विगत चार  पोस्ट में मैंने परिचर्चा के माध्यम से कई प्रबुद्ध जनों के विचारों से आप सभी को रूबरू कराया....विषय था हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? आईए इसी क्रम में कुछ और व्यक्तियों के विचारों से हम आपको रूबरू कराते हैं- 
 
My Photoसुप्रसिद्ध राजनैतिक चिंतक हेराल्‍ड जे. लास्‍की ने अपनी किताब ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्‍समें लोकतंत्र के लिए दो शर्तों की चर्चा की है। पहली, विशेषाधिकार का अभाव और दूसरी सबके लिए समान अवसर। बीसवीं शताब्‍दी ने फ्रांसिसी राज्‍य क्रांति के तीन बड़े मूल्‍यों स्‍वतंत्रता, समानता और बंधुत्‍व को दुनिया भर में फलीभूत होते हुए देखा है। इन विचारों के परिदृश्‍य में यदि हम इंटरनेट के साइबर स्‍पेस और ब्‍लॉगिंग को देखें तो उसका नया अवतार एक तरह से ईश्‍वर की बनाई हुई दुनिया के समानांतर एक ऐसी नई दुनिया की रचना करता है जिसमें मानव सभ्‍यता के उपरोक्‍त मूल्‍यों को हम सच्‍चे अर्थों में स्‍थापित होते हुए देखते हैं। इस दुनिया में किसी के पास कोई विशेषाधिकार नहीं है और सबको अपनी बात कहने सुनने की समान आजादी है। इस दुनिया ने मित्रता के संसार को वास्‍तविकता से उठाकर एक आभासी स्‍पेस में बदल दिया है। यह आभासी स्‍पेस इतना आकर्षक और प्रभावशाली है कि मनोवैज्ञानिक स्‍तर पर हमारे समाज के लिए भावनाओं, संवेगों और संवेदनाओं के परिशोधन यंत्र की तरह काम करता है। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि यह दुनिया अराजक और अनियंत्रित है। यहां व्‍यक्ति की निजी आजादी और स्‍पेस बचा हुआ है। इस पर व्‍यक्ति का नियंत्रण है, उसे यह आजादी है कि उसके स्‍पेस में कौन कौन आ सकते हैं और कौन कौन जा सकते हैं।
  • अजित राय
(अखबारों, चैनलों, थिएटर, सिनेमा, साहित्य, संस्कृति आदि से विविध रूपों में जुड़े प्रख्यात लेखक )



My Photoब्लॉग जगत में एक से एक विद्वजन और सामाजिक विकास के प्रति समर्पित व्यक्तित्व कार्य रत हैं  जिनको पढ़कर अपने आप पर गर्व होता है कि हमने भी इन्हें पढ़ा है वहीँ दूसरी और हिंदी ब्लॉग जगत से वित्रष्णा पैदा करने की क्षमता रखने वालों की भी कमी नहीं है ! कई बार इन्हें पढ़कर लगता है कि यही पढना बाकी था  ?
मेरा यह विश्वास है कि आने वाला समय बेहतर होगा , हमारी नयी पीढी यकीनन प्यार ,सद्भाव में हमसे अधिक अच्छी होगी अतः आज जो हम ब्लाग के जरिये दे रहे हैं, उसे एक बार दुबारा पढ़ के ही प्रकाशित करें ! कहीं ऐसा न हो कि आपको कुछ सालों के बाद पछताना पड़े कि यह मैंने क्या लिखा था  ?
  • सतीश सक्सेना
( हिंदी के सुपरिचित ब्लॉगर )



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अनावश्यक चिंता करने की ज़रूरत नहीं है,बहुत उज्ज्वल भविष्य है। कई नामी हिन्दी के अखबार के सम्पादक तक ने ब्लॉग पर लिखना शुरु कर दिया है। उन्होंने भी इसके भविष्य और महत्त्व का अकलन कर लिया है। यह विचार मंथन का दौर है। मीडिया वाले अपनी मीडिया मोह (खास कर प्रिंट) से बंधे हैं। उनकी लेखनी और शैली। इस सार्वभौम ताकत को आने वाला समय नकार नहीं सकता।

.. और एक बार फिर कहूंगा कि अपनी दिशा और दशा यह स्वयं तय कर लेगी। जैसे बहता जल ... रास्ता खुद बनाता चला जाता है और नदी या सागर का रूप ले लेता है। अभी तो धारा फूटी है, बलवती होगी। धीरे-धीर नदी और अथाह सागर समान ....!

  • मनोज कुमार
( शाश्वत साहित्यकार और हिंदी ब्लॉगिंग के वेहद उम्दा चर्चाकार ) 
 
हिंदी ब्लॉगिंग के समक्ष कोई सुदीर्घ पूर्ववर्ती परंपरा नहीं है और ही भविष्य का कोई स्पष्ट खाका ही है अपितु इसकी व्युत्पत्ति और व्याप्ति का तंत्र वैश्विक और कालातीत होते हुए भी इतना वैयक्तिक है कि सशक्त निजी अनु्शासन के जरिए ही इसे साधकर व्यष्टि से समष्टि की ओर सक्रिय किया सकता है इसी में इसकी सार्थकता भी है और सामाजिकता भी। यह व्यकित्गत स्तर पर उद्भूत एक सहकारी माध्यम है। अतएव यह आवश्यक है कि हिन्दी ब्लॉगिंग ( जिसे अब 'चिठ्ठा' भी कहा जाने लगा है) की परम्परा,प्रस्तुति और प्रयोग का  आकलन - विश्लेषण किया जाय ताकि इस बनते हुए माध्यम की मानवीय और तकनीकी बाधाओं को पहचान कर उन्हें दूर करने के प्रयास के साथ ही 'एक बार फ़िर नई चाल में ढ़ल रही हिन्दी'  की सामाजिक भूमिका को दृष्टिपूर्ण तथा दूरगामी बनाया जा सके। यह काम इसलिए भी जरूरी है कि आज की हिन्दी वह हिन्दी नहीं है जिसे हम पाठ्यपुस्तकों में पढ़ते आए हैं तथा अब भी जो कक्षाओं में पढ़ी - पढ़ाई जाती है। सूचना और ज्ञान के साझे होते वितरण तंत्र से जिस तरह से जानकारी की दुनियाअ बदली है और ग्लोबल गाँव होती हमारी दुनिया में भाषा की भूमिका केवल विचारों के आदान - प्रदान की नहीं रह गई है बल्कि उत्पादन , उपभोग , वितरण बाजार के एक औजार के रूप में व्यवहृत होने लगी है और इतिहास तथा साहित्य के अंत जैसी तमाम घोषणाओं त्तर आधुनिक विर्शों के बावजूद  साहित्य , संगीत  अन्यान्य  कलाओं की  जरूरत बढ़ी है तब हिन्दी ब्लॉगींग के माध्यम से रहे सृजन  को देखे जाने की आवश्यकता बढ़ी है।    
  • सिद्धेश्वर सिंह
(हिंदी के चर्चित और लोकप्रिय लेखक / ब्लॉगर )


 My Photoमेरे एक मित्र ने मजाक में कहा था कि ब्लॉगिंग का चस्का कुछ-कुछ वैसा ही है जैसा नाई को देखकर हजामत बढ़ आने की कहावत में होता है। मतलब इन्टरनेट की सैर करते-करते भाई लोग मुफ़्त में कवि और लेखक बन जाने और प्रत्यक्ष रूप से पाठकों की दाद पा जाने का अवसर हाथ लगने पर झम्म से साहित्य की दुनिया में कूद पड़ते हैं। वैसे देखा जाय तो इस बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। यह सच है कि इस माध्यम ने बिना किसी विशेष योग्यता व प्रयास के एक बड़े पाठक समुदाय तक पहुँचने का अवसर प्रत्येक व्यक्ति को दे दिया है। इस सर्वसुलभ साधन का अकुशल (भद्दा, फूहड़, अकलात्मक, आदि भी) प्रयोग करने वालों के होते हुए भी इसके प्रसार और प्रभाव को अब रोका नहीं जा सकता है, और न ही दोयम दर्जा देकर इसके उत्साह को कम किया जा सकता है।

 
  • सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
(हिंदी ब्लॉगिंग में संवेदनशील लेखन के पक्षधर )

 
My Photoवर्तमान में घटित कुछ घटनाओं के पश्चात लगता है कि ब्लॉगिंग को लोकतंत्र के चौथे खम्बे के विकल्प के रुप में अपनी भूमिका नि्भाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। जनता जान गयी है कि लोकतंत्र का चौथा खम्भा बिक चुका है। पत्रकार सत्ता की दलाली में लगे हुए हैं। इसकी विश्वसनीयता समाप्त हो गयी है, राड़िया और बरखा दत्त प्रकरण सबके सामने है। चौथे खम्भे की कलई खुल चुकी है, यह पेड न्यूज के जरिए धन कमाने में लगा हुआ है। आम आदमी की आवाज को पत्र पत्रिकाओं में स्थान नहीं मिलता है।कार्पोरेट हाऊसों का मीडिया पर कब्जा हो जाने से इनके फ़ायदे का समाचार ही बाहर आ पाता है। वे सरकार को ब्लेक मेल कर अपना उल्लू साध रहे हैं। मीडिया की आड़ में काले कारनामे हो रहे हैं। आम जनता का अब अखबारों से विश्वास उठता जा रहा हैं। ऐसी स्थिति में ब्लॉगर जन पत्रकार की भूमिका निभाते हुए सत्य को ब्लॉग के माध्यम से जनता के सामने ला सकता है। इसलिए ब्लॉग की शक्ति को कम करके आंकना ठीक नहीं है।
  • ललित शर्मा
( हिंदी के वहुचर्चित ब्लॉगर )
 
ब्लॉगिंग का जुनून लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। कोई यहाँ विकल्प ढूँढ रहा है तो कोई कायाकल्प करना चाहता है तो कोई हरदम कुछ नया, आकर्षक और उपयोगी करने को तत्पर है। तमाम तकनीकी ब्लॉग लोगों को इससे जोड़ने और नित्य नई-नई जानकारियों के संग्रहण और विजेट्स से रु-ब-रु कराने में अग्रसर हैं। जाति-धर्म-क्षेत्र से ब्लॉगजगत भी अछूता नहीं रहा। हर कोई अपनी जाति से जुड़े महापुरूषों को लेकर गौरवान्वित हो रहा है, क्षेत्र आधारित ब्लॉग भी पनप रहे हैं। ब्लॉगरों के सुख-दुःख को बाँटने वाले ब्लॉग भी अस्तित्व में आ चुके हैं।
नेता, अभिनेता, प्रशासक, सैनिक, किसान, खिलाड़ी, पत्रकार, बिजनेसमैन, डॉक्टर, इंजीनियर, पर्यावरणविद, ज्योतिषी, शिक्षक, साहित्यकार, कलाकार, कार्टूनिस्ट, वन्यजीव प्रेमी, पर्यटक, वैज्ञानिक, विद्यार्थी से लेकर बच्चे, युवा, वृद्ध, नारी-पुरुष व किन्नर तक ब्लॉगिंग में हाथ आजमा रहे हैं। देखते ही देखते हिन्दी को भी पंख लग गए और संपादकों की काट-छांट व खेद सहित वापस, प्रकाशकों की मनमानी व आर्थिक शोषण से परे हिन्दी ब्लॉगों पर पसरने लगी। हिंदी साहित्य, लेखन व पत्रकारिता से जुड़े तमाम चर्चित नाम भी अपने ब्लॉग के माध्यम से पाठकों से नित्य रुबरु हो रहे हैं।   
  • आकांक्षा यादव
(हिंदी की सुपरिचित  कवयित्री और प्रखर महिला ब्लॉगर )

My Photo हिंदी ब्लोगिंग का अभी शैशव काल अवश्य ही है लेकिन इसकी परवरिश से इतका विकास अच्छा होने की संभावना है. हम अंग्रेजी की बराबरी नहीं कर सकते हैं लेकिन आज नहीं तो कल अपनी संस्कृति की विविधता में समाहित एकता के चलते इसको इतना समृद्ध बना लेंगे की हमें खुद ही आश्चर्य होगा. लेखन के विभिन्ना आयाम यहाँ मौजूद हैं और उसके लिए सतत प्रयत्नशील व्यक्तित्वों की भी कमी नहीं है   ....!

  • रेखा श्रीवास्तव              
( अध्यक्षा : लखनऊ ब्लॉगर असोसिएशन )
 
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निश्चित रूप से हिंदी ब्लोगिंग आज के दौर में प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है. हालाँकि इसमें सुधार की आवश्यकता भी है. अधिकतर ब्लॉग लेखक आज भी निर्णय नहीं ले पाते की उन्हें क्या लिखना और क्या नहीं. शुरुआत में मैं खुद नहीं जानता था की ब्लोगिंग क्या होती है और कैसे होती है. एक दिन मजाक मजाक में ही ब्लॉग बना लिया और जो भी मन में आया लिखना शुरू कर दिया, हा मेरे अन्दर सीखने की ललक थी लिहाजा कितने ब्लॉग पर भ्रमण किया और लोंगो को पढ़ा. इस दौरान मुझे जो सबसे बुरा लगा वह यह था की कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता का नाजायज प्रयोग कर रहे हैं. मुझे यह देखकर अफ़सोस हुआ की ब्लॉग को धर्म की बुराई का मार्ग भी बना लिया गया है. खुद को अच्छा बताना और दूसरे को बुरा कहने की प्रवित्ति कई लोंगो में देखी. यहाँ तक की कमेन्ट में भी अभद्र शब्दों का प्रयोग हो रहा है. लाबोलुआब यह है की हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भले ही है परन्तु दूसरे की भावनाओ का भी ख्याल रखना चाहिए. भले ही हम सामने नहीं होते पर यह अवश्य सोचना होगा की जो लोग इन बातो को पढ़ते होंगे उनके मन में कैसी भावना जन्म लेती होगी. ब्लॉग आपसी संबंधो को मजबूत करने साधन भी है. हमें चाहिए की ऐसे लेख लिखे जिससे समाज व देश का हित हो. यदि हम दूसरो को नीचा दिखाने, खुद को बड़ा बताने की प्रवित्ति नहीं छोड़ेंगे तो निश्चित रूप से हम किसी न किसी रूप में समाज का अहित ही करेंगे. अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार !
  •  हरीश सिंह
( ब्लॉगर एवं युवा पत्रकार )
 
........जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक विराम के बाद

14 टिप्पणियाँ:

  1. ब्लोगर्स के विचारों के से अवगत करने के लिए
    आपका आभार

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  2. इस परिचर्चा के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का समेकन कर समापन व्यक्तव्य भी
    अवश्य देगें -ऐसा अनुरोध है !

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  3. यह एक महत्वपूर्ण आयोजन है,आप इस दायित्व को निभा रहे हैं यह बड़ी बात है।

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  4. वास्तव आप कितना जरूरी काम कर रहे हैं. आभारी है ब्लाग जगत आपका

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  5. आपका कार्य प्रणम्य है , हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति आपकी निष्ठा अनुकरणीय है !

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  6. लेखन व पत्रकारिता से जुड़े तमाम चर्चित नाम भी अपने ब्लॉग के माध्यम से पाठकों से नित्य रुबरु हो रहे हैं।

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  7. ब्लॉग की शक्ति को कम करके आंकना ठीक नहीं है।

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  8. हिन्दी ब्लागिन्ग, हिन्दी के प्रचार प्रसार मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। बेशक अभी हिन्दी ब्लागिन्ग का शैशवकाल है लेकिन आने वाले दिनों मे इसी से मंउशी प्रेम चन्द, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम, निराला जैसे साहित्यकार जन्म लेने वाले हैं कहाँ युवावर्ग हिन्दी मे बात करना अपनी तौहीन समझने लगे थे वहीं आज इतने युवा ब्लागिन्ग के दुआरा हिन्दी से जुदने लगे हैं । ये आने वाली पीढिओं के लिये मील पत्थर साबित होंगे। इससे सिर्फ भाषा का ही नही बल्कि देश की सभ्यता संस्क्रति को भी एक आयाम मिलेगी और भारत की एकता भाईचारे के लिये उपयोगी भूमिका निभायेगा। शायद सभी को ब्लागिन्ग की उपलब्धिओं के बारे मे पूरी जानकारी न हो पाती लेकिन रवीन्द्र प्रभात जी के कठिन परिश्रम ने पूरे ब्लागजगत को एक जगह इकट्ठा कर के ब्लागजगत की उपलब्धिओं को सब के सामने लाने का सुन्दर उपयोगी कार्य किया है। कामना करती हूँ कि ब्लाग के माध्यम से आपसी प्रेम और भाईचारे का सन्देश जन जन तक पहुँचे। धन्यवाद ,शुभकामनायें।

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  9. क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

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  10. दरअसल रविन्द्र जी ,

    हिंदी ब्लॉग्गिंग अपनी मुक्त अभिव्यक्ति बन चुकी है .. इससे अपने भीतर कि creativity को पंख लग गए है ..

    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  11. It manages website licensing, tax revenue collection, and the testing and approval of games. The biggest market in the US for legalized internet gambling is New Jersey. Simultaneously, Mexico evaluates its gambling regulations to harmonize them with the casino.edu.kg country's total gambling business.

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