साहित्य का ही पक्षधर हूँ ..... !" डा. रूप चन्द्र शास्त्री मयंक का मानना है कि "साहित्य के पुरोधा गण ब्लॉग को चाहे जितना भी कोस लें, पर भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमि को जितना उर्वर इस नए माध्यम के द्वारा बनाया जा रहा है, उतना साहित्य के अन्य माध्यमों के द्वारा नहीं।" 

जबकि इसी विषय पर युवा ब्लॉग लेखक कौशलेन्द्र का कहना है कि "कोई भी चीज़ अब किसी वर्ग विशेष की बपौती नहीं रह गयी है. दूसरी बात यह कि ब्लॉग-साहित्य (यदि साहित्य शब्द पर पुरोधा लोगों को आपत्ति हो तो ब्लॉग-सन्देश ) अपने उद्देश्यों को पूरा कर पाने में सक्षम हो चुका है......वे उद्देश्य जो किसी साहित्य के होने चाहिए. ब्लागी-कलम के सिपाही अपना उत्तरदायित्व निभा पा रहे हैं ...यही संतोष जनक बात है .....रही बात प्रमाण-पत्र की ......तो उसकी मैं आवश्यकता इसलिए नहीं समझता कि एकलव्य के पास कोई डिग्री नहीं थी, दूसरे यह डिग्री देने के लिए अधिकृत कौन है ? .......सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट के हिसाब से जो साहित्य का उद्देश्य पूरा नहीं कर पायेंगे वे स्वयं काल-कलवित हो जायेंगे....जो फिटेस्ट होगा वही उभर कर सामने आ जाएगा .....अब कोई पुश्तैनी थुपा-थुपी नहीं चल पायेगी.साहित्य में अब कड़ी प्रतिस्पर्धा होने वाली है क्योंकि आधुनिक तकनीक ने हर किसी को मैदान में आने की सुविधा दे दी है ...इसलिए ब्लॉग साहित्य से सुस्थापित पुरोधाओं का घबडाना स्वाभाविक है .....अब रही बात स्वीकृति की और मान्यता की .......सक्षमता को किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती ......और जन सामान्य की मान्यता से बड़ी कोई मान्यता नहीं होती. सूर ..कबीर ...तुलसी ...रसखान ....आदि "लोकमान्य" पहले हुए .........."साहित्यमान" बाद में हुए . ब्लॉग को अपने दम-ख़म पर विकसित होना और सुस्थापित होना है ...किसी की बैसाखियों की आवश्यकता उसे नहीं है. जहां तक भाषा का प्रश्न है ...यह तो एक बहती हुयी नदी है ...इसे रोका नहीं जा सकता ..यह अपना रास्ता स्वयं बना लेगी. परिष्कृत भाषा का अपना महत्त्व है ...पर उसे थोपा नहीं जा सकता .....जब आप किसी पर उसके आचरण के लिए सत्यम ब्रूयात नहीं थोप सकते तो यह तो भाषा है जो स्वयं विकसित होती है ......थी तो परिष्कृत भाषा हमारे पास ...संस्कृत का क्या हाल है आज ? हाँ कुछ मर्यादाओं के पालन के साथ भाषा को विकृत होने से बचाने का प्रयास अवश्य करना है....तो यह कार्य प्रतिस्पर्धा की धार स्वयं कर लेगी. हमें तो अपना काम करना है ........करने से पहले उसे पहचानना है ....और हमारा कार्य है पहरेदारी जिसे हमने पहचान लिया है ...अब कोई भी शक्ति कोई भी तिरस्कार कालजयी साहित्य को ब्लॉग के खेतों में अंकुरित ...पल्लवित ....पुष्पित होने से रोक पाने में सक्षम नहीं है. !" 

इस सन्दर्भ में व्यंग्यकार और हिंदी के प्रतिष्ठित ब्लोगर अविनाश वाचस्पति कहते हैं कि "साहित्‍य वो जिससे सबका हित सधे, चाहे वो साहित्‍यकार हो, ब्‍लॉगर हो या पाठक हो, कार में बैठा हो अथवा बेकार हो, पैदल चल रहा हो या साईकिल पर सवार हो, पढ़ रहा हो या पेट को भरने की उधेड़ बुन में लगा हो। मतलब मेरे कहने का यही है कि जिससे सबका हित सधे, वही साहित्‍य। चाहे पुस्‍तक में पढ़े, चाहे पत्रिका पढ़े, चाहे अखबार भी न पढ़े, सिर्फ रेडियो टी वी ही सुने। पर दिमाग उसका चले, खूब चले। मन में अच्‍छाई की तरंगें उठें, कलम से अच्‍छे अच्‍छे विचार जन्‍म लें, जो कीबोर्ड से लिखें, वे भी सच्‍चा लिखें और जो कलम से लिखें वे भी नम होकर लिखें। सख्‍त न हों, दरख्‍त भावना रखें। जैसे पेड़ सबको छाया देते हैं, साहित्‍यकार या ब्‍लॉगर उत्‍तम विचार दें और इस सबके लिए बहुत जरूरी है कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को प्राथमिक कक्षा से एक विषय के तौर पर लिया जाए, जिसका उत्‍तरोत्‍तर कक्षाओं में विस्‍तार किया जाए, पूरे सामाजिक सरोकार को जिया जाये। जिससे हर मन में जिम्‍मेदारी की भावना बने। वही भावना हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को नया मीडिया रूपी पांचवें खंबे के बतौर सुस्‍थापित करेगी। बस इतनी ही चाहना है मेरी। न तेरी गलत, न मेरी सही। खोल दें ऐसी बही। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की बहा दें नदी। जो समुद्र बन जाए फिर बादलों के जरिए सबके तन मन को भिगो जाए, सरसा जाए, हर मन को हर्षा जाए। "

वाणी गीत मानती है कि "ब्लॉगिंग विकास की राह पर है ..ब्लॉग पर प्रकाशित साहित्य भी कम नहीं है ...क्या साहित्यिक पत्रिकाओं में संस्मरण , यात्रा वृतांत नहीं छपते ? वही यदि ब्लॉग पर लिखा जा रहा है तो उसे स्वान्तः सुखाय ही कह देना उचित है ?"

प्रवीण त्रिवेदी कहते हैं कि "ब्लॉग सामन्य अभिव्यक्ति से लेकर विशेषज्ञ अभिव्यक्ति का माध्यम है | देखा जाए तो यह अंतर बना रहेगा .......जाहिर सी बात है तुलनात्मक दृष्टि से ब्लॉग्गिंग कभी भी साहित्य की तरह नहीं हो सकती है ......पर लोकतांत्रिक होने के कारण जल्द ही उम्दा साहित्य भी यहाँ देखने को मिल सकता है| हाँ ऐसी बातों को तुरत-फुरत हवा में उड़ा देना भी उतना जरूरी नहीं अक्सर समालोचना गंभीर चीजों की ही होती है .....अतः इतनी गंभीरता ब्लॉग्गिंग में महसूस की जा रही ......यह क्या कोई कम है ? " वरिष्ठ ब्लॉग लेखिका निर्मला कपिला मानती हैं कि "अगर देखा जाये तो सभी पत्रिकायें भी तो श्रेष्ठ साहित्य लिये हुये नही होती फिर ब्लाग तो बहुत विसतरित मंच है। आज नही तो कल सहित्य के पुरोधा इसे जान लेंगे । अभी शायद उन्हें कम्प्यूटर का ज्ञान  नही है।"

इन्द्रनील भट्टाचार्यी का मानना है कि "ब्लॉग्गिंग एक बहुत विस्तृत और बहुआयामी माध्यम है ... साहित्य में योगदान इसका एक प्रमुख पहलू ज़रूर है पर एकमात्र नहीं ...


जिस तरह ज्यादातर दफ्तरों में कागज की जगह संगणक ने ले ली है ... उसी तरह साहित्य जगत में भी भविष्य कागज नहीं संगणक के सहारे चलने वाला है ... भले इस बात को आज कोई माने या न माने ...हाँ एक बात ज़रूर सच है कि ब्लॉग्गिंग में अभी उन्नति की प्रचुर संभावना है ... जैसे जैसे दिन बीतेंगे, ब्लॉग्गिंग भी बाकी माध्यमों कि तरह और ज्यादा सफल होता जायेगा ... इसमें कोई शक नहीं है !"

 वहीं देश  के प्रमुख कार्टूनिष्ट काजल कुमार कहते हैं कि "अलग—अलग तरह के प्रकाशक होते हैं जैसे बच्चों की किताबों के, विज्ञान पुस्तकों के, साहित्यिक पुस्तकों के, सैल्फ़—हेल्प पुस्तकों के इत्यादि.


ठीक इसी तरह, अलग—अलग ब्लाग लेखक भी अलग—अलग तरह का लिखते हैं. ऐसे में सभी को किसी एक फीते से नाप डालना ठीक नहीं लगता. यहां तो किसी की बात सुनने की भी ज़रूरत नहीं... ब्लाग लेखक भी अपनी ही तरह के तरह के होते हैं सो वैसा ही लिखते हैं जैसा वे चाहते हैं. अब ये पढ़ने वाले पर है कि वह क्या ढूंढ रहा है, ठीक वैसे ही जैसे जब वह किताबों की दुकान में जाता है तो अपनी पसंद की ही किताब ढूंढता है. बस बात इतनी सी है. " जबकि हिंदी के एक और चर्चित ब्लोगर तथा बच्चों के कवि जाकिर अली रजनीश का कहना है कि "मेरे विचार में जब भी किसी नई विधा का विकास होता है, तो उसमें कूड़ा और अच्‍छा दोनों तरह का साहित्‍य आता है। आप इस प्रक्रिया को रोक नहीं सकते हैं। यदि आप इस विषय में चिंतित होते हैं, तो भी इससे कोई फायदा नहीं होने वाला। क्‍योंकि यह एक सामान्‍य एवं सार्वभौमिक प्रक्रिया है, जो हमेशा चलती रही है और चलती रहेगी। यही नियति ब्‍लॉग जगत की भी है। इस पर हर तरह का साहित्‍य आ रहा है, आता रहेगा। हॉं, समय जरूर उसमें स्‍तरीय और उपयोगी छांट लेगा।सो मेरे विचार में आप अपना काम करते रहें, समय अपना काम करता रहेगा। "

साहित्य के पुरोधा गण ब्लॉग को चाहे जितना भी कोस लें, पर भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमि को जितना उर्वर इस नए माध्यम के द्वारा बनाया जा रहा  है, उतना साहित्य के अन्य माध्यमों के द्वारा  नहीं। हम आप जिसे साहित्य कहते हैं, यदि साहित्य केवल वही है, तो यह तय है कि आज के भ्रष्ट  और पतनशील राजनीतिक दौर में जितना कारगार और तात्कालिक हस्तक्षेप ब्लॉग  कर पा रहा है,उतना साहित्य के द्वारा सम्भव नही है। यह वक्त का ऐतिहासिक तकाजा है कि ब्लॉग-लेखन की अहमियत को समझा और स्वीकार किया जाये। वैसे शुद्धतावादियों के बाद और बावजूद उसकी अहमियत स्थापित हो चुकी है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि ब्लॉग पर उपलब्ध साहित्य को भी गंभीर व विचार योग्य साहित्य माना जाए। आलोचक, समीक्षक इन विभिन्न ब्लॉग पर उपलब्ध साहित्य पर विचार कर अपनी महत्वपूर्ण राय दें। इस साहित्य पर उनके सटीक विश्लेषण से ब्लॉगर्स को भी लाभ होगा। वहीं हिंदी ब्लॉग लेखन के स्तर में अपेक्षित सुधार होगा।सम्भव है आने वाले दिनों में ये क्षद्म कुंठाएं खुद-ब-खुद मिट जायें और ब्लॉग केवल साहित्य बनकर मुख्यधारा में शामिल हो जाये।

() () ()

2 टिप्पणियाँ:

  1. दीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ |

    way4host
    rajputs-parinay

    जवाब देंहटाएं
  2. अब तो नेट पर हर प्रकार का साहित्‍य उपलब्‍ध है ..
    .. आपको दीपोत्‍सव की शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं

 
Top