विगत तीन पोस्ट में मैंने परिचर्चा के माध्यम से कई प्रबुद्ध जनों के विचारों से आप सभी को रूबरू कराया....विषय था हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? आईये इसी क्रम में कुछ और व्यक्तियों के विचारों से हम आपको रूबरू कराते हैं-
ब्लॉगों की दुनिया धीरे-धीरे बड़ी हो रही है. अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों के प्रति जन्मते अविश्वास के बीच यह बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है. कोई भी आदमी अपनी बात बिना रोक-टोक के कह पाए, तो यह परम स्वतंत्रता की स्थिति है. परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ. यह स्वाधीनता बहुत रचनात्मक भी हो सकती है और बहुत विध्वंसक भी. रोज ही कुछ नए ब्लॉग संयोगकों से जुड़ रहे हैं. मतलब साफ है कि ज्यादा से ज्यादा लोग न केवल अपनी बात कहना चाह रहे हैं बल्कि वे यह भी चाहते हैं कि लोग उनकी बात सुने और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करें. यह प्रतिक्रिया ही आवाज को गूंज प्रदान करती है, उसे दूर तक ले जाती है. जब आवाज दूर तक जाएगी तो असर भी करेगी. पर क्या हम जो चाहते हैं वह सचमुच कर पा रहे हैं? क्या हम ऐसी आवाज उठा रहे हैं जो असर करे? और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि हमें कैसे पता चले कि हमारी बात का असर हो रहा है या नहीं ?
दरअसल निजी और सतही स्तर पर गुदगुदाने वाले प्रसंगों से हटकर हम ब्लागरों को अपने समय की समस्याओं पर केन्द्रित होने की जरूरत है. भ्रष्टाचार, गरीबी, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, सामाजिक रुढियों से उपजी दर्दनाक विसंगतियां और मनुष्यता का अवमूल्यन आज हमारे देश की ज्वलंत समस्याएं हैं. आदमी चर्चा से बाहर हो गया है, उसे केंद्र में प्रतिष्ठित करना है. सत्ता के घोड़ों की नकेल कसकर रखनी है, ताकि वे बेलगाम मनमानी दिशा में न भाग सकें.
- डॉ. सुभाष राय
(मुख्य संपादक : दैनिक जनसंदेश टाईम्स )
किसी भी आंदोलन या संस्कृति का जब जन्म होता है तो बहुत से प्रारंभिक वर्ष उसकी प्रवृत्तियाँ स्पष्ट होने में चले जाते हैं। वह एक बिंदु की तरह होता है। उसमें से एक राह निकलेगी और पंक्ति बनेगी तो वह किस दिशा में जाएगी यह कोई नहीं कह सकता। हिंदी ब्लागिंग या चिट्ठाकारिता अभी इस स्थिति से ज़रा सा ही आगे बढ़ी है। वह कदंब के फूल की तरह बिंदु से कई दिशाओं में फूट तो पड़ी है पर उसकी सुगंध जन जन में बसना बाकी है।
- पूर्णिमा वर्मन
( हिंदी पत्रिका अभिव्यक्ति/ अनुभूति की संपादक )
ब्लाग के बारे में अलग-अलग लोग अपने-अपने अनुसार धारणा बनाते हैं। पत्रकार इसे मीडिया के माध्यम के रूप में प्रचलित करना चाहते हैं और साहित्यिक रुचि के लोग इसका साहित्यिकीकरण करना चाहते हैं। मेरी समझ में ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अब यह आप पर है कि आप इसका उपयोग कैसे करते हैं। लेख, कविता, कहानी, डायरी, फोटो, वीडियो, पॉडकास्ट और अन्य तमाम तरीकों से आप ब्लाग की सहायता से अपने को अभिव्यक्त कर सकते हैं।
अभिव्यक्ति के इसी सिलसिले में ब्लाग में कबाड़ से लेकर कंचन तक तक सब कुछ मौजूद है। अगर अस्सी फ़ीसदी कचरा है तो बीस फ़ीसदी कंचन भी मौजूद है। अब यह हम पर है कि हम यहां कंचन की मात्रा कैसे बढ़ाते हैं।
- अनूप शुक्ल
( फ़ुरसतिया के नाम से चर्चित हिंदी के प्रारंभिक ब्लॉगर )
वर्तमान में इंटरनेट आम आदमी की जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है। 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी जल्दी यह लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करेगा। आम उपयोक्ता प्रायः इ मेल, गाने, वाल पेपर, आदि सर्च करता है। इसके साथ ही उसका परिचय ब्लागिंग से भी हो जाता है। ब्लागिंग की शुरूआत हुए अभी अधिक समय नहीं हुआ है। अंग्रेजी के ब्लॉग इस शताब्दी के प्रारंभ में इंटरनेट पर आ गए थे। जिन्हंे अमरीकी इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं द्वारा बनाया गया था। हिंदी ब्लागिंग की विधिवत शुरूआत हुए अभी लगभग 7 वर्ष ही हुए हैं। यूनिकोड़ की सुविधा उपलब्ध हो जाने के बाद हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग आसान हो गई है। ब्लागिंग के माध्यम से अपनी बात बिना किसी रूकावट या कांट छांट के दूसरों तक पहुंचाई जा सकती है। यह इस माध्यम का सुखद पहलू है।
- अखिलेश शुक्ल
(संपादक : कथा चक्र )
एक समय वह था जब भजन, कीर्तन और प्रवचन को साहित्य का स्थान प्राप्त था किन्तु कालान्तर में पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों ने इसका स्थान ले लिया लेकिन सन् 2003 के बाद से हिन्दी में ब्लॉगिंग होने लगी और आज यह निरन्तर तेजी के साथ फल-फूल रही है। जिससे समाज को न केवल दिशा मिलती है बल्कि इससे समाज को तकनीकी और विकास की राह भी मिलती प्रतीत होती है। हमेशा नये-नये अन्वेषण, नये-नये विषयों पर आलेख भी ब्लॉगिंग के माध्यम से हमें मिलने लगे हैं। यह तो सर्वविदित है कि ब्लॉगिंग का माध्यम इण्टरनेट ही है और इण्टरनेट न क्षेत्रीय है, न एक देशीय, यह तो सार्वभौमिक है। इसलिए इसमें जो भी साहित्य-सामग्री है उसमें विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृति की झलक दृष्टिगोचर होती है। जिससे हमें विभिन्न स्थानों, क्षेत्रों और विभिन्न देशों की संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
( सुप्रसिद्ध साहित्यकार और हिंदी के चर्चित ब्लॉगर )
आने वाले समय की चुनौतियों की बात करें तो हिंदी ब्लॉगिंग में विषयवार आधारित लेखन को लेकर ब्लॉगर्स को सजग होना होगा । ये इस लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जब हिंदी ब्लॉगिंग अपने आर्थिक पक्ष की ओर बढेगी तो फ़िर पाठक और उस ब्लॉग पर सामग्री की तलाश में आता हर कोई किसी न किसी खास विषय को तलाशता वहां पहुंचेगा । एक दूसरी महत्वपूर्ण बात जो अभी हिंदी ब्लॉगिंग में नहीं आ सकी है वो है ब्लॉगर का एक नागरिक पत्रकार की भूमिका में खुल कर नहीं आ पाना । हालांकि इसकी अपेक्षा शुरूआती दौर में ही करना उचित नहीं होगा लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग अपने तेवरों में तीखापन और एक हद तक आम आदमी का ध्यान तभी खींच सकेगी जब वहां वो खबरें , वो बातें , वो जानकारियां साझा की जाएंगी जो कहीं अन्यत्र आना लगभग नामुमकिन सा है । विकीलीक्ज़ ने रास्ता दिखा ही दिया है कि अंतर्जाल की ताकत के साथ क्या और कितना किया जा सकता है । उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी अंतर्जाल भी आने वाले कुछ वर्षों में ही सरकार , प्रशासन , मीडिया , साहित्य ..सभी क्षेत्रों में दखल देते हुए एक ऐसा बिंदु बन जाएगा जिसकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा ।
- अजय कुमार झा
( हिंदी ब्लॉगिंग के वेहद समर्पित ब्लॉगर)
................जारी है परिचर्चा मिलते हैं एक विराम के बाद
आपकी इस परिचर्चा से एक नए माहौल का निर्माण होगा और ब्लॉग को समझने में ज्यादा आसानी होगी और संवाद के नए आयाम सामने आयेंगे ....आपकी इस पहल को सलाम
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जारी रहे.
जवाब देंहटाएंये चर्चा रोचक होती जा रही है ... मज़ा आ रहा है अलग अलग विचार जान कर ...
जवाब देंहटाएंब्लागिंग पर मंथन का दौर अमिय और गरल, नीर क्षीर को पृथक भले न करे लेकिन कुछ हद तक स्पष्ट करने में अवश्य सक्षम होगा. शुक्रिया
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंsubhash ji jaise sajag blogaro ke vichar de kar aapne achchha kiyaa. purnima ji ar any logon ke vichaar bhi sochane par badhy karate hai. sabko badhai.
जवाब देंहटाएंaaj hi mauka mila aur pichle teen bhaag bhi padh aaye.. sabhi ke vichaar janannaa rochak to hai hi...blog ko kaise aage badhyaa jaye is ke bhi upaaye milenge... aabhaar.
जवाब देंहटाएंये परिचर्चा जारी रहे और ब्लोगिंग हर गांव व हर घर में पहुंचे यही कामना है.......आज की परिचर्चा के कई हस्तियों से व्यक्तिगत रूप से मिल चुका हूँ और उनके विचारों से अवगत हूँ अच्छा लगता है जब लोगों को कुछ अच्छा सोचते और करने की ओर प्रेरित होते देखता हूँ....हमारा ब्लॉग परिवार कुछ वैचारिक मतभेदों के बाबजूद बरा ही प्रभावी है...
जवाब देंहटाएंबड़े विचित्र तरीके से खुलता है आपका ब्लाग। टिप्पणी करना आसान काम नहीं है। कुछ सरल सा करें।
जवाब देंहटाएंयह विचार मंथन का दौर है। विभिन्न विचार देखने पढने को मिल रहे हैं। इस पोस्ट में अनूप जी और शास्त्री जी के विचारों से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंमीडिया वाले अपनी मीडिया मोह (खास कर प्रिंट) से बंधे हैं। उनकी लेखनी और शैली।
इस सार्वभौम ताकत को आने वाला समय नकार नहीं सकता।
.. और एक बार फिर कहूंगा कि अपनी दिशा और दशा यह स्वयं तय कर लेगी। जैसे बहता जल ... रास्ता खुद बनाता चला जाता है और नदी या सागर का रूप ले लेता है। अभी तो धारा फूटी है, बलवती होगी। धीरे-धीर नदी और अथाह सागर समान ....!
इस परिचर्चा से एक नए माहौल का निर्माण होगा,जारी रहे.
जवाब देंहटाएंअजित जी,
जवाब देंहटाएंकिस विचित्रता की बात कर रही हैं आप ? कुछ स्पष्ट करें तो ब्लॉग के टेम्पलेट में आवश्यक सुधार किया जा सके !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरवीन्द्रजी मैं आपके ब्लाग पर ब्लागप्रहरी के माध्यम से आयी थी, अग्रीगेटर नहीं होने से आपका ब्लाग मिस हो रहा था। लेकिन पहले वो विचित्र से फोर्मेट में खुला फिर दोबारा इस फोर्मेट में खुला। अब तो मैं फोलावर बन जाती हूँ जिससे समस्या नहीं रहे। आप भी ब्लागप्रहरी के माध्यम से खोलकर देखे।
जवाब देंहटाएंमैं अनूप शुक्ल जी की बात से सहमत तो हूँ।
जवाब देंहटाएं--
लेकिन यह कहना अपना नैतिक दायित्व समझता हूँ कि सिर्फ ब्लॉगिंग के बारे में ही यह क्यों कहा जा रहा है कि यहाँ 80 प्रतिशत कचरा है और 20 प्रतिशत कंचन है!
यह बात तो सभी जगह लागू होती है। जैसे कमल कीचड़ में खिलता है और तालाब में कीचड़ की मात्रा अधिक होती है मगर सबका ध्यान तो कमाल की ओर ही जाता है।
पत्र-पत्रिकाओ और पुस्तकों में छपे सारे साहित्य को भी तो सत्-साहित्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती।
वहाँ भी तो 80 प्रतिशत कचरा ही मिलेगा। सिर्फ 20 प्रतिशत ही तो कंचन होगा। आवश्यकता जौहरी वाली पारखी नजर की है।
ब्सॉग पर लगी सामग्री अजर-और अमर है। जिसकी जैसी रुचि होगी वो अपने जायके के अनुसार वैसा व्यंजन खोज ही लेगा।
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आप उपयोगी शृंखला का प्रकाशन कर रहे हैं।
शुभकामनाओं सहित-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक", खटीमा (उत्तराखण्ड)
उपयोगी शृंखला
जवाब देंहटाएंजान रहे हैं, कि खुद ब्लागर क्या सोचते हैं ब्लागरी के बारे में।
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लागिंग के पुरोधा ही जब इस विधा के बारे में बतियायें तो क्या कहना !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लग रहा है सबके विचार जानना.
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
बेहद सटीक परिचर्चा चल रही है ... जारी रहिये ... शुभकामनाएं और बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंbahut hi behtreen pryaas hai...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपके विचार जानकर ..
जवाब देंहटाएंvishay ki upayogita hamare upar nirbhar karti hai. achchhi paricharcha hai jisase ye bat bade logon ke dvara spasht ho rahi hai ki kis disha men blogging ko jana chahie aur vishay ka chunav kaisa ho?
जवाब देंहटाएंआप के श्रम का तो कायल हूं ही अब तो आपकी चिट्ठाकारिता के लिये प्रतिबद्धता ने मोहित कर लिया. सारे आपका श्रम,प्रतिबद्धता एवम दौनों कड़ी में आये विचार भविष्य का "फ़लदार अखरोट का पेड़" है जिसे आप लगा रहें हैं.
जवाब देंहटाएंरविंद्र भाई ,
जवाब देंहटाएंबहुत जरूरी है कि ब्लॉगिंग के साथ साथ उसकी पडताल भी चलती रहे और खुद ब्लॉगर भी इसमें अपनी सहभागिता और विचार बांटते रहें । सारी श्रंखलाओं को पढ रहा हूं और सहेज भी रहा हूं । सभी के विचारों को जानना सुखद लग रहा है । ब्लॉगिंग अपेक्षित रूप से बहुत तीव्र गति से परवान चढ रही है अभी तो बहुत कुछ , बहुत कुछ ...बहुत सारा कुछ आना बांकी है । रविंद्र भाई आपके श्रम को सलाम । शुभकामनाएं
उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी अंतर्जाल भी आने वाले कुछ वर्षों में ही सरकार , प्रशासन , मीडिया , साहित्य ..सभी क्षेत्रों में दखल देते हुए एक ऐसा बिंदु बन जाएगा जिसकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा ।
जवाब देंहटाएं---अर्थात मीडिया/पत्रकारिता के सारे अवगुण इसमें भी आजायेंगे---
सभी विद्वानों के विचार पढना अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !
achhi srinkhla ki suruat.....intzar rahta hai........anubhavi evam shresht logon ke vichar jan-ne ka....
जवाब देंहटाएं@ मैं अनूप शुक्ल जी की बात से सहमत तो हूँ।
lekin........ke andar jo baat apne kahi......hum sat-pratishat mante hain......lekin dadda yahan baat hi
ho rahi hai.........hindi blogging pe apke vichar ke roop me.....to nisandeh unke comment sahi sandarbh me hi hain.........kashma dadda...
pranam.
नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंयदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
जवाब देंहटाएंआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये... ध्यान रखें धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले दूर ही रहे,
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
इस ब्लॉग के लेखक बनने के लिए. हमें इ-मेल करें.
हमारा पता है.... hindukiawaz@gmail.com
समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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