..आज जिसप्रकार हिंदी ब्लोगर साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद समाज और देश के हित में एक व्यापक जन चेतना को विकसित करने में सफल हो रहे हैं वह कम संतोष की बात नही है । हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हर उस ब्लोगर की महत्वपूर्ण भुमिका है जो बेहतर प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन, सम सामयिक विषयों पर सूक्ष्मदृष्टि, सृजनात्मकता, समाज की कुसंगतियों पर प्रहार और साहित्यिक- सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी बात रखने में सफल हो रहे हैं। ब्लॉग लेखन और वाचन के लिए सबसे सुखद पहलू तो यह है कि हिन्दी में बेहतर ब्लॉग लेखन की शुरुआत हो चुकी है जो हम सभी के लिए शुभ संकेत का द्योतक है । वैसे वर्ष-२००९ हिंदी ब्लोगिंग के लिए व्यापक विस्तार और बृहद प्रभामंडल विकसित करने का महत्वपूर्ण वर्ष रहा है । आईये वर्ष -२००९ के महत्वपूर्ण ब्लॉग और ब्लोगर पर एक नज़र डालते हैं ।

हिंदी ब्लॉग विश्लेषण -२००९ की शुरुआत एक ऐसे ब्लॉग से करते हैं जो हिंदी साहित्य का संवाहक है और हिंदी को समृद्ध करने की दिशा में दृढ़ता के साथ सक्रिय है .वैसे तो इसका हर पोस्ट अपने आप में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है , किन्तु शुरुआत करनी है इसलिए २० जून -२००९ के एक पोस्ट से करते हैं। हिंदी युग्म के साज़ -वो-आवाज़ के सुनो कहानी श्रंखला के अर्न्तगत प्रकाशित हिंदी के मूर्धन्य कथाकार मुंशी प्रेमचंद की कहानी इस्तीफा से ....! "मुंशी प्रेमचंद की कहानी "इस्तीफा"को स्वर दिया है पिट्सवर्ग अमेरिका के प्रवासी भारतीय अनुराग शर्मा ने।
शपथ-इस्तीफा के बाद राजनीति का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू पुतला दहन , पुतला दहन का सीधा-सीधा मतलब है जिन्दा व्यक्तियों की अंत्येष्ठी । पहले इस प्रकार का कृत्य सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों तक सीमित था । बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में रावण-दहन की परम्परा थी , कालांतर में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यक्तियों के द्वारा किए गए ग़लत कार्यों के विरोध में जनता द्वारा किए जाने वाले विरोध के रूप में हुआ । पुतला-दहन धीरे - धीरे अपनी सीमाओं को लांघता चला गया । आज नेताओं के अलावा महेंद्र सिंह धौनी से लेकर सलमान खान तक के पुतले जलते हैं । मगर छ्त्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक बाप ने अपनी जिंदा बेटी का पुतला जलाकर पुतला - दहन की परम्परा को राजनीतिक से पारिवारिक कर दिया और इसका बहुत ही मार्मिक विश्लेषण किया है शरद कोकास ने अपने ब्लॉग पास-पड़ोस पर दिनांक २४.०७.२००९ को प्रेम के दुश्मन शीर्षक से ।
शपथ , इस्तीफा , पुतला दहन के बाद आईये रुख करते हैं राजनीति के चौथे महत्वपूर्ण पहलू "मुद्दे " की ओर....

जी हाँ ! कहा जाता है कि मुद्दों के बिना राजनीति तवायफ का वह गज़रा है , जिसे शाम को पहनो और सुबह में उतार दो । अगर भारत का इतिहास देखें तो कई मौकों और मुद्दों पर हमने ख़ुद को विश्व में दृढ़ता से पेश किया है । लेकिन अब हम भूख, मंहगाई , बेरोजगारी जैसे मुद्दों से लड़ रहे हैं । अज़कल मुद्दे भी महत्वकांक्षी हो गए हैं । अब देखिये न ! पानी के दो मुद्दे होते हैं , एक पानी की कमी और दूसरा पानी कि अधिकता । पहले वाले मुद्दे का पानी हैंडपंप में नही आता, कुओं से गायब हो जाता है , नदियों में सिमट जाता है और यदि टैंकर में लदकर किसी मुहल्ले में पहुँच भी जाए तो एक-एक बाल्टी की लिए तलवारें खिंच जाती हैं । दूसरे वाले मुद्दे इससे ज्यादा भयावह है । यह संपूर्ण रूप से एक बड़ी समस्या है । जब भी ऐसी समस्या उत्पन्न होती है , समाज जार-जार होकर रोता है , क्योंकि उनकी अरबों रुपये की मेहनत की कमाई पानी बहा ले जाता है । सैकड़ों लोग , हजारों मवेशी अकाल मौत की मुंह में चले जाते हैं और शो का पटाक्षेप संदेश की साथ होता है - अगले साल फ़िर मिलेंगे !

ऐसे तमाम मुद्दों से रूबरू होने के लिए आपको मेरे साथ चलना होगा बिहार जहाँ के श्री सत्येन्द्र प्रताप ने अपने ब्लॉग जिंदगी के रंग पर दिनांक ०७.०८.२००९ को अपने आलेख .... कोसी की अजब कहानी में ऐसी तमाम समस्यायों का जिक्र किया है जिसको पढ़ने के बाद बरबस आपके मुंह से ये शब्द निकल जायेंगे कि क्या सचमुच हमारे देश में ऐसी भी जगह है जहाँ के लोग पानी की अधिकता से भी मरते हैं और पानी न होने के कारण भी । ऐसा नही कि श्री सत्येन्द्र अपने ब्लॉग पर केवल स्थानीय मुद्दे ही उठाते है , अपितु राष्ट्रिय मुद्दों को भी बड़ी विनम्रता से रखने में उन्हें महारत हासिल है । दिनांक ०४.०६.२००९ के अपने एक और महत्वपूर्ण पोस्ट यह कैसा दलित सम्मान? में श्री सत्येन्द्र ने दलित होने और दलित न होने से जुड़े तमाम पहलुओ को सामने रखा है दलित महिला नेत्री मीरा कुमार के बहाने । जिंदगी के रंग में रंगने हेतु एक बार अवश्य जाईये ब्लॉग जिंदगी के रंग पर .....

मुद्दों पर आधारित ब्लॉग की चर्चा के क्रम में जिस चिट्ठे की चर्चा करना आवश्यक प्रतीत हो रहा है वह है- " आदिवासी जगत " और ब्लॉगर हैं -श्री हरि राम मीणा । यह ब्लॉग आदिवासी समाज को लेकर फ़ैली भ्रांतियों के निराकरण और उनके कठोर यथार्थ को तलाशने का विनम्र प्रयास है । दिनांक २२.०५.२००९ को प्रकाशित अपने आलेख आदिवासी संस्कृति-वर्तमान चुनौतियों का उपलब्ध मोर्चा में श्री मीणा आदिवासी समाज के ज्ञान भंडार को डिजिटल शब्दों के साथ साईबर संसार में फैलाना चाहते हैं ।......अब आईये उस ब्लॉग की ओर रुख करते हैं जो एक ऐसे ब्लोगर की यादों को अपने आगोश में समेटे हुए है जिसकी कानपुर से कुबैत तक की यात्रा में कहीं भी माटी की गंध महसूस की जा सकती है । अपने ब्लॉग मेरा पन्ना में कानपुर के जीतू भाई कुवैत जाकर भी कानपुर को ही जीते हैं।वतन से दूर, वतन की बातें, एक हिन्दुस्तानी की जुबां से…अपनी बोली में.... !दिनांक ०९.०९.२००९ को इस ब्लॉग के पाँच साल पूरे हो गए। इंटरनेट के चालीस साल होने के इस महीने में हिंदी के एक ब्लॉग का पांच साल हो जाना कम बड़ी बात नहीं है।

...............वर्ष-२००९ में जो कुछ भी हुआ उसे हिंदी चिट्ठाजगत ने किसी भी माध्यम की तुलना में बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की पूरी कोशिश की है। चाहे बाढ़ हो या सुखा या फ़िर मुम्बई के आतंकवादी हमलों के बाद की परिस्थितियाँ, चाहे नक्श्ल्वाद हो या अन्य आपराधिक घटनाएँ , चाहे पिछला लोकसभा चुनाव हो अथवा हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव या साम्प्रदायिकता, चाहे फिल्में हों या संगीत, चाहे साहित्य हो या कोई अन्य मुद्दा, तमाम ब्लॉग्स पर इनकी बेहतर प्रस्तुति हुयी है।

कुछ ब्लॉग ऐसे है जिनकी चर्चा कई ब्लॉग विश्लेषकों के माध्यम से विगत वर्ष २००८ में भी हुयी थी और आशा की गई थी की वर्ष २००९ में इनकी चमक बरक़रार रहेगी । ब्लॉग चर्चा के अनुसार सिनेमा पर आधारित तीन ब्लॉग वर्ष २००८ में शीर्ष पर थे । एक तरफ़ तो प्रमोद सिंह के ब्लॉग सिलेमा सिलेमा पर सारगर्भित टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलीं थी वहीं दिनेश श्रीनेत ने इंडियन बाइस्कोप के जरिये निहायत ही निजी कोनों से और भावपूर्ण अंदाज से सिनेमा को देखने की एक बेहतर कोशिश की थी । तीसरे ब्लॉग के रूप में महेन के चित्रपट ब्लॉग पर सिनेमा को लेकर अच्छी सामग्री पढ़ने को मिली थी । हालाँकि समयाभाव के कारण परिकल्पना पर केवल एक ब्लॉग इंडियन बाईस्कोप की ही चर्चा हो पाई थी । यह अत्यन्त सुखद है की उपरोक्त तीनों ब्लोग्स वर्ष २००९ में भी अपनी चमक और अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल रहे हैं ।


इसीप्रकार जहाँ तक राजनीति को लेकर ब्लॉग का सवाल है तो अफलातून के ब्लॉग समाजवादी जनपरिषद, नसीरुद्दीन के ढाई आखर, अनिल रघुराज के एक हिन्दुस्तानी की डायरी, अनिल यादव के हारमोनियम, प्रमोदसिंह के अजदक और हाशिया का जिक्र किया जाना चाहिए। ये सारे ब्लोग्स वर्ष २००८ में भी शीर्ष पर थे और वर्ष २००९ में भी शीर्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुए हैं ।

वर्ष २००८ में संगीत को लेकर टूटी हुई, बिखरी हुई आवाज, सुरपेटी, श्रोता बिरादरी, कबाड़खाना, ठुमरी, पारूल चाँद पुखराज का चर्चित हुए थे , जिनपर सुगम संगीत से लेकर क्लासिकल संगीत को सुना जा सकता था , पिछले वर्ष रंजना भाटिया का अमृता प्रीतम को समर्पित ब्लॉग ने भी ध्यान खींचा था और जहाँ तक खेल का सवाल है, एनपी सिंह का ब्लॉग खेल जिंदगी है पिछले वर्ष शीर्ष पर था। पिछले वर्ष वास्तु, ज्योतिष, फोटोग्राफी जैसे विषयों पर भी कई ब्लॉग शुरू हुए थे और आशा की गई थी कि ब्लॉग की दुनिया में २००९ ज्यादा तेवर और तैयारी के साथ सामने आएगा। यह कम संतोष की बात नही कि इस वर्ष भी उपरोक्त सभी ब्लोग्स सक्रीय ही नही रहे अपितु ब्लॉग जगत में एक प्रखर स्तंभ की मानिंद दृढ़ दिखे । निश्चित रुप से आनेवाले समय में भी इनके दृढ़ता और चमक बरकरार रहेगी यह मेरा विश्वास है ।


यदि साहित्यिक लघु पत्रिका की चर्चा की जाए तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष ज्यादा धारदार दिखी मोहल्ला । अविनाश का मोहल्ला कॉलम में चुने ब्लॉगों पर मासिक टिप्पणी करते हैं और उनकी संतुलित समीक्षा भी करते हैं। इसीप्रकार वर्ष २००८ की तरह वर्ष २००९ भी अनुराग वत्स के ब्लॉग ने एक सुविचारित पत्रिका के रूप में अपने ब्लॉग को आगे बढ़ाया हैं।

आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा की भारतीय सिनेमा में जीवित किवदंती बन चुके बिग बी श्री अमिताभ बच्चन जल्द ही अपना हिंदी में ब्लॉग शुरू करेंगे। यह घोषणा उन्होंने १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस के अवसर पर की है । उन्होंने कहा है कि-" यह बात सही नहीं है कि मैं सिर्फ अंग्रेजी भाषा के प्रशंसकों के लिए लिखता हूं।"अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर खुलासा किया है कि "वह जल्दी ही हिंदी और अन्य भाषाओं में ब्लॉग लिखने की चेष्टा करेंगे, ताकि हिंदी भाषी प्रशंसकों को सुविधा हो।" जबकि मनोज बाजपेयी पहले से ही हिन्दी में ब्लॉग लेखन से जुड़े हैं ।
पिछले वर्ष ग्रामीण संस्कृति को आयामित कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया था खेत खलियान ने , वहीं विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने सफल हुए थे पंकज अवधिया अपने ब्लॉग मेरी प्रतिक्रया में । हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों के संग्राहालय के रूप में पिछले वर्ष चर्चा हुयी थी सांई ब्लॉग की ,गजलों मुक्तकों और कविताओं का नायाब गुलदश्ता महक की ,ग़ज़लों एक और गुलदश्ता है अर्श की, युगविमर्श की , महाकाव्य की, कोलकाता के मीत की , "डॉ. चन्द्रकुमार जैन " की, दिल्ली के मीत की, "दिशाएँ "की, श्री पंकज सुबीर जी के सुबीर संवाद सेवा की, वरिष्ठ चिट्ठाकार और सृजन शिल्पी श्री रवि रतलामी जी का ब्लॉग “ रचनाकार “ की, वृहद् व्यक्तित्व के मालिक और सुप्रसिद्ध चिट्ठाकार श्री समीर भाई के ब्लॉग “ उड़न तश्तरी “ की, " महावीर" " नीरज " "विचारों की जमीं" "सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... " आदि की।


इसी क्रम में हास्य के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग "ठहाका " हिंदी जोक्स तीखी नज़र current CARTOONS बामुलाहिजा चिट्ठे सम्बंधित चक्रधर का चकल्लस और बोर्ड के खटरागी यानी अविनाश वाचस्पति तथा दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका आदि की । वर्ष २००८ के चर्चित ब्लॉग की सूची में और भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग जैसे जबलपुर के महेंद्र मिश्रा के निरंतर अशोक पांडे का -“ कबाड़खाना “ , डा राम द्विवेदी की अनुभूति कलश , योगेन्द्र मौदगिल और अविनाश वाचस्पति के सयुक्त संयोजन में प्रकाशित चिट्ठा हास्य कवि दरबार , उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी का “ प्राइमरी का मास्टर “ , लोकेश जी का “अदालत “ , बोकारो झारखंड की संगीता पुरी का गत्यात्मक ज्योतिष , उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सकल डीहा के हिमांशु का सच्चा शरणम , विवेक सिंह का स्वप्न लोक , शास्त्री जे सी फ़िलिप का हिन्दी भाषा का सङ्गणकों पर उचित व सुगम प्रयोग से सम्बन्धित सारथी , ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल और दिनेशराय द्विवेदी का तीसरा खंबा आदि की चर्चा वर्ष -२००८ में परिकल्पना पर प्रमुखता के साथ हुयी थी और हिंदी ब्लॉगजगत के लिए यह अत्यंत ही सुखद पहलू है , की ये सारे ब्लॉग वर्ष-२००९ में भी अपनी चमक बनाये रखने में सफल रहे हैं . ...!

वर्ष -२००८ में २६/११ की घटना को लेकर हिन्दी ब्लॉग जगत काफ़ी गंभीर रहा । आतंकवादी घटना की घोर भर्त्सना हुयी और यह उस वर्ष का सबसे बड़ा मुद्दा बना , मगर इस वर्ष यानि २००९ में जिस घटना को लेकर सबसे ज्यादा बबाल हुआ वह है समलैंगिकता के पक्ष में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला ।पहली बार हिन्दुस्तान ने समलैंगिकता के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से बहस किया है। हिन्दी ब्लॉग जगत ने भी इसके पक्ष विपक्ष में बयान दिए और देश में समलैंगिकता पर बहस एकबारगी सतह पर आ गई ।

किसी ने कहा कि लैंगिक आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव का स्थान आधुनिक नागरिक समाज में नही है , पर लैंगिक मर्यादाओं के भी अपने तकाजे रहे हैं और इसका निर्वाह भी हर देश कल में होता रहा है तो किसी ने कहा कि भारतीय दंड विधान की धारा -३७७ जैसे दकियानूसी कानून की आड़ में भारत के सम लैंगिक और ट्रांसजेंदर लोगों को अकारण अपराधी माना जाता रहा है, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने किसी भी प्रकार के यौन और जेंडर रुझानों से ऊपर उठकर सभी नागरिकों के अधिकार को मान्यता देने का ऐतिहासिक कार्य किया है तो किसी ने कहा की यह विड्न्बना ही कहा जायेगा की अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाया गया यह कानून ख़ुद इंगलैंड के कानूनी किताबों में से सालो पहले मिट चुका ,लेकिन भारत में यह उनके जाने के बाद भी दसकों तक कायम है....आदि ।


रेखा की दुनिया ने अपने ०९ जुलाई २००९ के अंक में समलैगिकता की जोरदार वकालत करते हुए लिखा है जिस देश में कामसूत्र की रचना हुयी आज उसी धरती पर वात्स्यायन के बन्शज काम संवंधी अभिरुचि को बेकाम ठहराने पर लगे हैं ......!" घ्रृणा के इस दोहरे मापदंड पर उनका गुस्सा देखने लायक है इस आलेख में ।


महाशक्ति के दिनांक २९.०७.२००९ के आलेखका शीर्षक है समलैंगिंक बनो पर अजीब रिश्‍ते को विवाह का नाम न दो, विवाह को गाली मत दो । परमेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं की वह दृश्‍य बड़ा भयावह होगा जब लोग केवल आप्रकृतिक सेक्स के लिये समलैगिंक विवाह करेगे, अर्थात संतान की इच्‍छा विवाह का आधार नही होगा। अपने ब्लॉग पर अंशुमाल रस्तोगी कहते हैं कि अब धर्मगुरु तय करेंगे कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।


नया जमाना के १६ अगस्त २००९ के पोस्ट वात्‍स्‍यायन,मि‍शेल फूको और कामुकता (2) के अनुसार समलैंगिकों की एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में फूको ने कहा 'कामुकता' को 'दो पुरूषों के प्रेम' के साथ जोड़ना समस्यामूलक और आपत्तिजनक है। ''अन्य को जब हम यह एक छूट देते हैं कि समलैंगिता को शुध्दत: तात्कालिक आनंद के रूप में पेश किया जाए, दो युवक गली में मिलते हैं, एक- दूसरे को आंखों से रिझाते हैं, एक-दूसरे के हाथ एक-दूसरे के गुप्तांग में कुछ मिनट के लिए दिए रहते हैं। इससे समलैंगिकता की साफ सुथरी छवि नष्ट हो जाती है।


दस्तक ने अपने ११ July २००९ के पोस्ट में टी.वी चैनलों का उमडता गे प्रेम... पर चिंता व्यक्त की है । कहा है कि २ जुलाई का दिन दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश पूरा मीडिया जगत के शब्दों में कहें तो खेलनें वाला मु्द्दा दे गया । जी हॉ हम बात कर रहें हैं हाई कोर्ट के उस आदेश का जिसमें देश में अपनें मर्जी से समलैगिंक संबंध को मंजूरी दे दी गयी थी । ठीक हॉ भाई समलैंगिको मंजूरी मिली। उनको राहत मिला । पर उनका क्या जिनका चैन हराम हो गया । आखिर जो गे नहीं उनकी तो शामत आ गई । इधर चैनल वालों को ऐसा मसाला मिल गया जिसकों कोई भी चैनल नें छोड़ना उमदा नहीं समझा । उधर इस चक्कर और दूसरें मुद्दे जरूर छूट गए ।


दिलीप के दलान से July १० , २००९ को एक घटना का जिक्र आया की घर की घंटी बजी साथ साथ बहुत लोगों की । अंदर से गुड्डी दौड़ती हुई झट से दरवाजा खोली । बाहर खड़े भैया ने गुड्डी से कहा गुड्डी ये तुम्हारी भाभी हैं । गुड्डी के चेहरें पर खुशी के जगह बारह बज गए और वह फिर दोबारा जितनी तेजी से दौड़ती हुई आयी थी उतनी तेजी से वापस दौड़ती हुई मॉ के पास गयी । और मॉ से बोली मॉ भैया ... आपके लिए भैया लेके आए हैं । परिकल्पना पर भी मंगलवार, २८ जुलाई २००९ को ऐसी ही एक घटना का जिक्र था जिसका शीर्षक था -शर्मा जी के घर आने वाली है मूंछों वाली वहू ...बहूभोज में आप भी आमंत्रित हैं .


बात कुछ ऐसी है के ७ जुलाई २००९ के एक पोस्ट यहां आसानी से पूरी होती है समलैगिक साथी की तलाश में यह रहस्योद्घाटन किया गया है की क्लबों, बार, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक में होती है साप्ताहिक पार्टियां।पिछले 10 वर्ष से लगातार बढ़ रही है समलैंगिक प्रवृति । पिछले छह वर्ष में बढ़ा है समलैंगिकता का चलन । समलैगिकों में 16 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या अधिकदक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में होती हैं । यह प्रवृतिअप्राकृतिक संबधों को गलत नहीं मानते समलैंगिक।उनके लिए प्यार का अहसास भी अलग है और यौन संतुष्टि की परिभाषा भी अलग है। समलिंगी साथी के आकर्षण का सामीप्य ही उन्हें चरम सुख प्रदान करता है तभी तो चढ़ती उम्र में वह एक ऐसी हमराही की तलाश करते हैं जो तलाश उन्हें आम आदमी से कुछ अलग करती है।


इस सन्दर्भ में भड़ास के तेवर कुछ ज्यादा तीखे दिखे जिसमें उसने स्पष्ट कहा की समलैंगिकता स्वीकार्य नही बल्कि उपचार्य है । मोहल्‍ला का समलेंगिकता पर क़ानून की मोहर से प्रकाशित शीर्षक में कहा गया है की नैतिकता ये कहती है कि यौन संबंधों का उद्देश्य संतानोत्पत्ति है, लेकिन समलेंगिक या ओरल इंटरकोर्स में यह असंभव है। वहीं ब्लॉग खेती-बाड़ी के दिनांक ०५ जुलाई २००९ के एक पोस्ट में समलैंगिकता के सवाल पर बीबीसी हिन्‍दी ब्‍लॉग पर राजेश प्रियदर्शी की एक बहुत ही यथार्थ टिप्‍पणी आयी है, जो थोड़ा असहज करनेवाला है....लेकिन समलैंगिक मान्‍यताओं वाले समाज में इन दृश्‍यों से आप बच कैसे सकते हैं?

हमारे देश में इस वक्त दो अति-महत्वपूर्ण किंतु ज्वलंत मुद्दे हैं - पहला नक्सलवाद का विकृत चेहरा और दूसरा मंहगाई का खुला तांडव । आज के इस क्रम की शुरुआत भी हम नक्सलवाद और मंहगाई से ही करने जा रहे हैं ।फ़िर हम बात करेंगे मजदूरों के हक के लिए कलम उठाने वाले ब्लॉग , प्राचीन सभ्यताओं के बहाने कई प्रकार के विमर्श को जन्म देने वाले ब्लॉग और न्यायलय से जुड़े मुद्दों को प्रस्तुत करने वाले ब्लॉग की ....!

आम जन के दिनांक २३.०६.२००९ के अपने पोस्ट नक्सली कौन? में संदीप द्विवेदी कहते हैं,कि " गरीबी के अपनी ज़िन्दगी काट रहे लोग क्यों सरकार के ख़िलाफ़ बन्दूक थाम लेते है....इसे समझने के लिए आपको उनकी तरह बन कर सोचना होगा.....सरकार गरीबी और बेरोज़गारी खतम करने कि पुरी कोशिश कर रही है लेकिन ये दिनों दिन और भयानक होती जा रही है.....इसका कारण हम आप सभी जानते है....रोजाना छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के अर्द्धसैनिक बलों के जवान नक्सली के हांथों मरे जाते है......और जो बच जाते है वो मलेरिया या लू कि चपेटे में आ कर अपने प्राण त्याग देते हैं.....क्या अब सरकार नक्सालियों का खत्म लिट्टे की तरह करेगी.....लेकिन इतना याद रखना होगा कि लिट्टे ने अपने साथ १ लाख लोगो कि बलि ले ली.....क्या सरकार इसके लिए तैयार है.....नक्सलियों के साथ आर पार कि लड़ाई से बेहतर है कि हम अपनी घरेलू समस्या को घर में बातचीत से ही सुलझा ले....वरना एक दिन ये समस्या बहुत गंभीर हो जायेगी.....!"


वहीं मंहगाई के सन्दर्भ में हवा पानी पर प्रकाशित एक कविता पर निगाहें जाकर टिक जाती है जिसमे कहा गया है कि "हमनें इस जग में बहुतों सेजीतने का दावा कियापर बहुत कोशिशों के बाद भीहम मँहगाई से जीत नहीं पाये। " वहीं कानपुर के सर्वेश दुबे अपने ब्लॉग मन की बातें पर फरमाते हैं -" कुछ समय बाद किलो में,वस्तुएं खरीदना स्वप्न हो जायेगा , १० ग्राम घी खरीदने के लिए भी बैंक सस्ते दर पर कर्ज उपलब्ध कराएगा ....!" नमस्कार में प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव की कविता छपी है जिसमें कहा गया है कि-"मुश्किल में हर एक साँस है , हर चेहरा चिंतित उदास हैवे ही क्या निर्धन निर्बल जो , वो भी धन जिनका कि दास हैफैले दावानल से जैसे , झुलस रही सारी अमराई !घटती जाती सुख सुविधायें , बढ़ती जाती है मँहगाई !!"


आमजन से मेरा अभिप्राय उन मजदूरों से है जो रोज कुआँ खोदता है और रोज पानी पीता है । मजदूरों कि चिंता और कोई करे या न करे मगर हमारे बिच एक ब्लॉग है जो मजदूरों के हक़ और हकूक के लिए पूरी दृढ़ता के साथ विगुल बजा रहा है । जी हाँ वह ब्लॉग है बिगुल । यह ब्लॉग अपने आप को नई समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक मानता है और एक अखबार कि मानिंद मजदूर आंदोलनों की खबरे छापता है । यह ब्लॉग तमाम मजदूर आंदोलनों की खबरों से भरा-पडा है । चाहे वह गोरखपुर में चल रहे मजदूर आन्दोलन की ख़बर हो अथवा गुरगांव या फ़िर लुधियाना का मामला पूरी दृढ़ता के साथ परोसा गया है ।


आईये अब चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जहाँ होती है प्राचीन सभ्यताओं की वकालत । जहाँ बताया गया है कि प्रारंभ में अदि मानव ने संसार को कैसे देखा होगा ? गीजा का विशाल पिरामिड २० साल में एक लाख लोगों के श्रम से क्यों बना ? फिलिपीन के नए लोकसभा भवन के सामने मनु की मूर्ति क्यों स्थापित कि गई है ? ऐसे तमाम रहस्यों कि जानकारी आपको मिलेगी इस ब्लॉग मेरी कलम से पर ।


इस ब्लॉग के दिनांक ०५.०४.२००९ के प्रकाशित आलेख -यूरोप में गणतंत्र या फिर प्रजातंत्र ने मुझे बरबस आकर्षित किया और मैं इस ब्लॉग को पढ़ने के लिए विवश हो गया । इस आलेख में बताया गया है कि -"यूरोप के सद्य: युग में गणतंत्र (उसे वे प्रजातंत्र कहते हैं) के कुछ प्रयोग हुए हैं। इंगलैंड में इसका जन्म हिंसा में और फ्रांस में भयंकर रक्त-क्रांति में हुआ। कहा जाता है, 'फ्रांस की राज्य-क्रांति ने अपने नेताओं को खा डाला।' और उसीसे नेपोलियन का जन्म हुआ, जिसने अपने को 'सम्राट' घोषित किया। और इसीमें हिटलर, मुसोलिनी एवं स्टालिन सरीखे तानाशाहों का जन्म हुआ। कैसे उत्पन्न हुआ यह प्रजातंत्र का विरोधाभास ?"
इसमें यह भी उल्लेख है कि -"व्यक्ति से लेकर समष्टि तक एक समाज-जीवन खड़ा करने में भारत के गणतंत्र के प्रयोग संसार को दिशा दे सकते हैं। कुटुंब की नींव पर खड़ा मानवता का जीवन शायद 'वसुधैव कुटुंबकम्' को चरितार्थ कर सके।"

प्राचीन सभ्यताओं कि वकालत के बाद आईये चलते है सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यवहारों - लोकाचारों में निभाती-टूटती मानवीय मर्यादाओं पर वेबाक टिपण्णी करने वाले और कानूनी जानकारियाँ देने वाले दो महत्वपूर्ण ब्लॉग पर । एक है तीसरा खंबा और दूसरा अदालत ।
ऐसा ही एक आलेख तीसरा खंबा ब्लॉग पर मेरी नजरों से दिनांक ३१.०५.२००९ को गुजरा । आलेख का शीर्षक था आरक्षण : देश गृहयुद्ध की आग में जलने न लगे । इसमें एक सच्चे भारतीय कि आत्मिक पीड़ा प्रतिविंबित हो रही है । इस तरह के अनेको चिंतन से सजा हुआ है यह ब्लॉग । सच तो यह है कि अपने उदभव से आज तक यह ब्लॉग अनेक सारगर्भित पोस्ट देये हैं , किंतु वर्ष-२००९ में यह कुछ ज्यादा मुखर दिखा ।
आईये अब वहां चलते हैं जहाँ बार-बार कोई न जाना चाहे , जी हाँ हम बात कर रहे हैं अदालत की । मगर यह अदालत उस अदालत से कुछ अलग है । यहाँ बात न्याय की जरूर होती है , फैसले की भी होती है और फैसले से पहले हुयी सुनबाई की भी होती है मगर उन्ही निर्णयों को सामने लाया जाता है जो उस अदालत में दिया गया होता है । यानि यह अदालत ब्लॉग के रूप में एक जीबंत इन्सायिक्लोपिदिया है । मुकद्दमे में रूचि दिखाने बालों के लिए यह ब्लॉग अत्यन्त ही कारगर है , क्योंकि यह सम सामयिक निर्णयों से हमें लगातार रूबरू कराता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि भिलाई छतीसगढ़ के लोकेश के इस ब्लॉग में दिनेशराय द्विवेदी जी की भी सहभागिता है , यानि सोने पे सुहागा !

आईये अब चलते हैं सामाजिक , सांस्कृतिक और एतिहासिक महत्व से संवंधित विविध विषयों पर केंद्रित कुछ महत्वपूर्ण पोस्ट की ओर । " ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का माध्यम है। पर सार्वजनिक रूप से अपने को अभिव्यक्त करना आप पर जिम्मेदारी भी डालता है। लिहाजा, अगर आप वह लिखते हैं जो अप्रिय हो, तो धीरे धीरे अपने पाठक खो बैठते हैं।" यह कहना है श्री ज्ञान दत्त पांडे जी का मानसिक हलचल के २६ जनवरी के पोस्ट अपनी तीव्र भावनायें कैसे व्यक्त करें? पर व्यक्त की गई टिपण्णी में । वहीं उड़न तश्तरी .... के १३ फरवरी (प्रेम दिवस ) के पोस्ट मस्त रहें सब मस्ती में... में श्री समीर भाई ने बहुत ही मार्मिक बोध कथा का जिक्र किया है कि" एक साधु गंगा स्नान को गया तो उसने देखा कि एक बिच्छू जल में बहा जा रहा है। साधु ने उसे बचाना चाहा। साधु उसे पानी से निकालता तो बिच्छू उसे डंक मार देता और छूटकर पानी में गिर जाता। साधु ने कई बार प्रयास किया मगर बिच्छू बार-बार डंक मार कर छूटता जाता था। साधु ने सोचा कि जब यह बिच्छू अपने तारणहार के प्रति भी अपनी डंक मारने की पाशविक प्रवृत्ति को नहीं छोड़ पा रहा है तो मैं इस प्राणी के प्रति अपनी दया और करुणा की मानवीय प्रवृत्ति को कैसे छोड़ दूँ। बहुत से दंश खाकर भी अंततः साधु ने उस बिच्छू को मरने से बचा लिया..........!" जबकि २९ मार्च के घुघूतीबासूती पर प्रकाशित पोस्ट गाय के नाम पर ही सही में पॉलीथीन की थैलियाँ हमारे पर्यावरण के लिए कितना घातक हैं यह महसूस कराने कि विनम्र कोशिश की गई है जो प्रशंसनीय है । सारथी के २२ अप्रैल के एक पोस्ट अस्मत लुटाने के सौ फार्मूले ! में श्री शास्त्री जे सी फिलिप जी के सारगर्भित विचारों को पढ़ने के बाद मुझे यह महसूस हुआ कि सचमुच पश्चिमी सभ्यता के प्रति हमारा रुझान हमारी संस्कृति को कलंकित कर रहा है । शास्त्री जी कहते हैं कि -"पिछले कुछ सालों से भारत में विदेशी पत्रिकाओं एवं सीडी की बाढ आई हुई है. इसका असर सीधे सीधे हमारी युवा पीढी पर हो रहा है. इसके सबसे अच्छे दो नमूने हैं “प्रोग्रेस” के नाम पर भारतीय जवानों को शराबी बनाने की साजिश (पब संस्कृति) और बाबा-बाल्टियान दिवस (वेलेन्टाईन) जैसे मानसिक-व्यभिचार पर आधारित त्योहार ।" क्वचिदन्यतोअपि..........! के २४मईके पोस्ट आकाश गंगा को निहारते हुए .... में श्री अरविन्द मिश्र विजलिविहिन गाँव का बहुत ही सुन्दर तस्वीर प्रस्तुत करते दिखाई देते हैं । वहीं प्रेम ही सत्य है के ३० मई के पोस्ट समझदार को इशारा काफी पर मीनाक्षी जी मानवीय संवेदनाओं को बड़े ही सहज ढंग से अभिव्यक्त करती दिखायी देती हैं । जबकि रंजना भाटिया जी के ब्लॉग कुछ मेरी कलम से के २५ जून के पोस्ट कविता सुनाने के लिए पैसे :) पर सन १९६० का एक सच्चा वाकया सुनाती हुयी कवियित्री रंजू कहती है-"यह किस्सा ।सन १९६० के आस पास की बात है दिल्ली के जामा मस्जिद के पास उर्दू बाजार का .यहाँ एक दुकान थी मौलवी सामी उल्ला की ॥जहाँ हर इतवार को एक कवि गोष्ठी आयोजित की जाती ॥कुछ कवि लोग वहां पहुँच कर अपनी कविताएं सुनाया करते सुना करते और कुछ चर्चा भी कर लेते सभी अधिकतर शायर होते कविता लिखने ,सुनाने के शौकीन ,सुनने वाला भी कौन होता वही स्वयं कवि एक दूजे की सुनते , वाह वाह करते और एक दूजे को दाद देते रहते..........!"२५ अप्रैल २००९ को प्रकाशित आलेख पर अचानक जाकर निगाहें ठिठक जाती है , जिसका शीर्षक है देश का बीमा कैसे होगा ? इस आलेख में एक सच्चे भारतीय की अंत: पीडा से अवगत हुआ जा सकता है । दालान में प्रकाशित इस आलेख की शुरुआत इन शब्दों से हुयी है -"देश का बीमा कैसे होगा ? किसके हाथ देश सुरक्षित रहेगा ? इतिहास कहता है - किस किस ने लूटा ! जिस जिस ने नहीं लूटा - वोह इतिहास के पन्नों से गायब हो गया ! गाँधी जी , राजेन बाबु , तिलक इत्यादी को अब कौन पढ़ना और अपनाना चाहता है ?" इसी क्रम में दूसरा आलेख जो पढ़ने के लिए मजबूर करता है वह है कभी गिनती से जामुन खरीदा है ..... जी हाँ , ममता टी वी पर ३० मार्च को प्राकशित इस आलेख में ममता जी कहती है कि "आपको गिनती से जामुन खरीदने का अनुभव हुआ है कि नही हम नही जानते है पर हमें जरुर अनुभव हुआ है । गिनती से जामुन खरीदने का अनुभव हमें हुआ है और वो भी गोवा में ।"ममता टी वी एक गृहस्वामिनी की कलम से निकले सुझाव, वर्णन, चित्र एवं अन्य आलेख से संवंधित ऐसा चिट्ठा है जिसके कुछ पोस्ट पढ़ते हुए आप अपने दर्द को महसूस कर सकते हैं । इसी क्रम में तीसरा आलेख जो पढ़ने के लिए मजबूर करता है वह है मार्केटिंग का हिंदी फंडा । यह आलेख आशियाना का १५ मई २००९ का पोस्ट है , जिसमे बताया गया है कि "एक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी।" हिन्दुस्तान में हिन्दी का ऐसा दुर्भाग्य? सचमुच निंदनीय है । यह ग़ाज़ियाबाद निवासी रवीन्द्र रंजन का निजी चिट्ठा है और अपने पञ्च लाईन से आकर्षित करता है, जिसमें कहा गया है कि कुछ कहने स‌े बेहतर है कुछ किया जाए, जिंदा रहने स‌े बेहतर है जिया जाए.... ! इसी क्रम में आगे जिस आलेख पर नज़र जाती है वह है - आज भी हर चौथा भारतीय भूखा सोता है । धनात्मक चिन्तन पर २१ अगस्त को प्रकाशित पोस्ट के माध्यम से ब्लोगर ने कहा है कि जब भारत विश्व शक्ति बनकर उभरने का दावा कर रहा है,ऐसे समय देश में हर चौथा व्यक्ति भूखा है। भारत में भूख और अनाज की उपलब्धता पर भारत के एक ग़ैर-सरकारी संगठन की ताज़ा रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया है इस ब्लॉग पोस्ट में । फुरसतिया के २३ सितंबर के एक पोस्ट मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन पढ़ते हुए जब हम अनायास ही श्री अनूप शुक्ल जी के दोहे से रू-ब-रू होते हैं तो होठों से ये शब्द फ़ुट पड़ते है - क्या बात है ...! एक बानगी देखिये- "मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन, आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।
चावल अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत, इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।"

अब हम चर्चा करेंगे वर्ष -२००९ के उन महत्वपूर्ण आलेखों , व्यंग्यों , लघुकथाओं , कविताओं और ग़ज़लों पर ,जो विगत लोकसभा चुनाव पर केंद्रित रहते हुए गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजायश छोड़ गए ....!आईये शुरुआत करते हैं व्यंग्य से , क्योंकि व्यंग्य ही वह माध्यम है जिससे सामने वाला आहत नहीं होता और कहने वाला अपना काम कर जाता है । ऐसा ही एक ब्लॉग पोस्ट है जिसपर सबसे पहले मेरी नज़र जाकर ठहरती है ....१५ अप्रैल को सुदर्शन पर प्रकाशित इस ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक है - आम चुनाव का पितृपक्ष ......व्यंग्यकार का कहना है कि -"साधो, इस साल दो पितृ पक्ष पड़ रहे हैं । दूसरा पितृ पक्ष पण्डितों के पत्रा में नहीं है लेकिन वह चुनाव आयोग के कलेण्डर में दर्ज है । इस आम चुनाव में तुम्हारे स्वर्गवासी माता पिता धरती पर आयेंगे, वे मतदान केन्द्रों पर अपना वोट देंग और स्वर्ग लौट जायेंगे ।" इस व्यंग्य में नरेश मिश्र ने चुटकी लेते हुए कहा है कि -" अब मृत कलेक्ट्रेट कर्मी श्रीमती किशोरी त्रिपाठी को अगर मतदाता पहचान पत्र हासिल हो जाता है और उसमें महिला की जगह पुरूष की फोटो चस्पा है तो इस पर भी आला हाकिमों और चुनाव आयोग को अचरज नहीं होना चाहिए । अपनी धरती पर लिंग परिवर्तन हो रहा है तो स्वर्ग में भी क्यों नहीं हो सकता । स्वर्ग का वैज्ञानिक विकास धरती के मुकाबले बेहतर ही होना चाहिए । "
गद्य व्यंग्य के बाद आईये एक ऐसी व्यंग्य कविता पर दृष्टि डालते हैं जिसमें उस अस्त्र का उल्लेख किया गया है जिसे गाहे-बगाहे जनता द्बारा विबसता में इस्तेमाल किया जाता है । जी हाँ शायद आप समझ गए होंगे कि मैं किस अस्त्र कि बात कर रहा हूँ ?जूता ही वह अस्त्र है जिसे जॉर्ज बुश और पी चिदंबरम के ऊपर भी इस्तेमाल किया जा चुका है । मनोरमा के ०९ अप्रैल के पोस्ट जूता-पुराण में श्यामल सुमन का कहना है कि -"जूता की महिमा बढ़ी जूता का गुणगान।चूक निशाने की भले चर्चित हैं श्रीमान।।निकला जूता पाँव से बना वही हथियार।बहरी सत्ता जग सके ऐसा हो व्यवहार।।भला चीखते लोग क्यों क्यों करते हड़ताल।बना शस्त्र जूता जहाँ करता बहुत कमाल।।"
इस चुनावी बयार में कविता की बात हो और ग़ज़ल की बात न हो तो शायद बेमानी होगी वह भी उस ब्लॉग पर जिसके ब्लोगर ख़ुद गज़लकार हो । ०९ अप्रैल को अनायास हीं मेरी नज़र एक ऐसी ग़ज़ल पर पड़ी जिसे देखकर -पढ़कर मेरे होठों से फ़ुट पड़े ये शब्द - क्या बात है...!
चुनावी बयार पर ग़ज़ल के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को धार देने की यह विनम्र कोशिश कही जा सकती है । पाल ले इक रोग नादां... पर पढिये आप भी गौतम राजरिशी की इस ग़ज़ल को । ग़ज़ल के चंद अशआर देखिये-न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों सेकरे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में.......बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सरफिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी मेंखयालो-सोच की ज़द में तेरा इक नाम क्या आयामुकम्मिल हो गये मेरे कई अश`आर चुटकी में......!

मैत्री में २४ मई के अपने पोस्ट आम चुनाव से मिले संकेत के मध्यम से अतुल कहते हैं कि "लोकसभा चुनाव के परिणाम में कांग्रेस को 205 सीटें मिलने के बाद पार्टी की चापलूसी परंपरा का निर्वाह करते हुए राहुल गांधी और सोनिया गांधी की जो जयकार हो रही है, वह तो संभावित ही थी, लेकिन इस बार आश्चर्यचकित कर देनेवाली बात यह है कि देश का पूरा मीडिया भी इस झूठी जय-जयकार में शामिल हो गया है। इस मामले में मीडिया ने अपने वाम-दक्षिण होने के सारे भेद को खत्म कर लिया है।"

दरवार के १६ मार्च के पोस्ट जल्लाद नेता बनकर आ गए में धीरू सिंह ने नेताओं के फितरत पर चार पंक्तियाँ कुछ इसप्रकार कही है -" नफरत फैलाने आ गए, आग लगाने आ गए, चुनाव क्या होने को हुए-जल्लाद चहेरे बदल नेता बनकर आ गए । "

प्राइमरी का मास्टर के १३ मार्च के पोस्ट में श्री प्रवीण त्रिवेदी कहते हैं पालीथिन के उपयोग करने पर प्रत्याशी मुसीबत में फंस सकते हैं । जी हाँ अपने आलेख में यह रहस्योद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा है की "पर्यावरण संरक्षण एवं संतुलन समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। बिगड़ते पर्यावरण के इसी पहलू को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनावी समर में पालीथिन को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।इसके तहत पालीथिन, पेंट और प्लास्टिक के प्रयोग को भी वर्जित कर दिया गया है।मालूम हो कि चुनाव प्रचार के दौरान पालीथिन का इस्तेमाल बैनर, पंपलेट तथा स्लोगन लिखने के रूप में किया जाता है। बाद में एकत्र हजारों टन कचरे का निपटारा बहुत बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इस बार यह सब नहीं चल पाएगा।"
कस्‍बा के ०९ अप्रैल के पोस्ट लालू इज़ लॉस्ट के माध्यम से श्री रविश कुमार ने बिहार के तीन प्रमुख राजनीतिक स्तंभ लालू-पासवान और नीतिश के बाहाने पूरे चुनावी माहौल का रेखांकन किया है । श्री रविश कुमार कहते है कि -"बिहार में जिससे भी बात करता हूं,यही जवाब मिलता है कि इस बार दिल और दिमाग की लड़ाई है। जो लोग बिहार के लोगों की जातीय पराकाष्ठा में यकीन रखते हैं उनका कहना है कि लालू पासवान कंबाइन टरबाइन की तरह काम करेगा। लेकिन बिहार के अक्तूबर २००५ के नतीजों को देखें तो जातीय समीकरणों से ऊपर उठ कर बड़ी संख्या में वोट इधर से उधर हुए थे। यादवों का भी एक हिस्सा लालू के खिलाफ गया था। मुसलमानों का भी एक हिस्सा लालू के खिलाफ गया था। पासवान को कई जगहों पर इसलिए वोट मिला था क्योंकि वहां के लोग लालू के उम्मीदवार को हराने के लिए पासवान के उम्मीदवार को वोट दे दिया। अब उस वोट को भी लालू और पासवान अपना अपना मान रहे हैं। "
अनसुनी आवाज के २८ मार्च के एक पोस्ट चुनावों में हुई भूखों की चिंता में अन्नू आनंद ने कहा है की- "कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सबके लिए अनाज का कानून देने का वादा किया है। घोषणा पत्र में सभी लोगों को खासकर समाज के कमजोर तबके को पर्याप्त भोजन देने देने का वादा किया गया है। पार्टी ने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले हर परिवार को कानूनन हर महीने 25 किलो गेंहू या चावल तीन रुपए में मुहैया कराने का वादा किया है। पार्टी की घोषणा लुभावनी लगने के साथ हैरत भी पैदा करती है कि अचानक कांग्रेस को देश के भूखों की चिंता कैसे हो गई।" वहीं अपने २९ मई के पोस्ट में बर्बरता के विरुद्ध बोलते हुए चिट्ठाकार का कहना है -चुनावों में कांग्रेस की जीत से फासीवाद का खतरा कम नहीं होगा।
चुनाव के बाद के परिदृश्य पर अपनी सार्थक सोच को प्रस्थापित करते हुए रमेश उपाध्याय का कहना है की -"भारतीय जनतंत्र में--एक आदर्श जनतंत्र की दृष्टि से--चाहे जितने दोष हों, चुनावों में जनता के विवेक और राजनीतिक समझदारी का परिचय हर बार मिलता है। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी उसकी यह समझदारी प्रकट हुई।" यह ब्लॉग पोस्ट ०२ जून को लोकसभा चुनावों में जनता की राजनीतिक समझदारी शीर्षक से प्रकाशित है ।

१९ मई को भारत का लोकतंत्र पर प्रकाशित ब्लॉग पोस्ट पर अचानक नज़र ठहर जाती है जिसमें १५वि लोकसभा चुनावों की पहली और बाद की दलगतस्थिति पर व्यापक चर्चा हुयी है । वहीं ३० अप्रैल को अबयज़ ख़ान के द्वारा अर्ज है - उन चुनावों का मज़ा अब कहां ? जबकि २७ अप्रैल को कुलदीप अंजुम अपने ब्लॉग पोस्ट के मध्यम से अपपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहते हैं-" सुबह को कहते हैं कुछ शाम को कुछ और होता ,क्या अजब बहरूपिये हैं, हाय ! भारत तेरे नेता !! २५ अप्रैल को हिन्दी युग्म पर सजीव सारथी का कहना है की - "आम चुनावों में आम आदमी विकल्पहीन है ....!"कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिये- "चुनाव आयोग में सभी प्रतिभागी उम्मीदवार जमा हैं,आयु सीमा निर्धारित है तभी तो कुछ सठियाये धुरंधरदांत पीस रहे हैं बाहर खड़े, प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही सही,भेजे है अपने नाती रिश्तेदार अन्दर,जो आयुक्त को समझा रहे हैं या धमका रहे हैं,"जानता है मेरा....कौन है" की तर्ज पर...बाप, चाचा, ताया, मामा, जीजा आप खुद जोड़ लें...!"
राजनीति और नेता ऐसी चीज है जिसपर जितना लिखो कम है , इसलिए आज की इस चर्चा को विराम देने के लिए मैंने एक अति महत्वपूर्ण आलेख को चुना है । यह आलेख श्री रवि रतलामी जी के द्बारा दिनांक 14-4-2009 को Global Voices हिन्दी पर प्रस्तुत किया गया है जो मूल लेखिका रिजवान के आलेख का अनुवाद है । आलेख का शीर्षक है- आम चुनावों में लगी जनता की पैनी नज़र । इन पंक्तियों से इस आलेख की शुरुआत हुयी है -"हम जिस युग में रह रहे हैं वहाँ जानकारियों का अतिभार है। ज्यों ज्यों नवीन मीडिया औजार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बना रहे हैं, साधारण लोग भी अपना रुख और अपने इलाके की मौलिक खबरें मीडिया तक पहुंचा रहे हैं। ट्विटर और अन्य सिटिज़न मीडिया औजारों की बदौलत ढेरों जानकारी आजकल तुरत फुरत साझा कर दी जाती है। मुम्बई आतंकी हमलों के दौरान ट्विटर के द्वारा जिस तरह की रियल टाईम यानी ताज़ातरीन जानकारियाँ तुरत-फुरत मिलीं उनका भले ही कोई लेखागार न हो पर यह जानकारियाँ घटनाक्रम के समय सबके काम आईं।"

वर्ष -२००९ के महत्वपूर्ण चिट्ठों की जिनके पोस्ट पढ़ते हुए हमें महसूस हुआ कि यह विचित्र किंतु सत्य है । आईये उत्सुकता बढ़ाने वाले आलेखों की शुरुआत करते हैं हम मसिजीवी पर जुलाई-२००९ में प्रकाशित पोस्ट ३८ लाख हिन्दी पृष्ठ इंटरनेट पर से । इस आलेख में यह बताया गया है कि -चौदह हजार एक सौ बाइस पुस्तकों के अड़तीस लाख छत्तीस हजार पॉंच सौ बत्तीस ..... हिन्दी के पृष्ठ । बेशक ये एक खजाना है जो हम सभी को उपलब्ध है ....बस एक क्लिक की दूरी पर ...!इस संकलन में कई दुर्लभ किताबें तक शामिल हैं ।
दूसरा आलेख जो सबसे ज्यादा चौंकाता है वह है -उन्मुक्त पर २८ जून को प्रकाशित आलेख सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य । इस आलेख में श्रृष्टि के सृजन से संवंधित अनेक प्रमाणिक तथ्यों की विवेचना की गई है । वैसे यह ब्लॉग कई महत्वपूर्ण जानकारियों का पिटारा है । प्रस्तुतीकरण अपने आप में अनोखा , अंदाज़ ज़रा हट के इस ब्लॉग की विशेषता है ।इस चिट्ठे की सबसे ख़ास बात जो समझ में आयी वह है ब्लोगर के विचारों की दृढ़ता और पूरी साफगोई के साथ अपनी बात रखने की कला ।
तीसरा आलेख जो हमें चौंकता है , वह है- रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग पर ०६ अप्रैल को प्रकाशित पोस्ट चेतावनी: ऐडसेंस विज्ञापन कहीं आपको जेल की हवा न खिला दे । इसमे बताया गया है कि- ०५ अप्रैल को यानि कल इसी ब्लॉग में भारतीय समयानुसार शाम पांच से नौ बजे के बीच एक अश्लील विज्ञापन प्रकाशित होता रहा। विज्ञापन एडसेंस की तरफ से स्वचालित आ रहा था और उसमें रोमन हिन्दी में पुरुष जननांगों के लिए आमतौर पर अश्लील भाषा में इस्तेमाल किए जाने वाले की-वर्ड्स (जिसे संभवत गूगल सर्च में ज्यादा खोजा जाता है) का प्रयोग किया गया था ।
चौथा आलेख जो हमें चौंकता है वह है- अगड़म-बगड़म शैली के विचारक अलोक पुराणिक अपने ब्लॉग के दिनांक २६.०६.२००९ के एक पोस्ट के माध्यम से इस चौंकाने वाले शब्द का प्रयोग करते हैं कि -आतंकवादी आलू, कातिल कटहल…. । है न चौंकाने वाले शब्द ? उस देश में जहाँ पग-पग पर आतंकियों का खतरा महसूस किया जाता हो हम दैनिक उपयोग से संवंधित बस्तुओं को आतंकवादी कहें तो अतिश्योक्ति होगी हीं ।
लेकिन लेखक के कहने का अभिप्राय यह है कि -महंगाई जब बढ़ती है, तो टीवी पर न्यूज वगैरह में थोड़ी वैराइटी आ जाती है। वैसे तो टीवी चैनल थ्रिल मचाने के लिए कातिल कब्रिस्तान, चौकन्नी चुड़ैल टाइप सीरयल दिखाते हैं। पर तेज होती महंगाई के दिनों में हर शुक्रवार को महंगाई के आंकड़े दिखाना भर काफी होता है।
आतंकवादी आलू, कातिल कटहल, खौफनाक खरबूज, तूफानी तोरई जैसे प्रोग्राम अब रोज दिखते हैं। मतलब टीवी चैनलों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ रही है, वो सिर्फ आलू, तोरई के भाव भर दिखा रहे हैं। हम भी पुराने टाइप के हारर प्रोग्रामों से बच रहे हैं। अन्य शब्दों में कहें, तो कातिल कब्रिस्तान टाइप प्रोग्राम तो काल्पनिक हुआ करते थे, आतंकवादी आलू और कातिल कटहल के भाव हारर का रीयलटी शो हैं।
इसीप्रकार वर्ष-२००९ में मेरी दृष्टि कई अजीबो-गरीब पोस्ट पर गई । मसलन -एक हिंदुस्तानी की डायरी में १० फरबरी को प्रकाशित पोस्ट -हिंदी में साहित्यकार बनते नहीं, बनाए जाते हैं ..........प्रत्यक्षा पर २६ मार्च को प्रकाशित पोस्ट -तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है ? .........विनय पत्रिका में २७ मार्च को प्रकाशित बहुत कठिन है अकेले रहना ..... निर्मल आनंद पर ०५ फरवरी को प्रकाशित आदमी के पास आँत नहीं है क्या? .........छुट-पुट पर ०२ जुलाई को प्रकाशित पोस्ट -इंटरनेट (अन्तरजाल) का प्रयोग – मौलिक अधिकार है" .........सामयिकी पर ०९ जनवरी को प्रकाशित आलेख -ज़माना स्ट्राइसैंड प्रभाव का..........आदि ।
ये सभी पोस्ट शीर्षक की दृष्टि से ही केवल अचंभित नही करते वल्कि विचारों की गहराई में डूबने को विवश भी करते है । कई आलेख तो ऐसे हैं जो गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजायश रखते है ।
इस बात क़ा अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि वर्ष -२००७ में हिन्दी ब्लॉग की संख्या लगभग पौने चार हजार के आस- पास थी जबकि महज दो वर्षों के भीतर चिट्ठाजगत के आंकड़ों के अनुसार सक्रीय हिन्दी चिट्ठों की संख्या ग्यारह हजार के पार हो चुकी है .........वर्ष- २००९ में कानपुर से टोरंटो तक ......इलाहबाद से न्यू जर्सी तक ....... मुम्बई से लन्दन तक...... और भोपाल से दुबई तक होता रहा हिन्दी चिट्ठाकारी का धमाल ......छाया रहा कहीं हिन्दी की अस्मिता का सवाल तो कहीं आती रही हिन्दी के नाम पर भूचाल .....इसमें शामिल रहे कहीं कवि , कही कवियित्री , कहीं गीतकार , कहीं कथाकार , कहीं पत्रकार तो कहीं शायर और शायरा .....और उनके माध्यम से होता रहा हिन्दी का व्यापक और विस्तृत दायरा .....

कहीं चिटठा चर्चा करते दिखे अनूप शुक्ल तो कहीं उड़न तस्तरी प़र सवार होकर ब्लॉग भ्रमण करते दिखे समीर लाल जैसे पुराने और चर्चित ब्लोगर ....कहीं सादगी के साथ अलख जगाते दिखे ज्ञान दत्त पांडे तो कहीं शब्दों के माया जाल में उलझाते रहे अजित वाडनेकर ........कहीं हिन्दी के उत्थान के लिए सारथी का शंखनाद तो कहीं मुहल्ला और भड़ास का जिंदाबाद ......कारवां चलता रहा लोग शामिल होते रहे और बढ़ता रहा दायरा हिन्दी का कदम-दर कदम .....!

इस कारवां में शामिल रहे उदय प्रकाश , विष्णु नागर , विरेन डंगवाल , लाल्टू , बोधिसत्व और सूरज प्रकाश जैसे वरिष्ठ साहित्यकार तो दूसरी तरफ़ पुण्य प्रसून बाजपेयी और रबिश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार ....कहीं मजबूत स्तंभ की मानिंद खड़े दिखे मनोज बाजपेयी जैसे फिल्मकार तो कहीं आलोक पुराणिक जैसे अगड़म-बगड़म शैली के रचनाकार ......कहीं दीपक भारतदीप का प्रखर चिंतन दिखा तो कहीं सुरेश चिपलूनकर का महा जाल....कहीं रेडियो वाणी का गाना तो कहीं कबाड़खाना ....
तमाम समानताओं के बावजूद जहाँ उड़न तश्तरी का पलड़ा भारी दिखा वह था मानसिक हलचल के मुकाबले उड़न तश्तरी पर ज्यादा टिपण्णी आना और मानसिक हलचल के मुकावले उड़न तश्तरी के द्वारा सर्वाधिक चिट्ठों पर टिपण्णी देना । इसप्रकार सक्रियता में अग्रणी रहे श्री समीर लाल जी और सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी चिट्ठाकारी में अपनी उद्देश्यपूर्ण भागीदारी में अग्रणी दिखे श्री ज्ञान दत्त पांडे जी । रचनात्मक आन्दोलन के पुरोधा रहे श्री रवि रतलामी जी , जबकि सकारात्मक लेखन के साथ-साथ हिन्दी के प्रस्दर-प्रचार में अग्रणी दिखे श्री शास्त्री जे सी फिलिप जी । विधि सलाह में अग्रणी रहे श्री दिनेश राय द्विवेदी जी और तकनीकी सलाह में अग्रणी रहे श्री उन्मुक्त जी । वहीं श्रद्धेय अनूप शुक्ल समकालीन चर्चा में अग्रणी दिखे और श्री दीपक भारतदीप गंभीर चिंतन में । इसीप्रकार श्री राकेश खंडेलवाल जी कविता-गीत-ग़ज़ल में अग्रणी दिखे ।
महिला चिट्ठाकारों के विश्लेषण के आधार पर हम जिन नतीजों पर पहुंचे है उसके अनुसार कविता में अग्रणी रहीं रंजना उर्फ़ रंजू भाटिया वहीँ कथा-कहानी में अग्रणी रहीं निर्मला कपिला , ज्योतिषीय परामर्श में अग्रणी रही संगीता पूरी वहीँ व्यावहारिक वार्तालाप में अग्रणी रही ममता । समकालीन सोच में घुघूती बासूती और गंभीर काव्य चिंतन में अग्रणी दिखी आशा जोगलेकर। सांस्कृतिक जागरूकता में अग्रणी दिखी अल्पना वर्मा वहीँ समकालीन सृजन में अग्रणी रही प्रत्यक्षा । इसीप्रकार कविता वाचकनवी सांस्कृतिक दर्शन में अग्रणी रही।
हिन्दी ब्लोगिंग के सात आश्चर्य यानि वर्ष के सात अद्भुत चिट्ठे । इसमें कोई संदेह नही कि संगणित भूमंडल की अद्भुत सृष्टि हैं चिट्ठे।यदि हिन्दी चिट्ठों की बात की जाय तो आज का हिन्दी चिटठा अति संवेदनात्मक दौर में है , जहां नित नए प्रयोग भी जारी हैं। मसलन समूह ब्लाग का चलन ज्यादा हो गया है। ब्लागिंग कमाई का जरिया भी बन गया है। लिखने की मर्यादा पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। ब्लाग लेखन को एक समानान्तर मीडिया का दर्जा भी हासिल हो गया है। हिंदी साहित्य के अलावा विविध विषयों पर विशेषज्ञ की हैसियत से भी ब्लाग रचे जा रहे हैं । विज्ञान, सूचना तकनीक, स्वास्थ्य और राजनीति वगैरह कुछ भी अछूता नहीं है। समस्त प्रकार के विश्लेषणों के उपरांत वर्ष के सात अद्भुत चिट्ठों के चयन में केवल दो व्यक्तिगत चिट्ठे ही शामिल हो पा रहे थे जबकि पांच कम्युनिटी ब्लॉग थे , ऐसे में उन पाच कम्युनिटी ब्लॉग को अलग रखने के बाद वर्ष-२००९ के सात अद्भुत हिन्दी चिट्ठों की स्थिति बनी है वह इसप्रकार है --ताऊ-डौंट-इन ( रामपुरिया का हरयाणवी ताऊनामा ...),हिन्दी ब्लॉग टिप्स,रेडियो वाणी,शब्दों का सफर,सच्चा शरणम,महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar) और कल्पतरु ।
अब आईये उन चिट्ठाकारों की बात करते है, जिनका अवदान हिन्दी चिट्ठाकारी में अहम् है और वर्ष -२००९ में अपनी खास विशेषताओं के कारण लगातार चार्चा में रहे हैं । साहित्यिक-सांस्कृतिक -सामाजिक - विज्ञानं - कला - अध्यात्म और सदभावनात्मक लेखन में अपनी खास शैली के लिए प्रसिद्द चिट्ठाकारो में लोकप्रिय एक-एक चिट्ठाकार का चयन किया गया है । इस विश्लेषण के अंतर्गत जिन सात चिट्ठाकारों का चयन किया गया है ,उसमें भाषा-कथ्य और शिल्प की दृष्टि से उत्कृष्ट लेखन के लिए श्री प्रमोद सिंह ( चिट्ठा - अजदक ) । व्यंग्य लेखन के लिए श्री अविनाश वाचस्पति (चिट्ठा - की बोर्ड का खटरागी ) । लोक -कला संस्कृति के लिए श्री विमल वर्मा ( चिटठा- ठुमरी ) । सामाजिक जागरूकता से संबंधित लेखन के लिए श्री प्रवीण त्रिवेदी ( चिटठा- प्राईमरी का मास्टर ) । विज्ञानं के लिए श्री अरविन्द मिश्र ( चिटठा - साईं ब्लॉग ) । अभिकल्पना और वेब-अनुप्रयोगों के हिन्दीकरण के लिए श्री संजय बेगाणी ( चिटठा - जोग लिखी ) और सदभावनात्मक लेखन के लिए श्री महेंद्र मिश्रा ( चिट्ठा - समयचक्र ) का उल्लेख किया जाना प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है । उल्लेखनीय है कि ये सातों चिट्ठाकार केवल चिट्ठा से ही नहीं अपने-अपने क्षेत्र में सार्थक गतिविधियों के लिए भी जाने जाते है और कई मायनों में अनेक चिट्ठाकारों के लिए प्रेरक की भूमिका निभाते हैं ।
विदेशों में रहने वाले हिंदी चिट्ठाकार इस दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है कि उनकी सोच - विचारधाराओं में अलग-अलग देशों की विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हिन्दी की व्यापक रचनाशीलता का अंग बनती हैं, विभिन्न देशों के इतिहास और भूगोल का हिन्दी के पाठकों तक विस्तार होता है। विभिन्न शैलियों का आदान -प्रदान होता है और इस प्रकार हिंदी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब होती दिखती है । वैसे विश्व के विभिन्न देशों में बसे अप्रवासी /प्रवासी भारतीय साहित्यकारों / चिट्ठाकारों / कवियों में - अमेरिका से- अंजना संधीर, अखिलेश सिन्हा,अचला दीपक कुमार, डॉ अनिल प्रभा कुमार, डॉ. अमिता तिवारी, अनूप भार्गव, अरुण, कैलाश भटनागर, नीलम जैन, बिंदु भट्ट, मानोशी चैटर्जी , मैट रीक , राकेश खंडेलवाल , राजीव रत्न पराशर , राधेकांत दवे , रानी पात्रिक , डॉ राम गुप्ता , प्रो. रामनाथ शर्मा , रूपहंस हबीब , रेनू गुप्ता , लावण्या शाह , विजय ठाकुर , विनय बाजपेयी , श्रीकृष्ण माखीजा , स्वयम दत्ता , सरोज भटनागर , साहिल लखनवी , डॉ सुदर्शन प्रियदर्शिनी , सुभाष काक , सुरेंद्र नाथ तिवारी , सुरेंद्रनाथ मेहरोत्रा , डॉ सुषम बेदी , सौमित्र सक्सेना , हिम्मत मेहता , ऑस्ट्रेलिया से- ब्बास रज़ा अल्वी , अनिल वर्मा , ओमकृष्ण राहत , कैलाश भटनागर , राय कूकणा , रियाज़ शाह , शैलजा चंद्रा , सादिक आरिफ़ , सुभाष शर्मा , हरिहर झा , इंडोनेशिया से— अशोक गुप्ता , राजेश कुमार सिंह , ओमान से— रामकृष्ण द्विवेदी मधुकर, कुवैत से— दीपिका जोशी संध्या , कैनेडा से— अश्विन गांधी , चंद्र शेखर त्रिवेदी , पराशर गौड़ , भगवत शरण श्रीवास्तव शरण , भारतेंदु श्रीवास्तव , डॉ शैलजा सक्सेना , स्वप्न मंजूषा शैल , सुमन कुमार घई , जर्मनी से— अंशुमान अवस्थी , रजनीश कुमार गौड़ , विशाल मेहरा , जापान से— प्रो सुरेश ऋतुपर्ण , डेनमार्क से— चाँद हदियाबादी , दक्षिण अफ्रीका से— अमिताभ मित्रा , संतोष कुमार खरे , न्यूज़ीलैंड से— विजेंद्र सागर , नॉर्वे से— प्रभात कुमार , रंजना सोनी , सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक नीदरलैंड से— अंजल प्रकाश , बाहरीन से— डॉ परमजीत ओबेराय , ब्रिटेन से— डॉ. अजय त्रिपाठी , इंदुकांत शुक्ला , उषाराजे सक्सेना , उषा वर्मा , डॉ. कृष्ण कन्हैया , गौतम सचदेव , तेजेंद्र शर्मा , दिव्या माथुर , प्राण शर्मा , पुष्पा भार्गव , महावीर शर्मा , मोहन राणा , ललित मोहन जोशी , लालजी वर्मा , शैल अग्रवाल पोलैंड से— डॉ सुरेंद्र भूटानी , फ्रांस से— हंसराज सिंह वर्मा कल्पहंस , फ़ीजी— आलोक शर्मा , जय नन प्रसाद मॉरिशस— गुलशन सुखलाल , युगांडा से— डॉ भावना कुंअर , मनोज भावुक , रूस से— अनिल जनविजय, संयुक्त अरब इमारात से— अर्बुदा ओहरी, आरती पाल बघेल , कृष्ण बिहारी , चंद्रमोहन भंडारी , पूर्णिमा वर्मन, मीनाक्षी धन्वंतरि , सिंगापुर से— अमरेंद्र नारायण , दीपक वाईकर , शार्दूला , शैलाभ शुभिशाम , सूरीनाम से— पुष्पिता , त्रिनिडाड से— आशा मोर आदि सर्वाधिक सक्रीय हैं ।
एक चिट्ठाकार की हैसियत से वर्ष -२००९ में सर्वाधिक सक्रीय रहे प्रवासी/ अप्रवासी चिट्ठाकारों में अग्रणी रहे श्री समीर लाल , राकेश खंडेलवाल , महावीर शर्मा , अनुराग शर्मा , राजेश दीपक आर सी मिश्र दिगम्बर नासवा babali जीतू , मीनाक्षी , देवी नागरानी , लावण्या शाह , आशा जोगलेकर , कविता वाचक्नवी Kavita Vachaknavee आदि । वर्ष के तीन प्रखर इस प्रकार है -श्री महावीर शर्मा,श्री अनुराग शर्मा और श्री जीतू ।
पांच सर्वाधिक लोकप्रिय सामुदायिक चिट्ठों का उल्लेख किया जाए तो वह क्रमश: इस प्रकार है -मोहल्ला,चिट्ठा चर्चा, भड़ास blog,कबाड़खाना और tasliim । उपरोक्त चिट्ठों के अलावा वर्ष -२००९ में जिन अन्य महत्वपूर्ण चिट्ठों की सहभागिता परिलक्षित हुयी है उनमें से महत्वपूर्ण है - महाशक्ति समूह । इस ब्लॉग के प्रमुख सदस्य हैं -प्रमेन्द्र प्रताप सिंह amit mann मिहिरभोज Rajeev गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' तेज़ धार राज कुमार रीतेश रंजन आशुतॊष Abhiraj Suresh Chiplunkar Shakti महासचिव Vishal Mishra पुनीत ओमर maya anoop neeshoo अभिषेक शर्मा Chandra Vaibhav Singh आदि । कहा गया है कि सामूहिकता का मतलब केवल मुंडी गिनाने से नहीं होता वल्कि सामूहिक रूप से सबके हितार्थ कार्य करने से होता है । इस दृष्टि से जो चिट्ठे प्रशंसनीय है उनका उल्लेख प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है , ये नाम इस प्रकार है- KHAJANA NOW जबलपुर-ब्रिगेड ,नुक्कड़,चोखेर वाली,अनुनाद,नैनीताली और उत्तराखंड के मित्र,उल्टा तीर,कवियाना,माँ !,पिताजी,जनोक्ति : संवाद का मंच,बुन्देलखण्ड,हिन्दी साहित्य मंच,पांचवा खम्बा,पहला एहसास,मेरे अंचल की कहावतें,प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा,लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन,कुछ तो है.....जो कि !,कबीरा खडा़ बाज़ार में,हिन्दोस्तान की आवाज़,Science Bloggers' Association,हमारी बहन शर्मीला (our sister sharmila),फाइट फॉर राईट,हमारी अन्‍जुमन,हिन्दुस्तान का दर्द ,भोजपुरी चौपाल,TheNetPress.Com.,उल्टा तीर,सूचना का अधिकार,हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे,हँसते रहो हँसाते रहो,Ek sawaal tum karo,स्मृति-दीर्घा,बगीची,तेताला,भारतीय शिक्षा - Indian Education,मीडिया मंत्र (मीडिया की खबर),हास्य कवि दरबार,सबद-लोक,The World of Words,वेबलाग पर...At Hindi Weblog,यूँ ही निट्ठल्ला,नारी का कविता ब्लॉग,नारी ब्लॉग के सदस्यों का परिचय,बुनो कहानी,नन्हा मन,दाल रोटी चावल,आदि ।

वर्ष-२००९ में हिन्दी ब्लोगिंग के मुद्दों पर आधारित १० शीर्ष चिट्ठाकार की बात करने से पहले हम कुछ ऐसे यशश्वी चिट्ठाकारों के चर्चा करना चाहते हैं जिनके अवदान को हिंदी ब्लॉग जगत कभी नकार ही नहीं सकता । कभी-कभी ऐसा भी होता है जब हम राजनीति , खेल , मनोरंजन और मुद्दों में उलझकर साहित्य - संस्कृति और कला को महत्व देने वाले महत्वपूर्ण चिट्ठों को भूल जाते हैं जबकि ये तीनों तत्त्व किसी भी देश और समाज के आईना होते है । आईये हम कुछ ऐसे चिट्ठाकारों की चर्चा करते हैं जिनके साहित्यिक- सांस्कृतिक और कलात्मक योगदान से समृद्ध हो रहा है अपना यह हिंदी ब्लॉग जगत । इस प्रकार के सारे चिट्ठों की चर्चा करना इस संक्षिप्त विश्लेषण के अंतर्गत संभव नहीं है फिर भी उन लेखकों -कलाकारों आदि की चर्चा के जा रही है जिनकी वर्ष-२००९ में सर्वाधिक सक्रियता रही है ।
वर्ष -२००९ में अपनी गतिविधियों से लगातार चर्चा में रहे हैं श्री अलवेला खत्री,अजय कुमार झा,बी एस पाबला,जी के अवधिया,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,रश्मि प्रभा,गौतम राजरिशी,संजीव तिवारी,काजल कुमार,विरेन्द्र जैन,गिरीश पंकज,महफूज़ अली आदि ।
जो वर्ष-२००८ के उत्तरार्द्ध में अथवा वर्ष-२००९ के मध्य तक हिंदी ब्लॉग जगत का हिस्सा बने हैं और अपने कौशल व् प्रतिभा के बल पर वर्ष-२००९ के चर्चित चिट्ठाकारों में शुमार हो चुके हैं वे यशश्वी चिट्ठाकार हैं -ओम आर्य, कृष्ण कुमार यादव,राज कुमार केसवानी,ललित शर्मा,खुशदीप सहगल,गिरिजेश राव, अभिषेक ओझा,इरफ़ान,सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट) और प्रीति टेलर आदि ।
वर्ष के ऐसे दस चिट्ठाकारो की जो पूरे वर्ष भर हिंदी ब्लॉग जगत के माध्यम से मुद्दों की बात पूरी दृढ़ता के साथ करते रहे हैं .... वे या तो किसी समाचार पत्र में संपादक अथवा संवाददाता है अथवा ऑफिस रिपोर्टर या फिर वकील अथवा स्वतन्त्र लेखक , व्यंग्यकार और स्तंभ लेखक आदि...ये चिट्ठाकार अपने कार्यक्षेत्र के दक्ष और चर्चित हस्ती हैं , फिर भी इनका योगदान वर्ष-२००९ में हिंदी ब्लोगिंग में बढ़- चढ़कर रहा है । इसमें से कई ब्लोगर चिट्ठाजगत की सक्रियता में शीर्ष पर हैं और समाज -देश की तात्कालिक घटनाओं पर पूरी नज़र रखते हैं । ये ब्लोगर प्रशंसनीय ही नहीं श्रद्धेय भी हैं ।
पहले स्थान पर है-रवीश कुमार का कस्बा,दूसरे स्थान पर हैं -पुण्य प्रसून बाजपेयी, तीसरा चिट्ठा है आलोक पुराणिक की अगड़म बगड़म, इस क्रम का चौथा चिटठा है- समाजवादी जनपरिषद,इस क्रम का पांचवा चिटठा है- मसिजीवी,इस क्रम के छठे चिट्ठाकार है- राजकुमार ग्वालानी,इस क्रम कॆ सातवें चिट्ठाकार हैं- प्रभात गोपाल झा,इस क्रम का आठवा चिट्ठा है -डा महेश परिमल का संवेदनाओं के पंख, इस क्रम के नौवें चिट्ठाकार है - सुमन यानि लोकसंघर्ष सुमन,लो क सं घ र्ष ! के अलावा इन्हें आप गंगा के करीब ….उल्टा तीर…..भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बाराबंकी…..ठेनेत्प्रेस.कॉम…..लोकसंघर्ष छाया….लोक वेब मीडिया…..हिन्दुस्तान का दर्द…..रंगकर्मी रंगकर्मी……भड़ास ब्लॉग….ब्लॉग मदद…..लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन……कबीरा खडा़ बाज़ार में…आदि पर भी देख सकते हैं । इस क्रम की दसवीं महिला चिट्ठाकार हैं -अन्नू आनंद सुश्री आनंद का हिंदी चिट्ठा है- अनसुनी आवाज,अनसुनी आवाज़ उन लोगों की आवाज़ है जो देश के दूर दराज़ के इलाकों में अपने छोटे छोटे प्रयासों के द्वारा अपने घर, परिवार समुदाय या समाज के विकास के लिए संघर्षरत हैं।
वर्ष -२००९ में श्री दीपक भारत दीप जी के द्वारा अपने ब्लॉग क्रमश: ..... दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका ...शब्दलेख सारथी .....अनंत शब्दयोग ......दीपक भारतदीप की शब्द योग पत्रिका .....दीपक बाबू कहीन .....दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका .....दीपक भारतदीप की ई पत्रिका .....दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका .....दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका ......दीपक भारतदीप की शब्द ज्ञान पत्रिका .....राजलेख की हिंदी पत्रिका ....दीपक भारत दीप की अभिव्यक्ति पत्रिका ...दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश पत्रिका .....आदि के माध्यम से पुराने चिट्ठाकारों के श्रेणी में सर्वाधिक व्यक्तिगत ब्लॉग पोस्ट लिखने का गौरव प्राप्त किया है । इसप्रकार इस चिट्ठाकार का हिंदी ब्लॉग जगत को समृद्ध करने में विशिष्ट योगदान हैं । इसी श्रेणी में दूसरे स्थान पर हैं एक ऐसी संवेदनशील महिला चिट्ठाकार , जिनकी संवेदनशीलता उनके बहुचर्चित ब्लॉग पारुल चाँद पुखराज का ...पर देखी जा सकती है । इस ब्लॉग पर पहले तो गंभीर और गहरी अभिव्यक्ति की साथ कविता प्रस्तुत की जाती थी , किन्तु अब गहरे अर्थ रखती गज़लें सुने जा सकती है । सुश्री पारुल ने शब्द और संगीत को एक साथ परोसकर हिंदी ब्लॉगजगत में नया प्रयोग कर रही हैं , जो प्रशंसनीय है ।
चलते- चलते मैं यह बता दूं कि वर्ष-२००९ में हास्य-व्यंग्य के दो चिट्ठों ने खूब धमाल मचाया पहला ब्लॉग है श्री राजीव तनेजा का हंसते रहो । आज के भाग दौर , आपा धापी और तनावपूर्ण जीवन में हास्य ही वह माध्यम बच जाता है जो जीवन में ताजगी बनाये रखता है । इस दृष्टिकोण से राजीव तनेजा का यह चिटठा वर्ष-२००९ में हास्य का बहुचर्चित चिटठा होने का गौरव हासिल किया है । दूसरा चिटठा है -के. एम. मिश्र का सुदर्शन । इसपर हास्य और व्यंग्य के माध्यम से समाज की विसंगतियों पर प्रहार किया जाता है । के .एम. मिश्र का कहना है कि व्यंग्य, साहित्य की एक गम्भीर विधा है । व्यंग्य और हास्य में बड़ा अन्तर होता है । हास्य सिर्फ हॅसाता है पर व्यंग्य कचोटता है, सोचने पर मजबूर कर देता है । व्यंग्य आहत कर देता है । सकारात्मक व्यंग्य का उद्देश्य किसी भले को परेशान करना नहीं बल्कि बुराइयों पर प्रहार करना है चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक हो । सुदर्शन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, बुराइयों, कुरीतियों, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं, बाजार, फिल्म, मीडिया, इत्यादि पर एक कटाक्ष है ।
वहीं तहजीब के शहर लखनऊ के श्री सलीम ख़ान..........स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ में अपने स्पष्टवादी दृष्टिकोण के साथ-साथ विभिन्न चिट्ठों पर अपनी तथ्यपरक टिप्पणियों के लिए लगातार चर्चा में बने रहे । डा० अमर कुमार जी ने स्वयं को चर्चा से ज्यादा चिंतन में संलग्न रखा । -रवीश कुमार जी ने महत्वपूर्ण चिट्ठों के बारे में लगातार प्रिंट मिडिया के माध्यम से अवगत कराया । श्री पुण्य प्रसून बाजपेयी अपनी राजनीतिक टिप्पणियों तथा तर्कपूर्ण वक्तव्यों के लिए लगातार चर्चा में बने रहे । हिंदी ब्लोगिंग के लिए सबसे सुखद बात यह है कि इस वर्ष हिन्दीचिट्ठों कि संख्या १५००० के आसपास पहुंची । वर्ष का सर्वाधिक सक्रीय क्षेत्र रहा मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ । वर्ष का सर्वाधिक सक्रीय शहर रहा भोपाल और रायपुर । वर्ष में सर्वाधिक पोस्ट लिखने वाले नए चिट्ठाकार रहे डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक । वर्ष में सर्वाधिक टिपण्णी करने वाले चिट्ठाकार रहे श्री श्री समीर लाल । वर्ष भर हिंदी चिट्ठों की चर्चा करने वाला चर्चित सामूहिक चिटठा रहा चिट्ठा चर्चा । सर्वाधिक समर्थकों वाला तकनीकी ब्लॉग रहा हिंदी ब्लॉग टिप्स । अबतक मुम्बईया हिंदी के स्वर फिल्मों में ही सुनाई देते थे किन्तु इस बार हिंदी ब्लॉग जगत में इसे सर्किट ने प्रस्तुत करके ख्याति अर्जित की ।
वर्ष-2009 में साहित्य-संस्कृति और कला को समर्पित अत्यधिक चिट्ठों का आगमन हुआ । चिट्ठों कि चर्चा करते हुए इस वर्ष श्री रवि रतलामी जी , श्री अनूप शुक्ल जी और मसिजीवी ज्यादा मुखर दिखे । चुनौतीपूर्ण पोस्ट लिखने में इस बार महिला चिट्ठाकार पुरुष चिट्ठाकार की तुलना में ज्यादा प्रखर रहीं । इस वर्ष मुद्दों पर आधारित कतिपय ब्लॉग से हिंदी पाठकों का परिचय हुआ । इस वर्ष फादर्स डे पर एक नया सामूहिक ब्लॉग पिताजी से भी मुखातिब हुआ हिंदी का पाठक । मुद्दों पर आधारित नए राजनीतिक चिट्ठों में सर्वाधिक अग्रणी रहा - बिगुल .......आदि । वर्ष का सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा रहा - स्लम डॉग , सलैंगिकता और मंहगाई आदि । सबसे सुखद बात तो यह रही कि विगत कई वर्षों से अग्रणी श्री श्री समर लाल जी, श्री ज्ञान दत्त पांडे जी , श्री रवि रतलामी जी , श्री अनूप शुक्ल जी , श्री शास्त्री जे सी फिलिप जी , श्री दीपक भारतदीप जी , श्री दिनेशराय द्विवेदी जी आदि अपने सम्मानित स्थान को सुरक्षित रखने में सफल रहे ।वर्ष का एक और सुखद पहलू यह रहा की चिट्ठा चर्चा ने १००० पोस्ट की सीमा रेखा पार की । कुलमिलाकर देखा जाए तो हिन्दी ब्लोगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-२००९ .
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दृष्टव्य :उपरोक्त सभी जानकारियाँ वर्ष-२००९ में परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण के अंतर्गत दी जा चुकी है , यद्यपि परिकल्पना का वार्षिक ब्लॉग विश्लेषण-२०१० आज से प्रकाशित किया जा रहा है, इसलिए वर्ष-२००९ की प्रमुख झलकिया एक साथ प्रकाशित की जा रही है , लिंक के लिए कृपया इन लिंक पर जाएँ -

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5 टिप्पणियाँ:

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