उनके ब्लॉग पर विचरण कर ही रहा था, कि बगल में खड़े
बसंत आर्य ने ज़ोर का
ठहाका लगा और कहा कि आज के नीरस भरे माहौल में जब हंसने के लिए कोई कोना बचा ही नही तो ऐसे में मेरा
ठहाका कुछ ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। आज जब बाजार हमारे घर में घुस गया है और हर एक चीज सिर्फ मुनाफ़े के नजरिये से देखी जाती है वैसे में यह ब्लॉग एक सुखद बयार का झोंका है। ब्लॉग पर विचरण के दौरान बसंत आर्य ने बिग बी अमिताभ बच्चन पर छींटाकशी करते हुए गुदगुदाया, कि "नई बहू जब घर में आई गये पिता को भूल, ऐश्वर्या के नाम से खोला बिग बी ने स्कूल, हरिवंश राय की याद न आई नाहीं तेजीजी की, कजरारे के आगे अब मधुशाला हो गई फीकी....।" हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गए।
जब थोड़ा सामान्य हुआ तो सामने एक ऐसे प्रतिभाशाली व्यंग्यकार
सतीश पंचम से मुखातिब हुआ, जिनका कहना है, कि "अच्छा लगता है मुझे,
कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना,
ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना।
इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू ,
उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें।
अच्छा लगता है मुझे।
आम का पना,
बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके,
मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक ,
अभी-अभी उपलों की आग में से निकले,
चुचके भूने आलूओं को छीलकर
हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना,
अच्छा लगता है मुझे
केले को लपेट कर रोटी संग खाना,
या फिर गुड से रोटी चबाना।
भुट्टे पर नमक- नींबू रगड कर,
राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना।
अच्छा लगता है मुझे।
लोग तो कहते हैं कि किसी को जानना हो अगर
उसके खाने की आदतों को देखो,
पर अफसोस...
मायानगरी ने मेरी सारी आदतें
'शौक-ए-लज़्ज़त' में बदल डाली हैं।" इनका ब्लॉग है:
सफ़ेद घर। ठेठ गंवई अंदाज़ में गाँव घर की बात करने में इन्हें महारत हासिल है। यदि आप सृजन का सच्चा सुख भोगना चाहते हैं तो इस ब्लॉग पर अवश्य विचरण करें।
नवीं मुम्बई से खपोली की ओर बढ़ा तो एक गंभीर और यशस्वी ब्लॉगर से मुलाक़ात हुई। हालांकि मैं उनके ब्लॉग
घुघूतीबासूती से पूर्व परिचित रहा हूँ। स्त्री विमर्श पर उनके कुछ लेख ऐसे हैं कि पढ़ते ही व्यक्ति भावनाओं के गहरे समंदर में खोने को मजबूर हो जाता है। घुघुती कहती हैं, कि "हम उस देश के वासी हैं......
१. जहाँ स्त्री जीवित जलाई जाती है।
२. जहाँ स्त्री गर्भ में मारी जाती है।
३. जहाँ स्त्रियों की ऑनर किलिंग की जाती है।
४. जहाँ स्त्री पर तेजाब डाला जाता है।
५. जहाँ स्त्री की तस्करी की जाती है।
मेरा भारत महान, इन्डिया शाइनिंग, ऊँची विकास दर और न जाने क्या क्या कहते हम थकते नहीं हैं। किन्तु थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की कानूनी समाचार सेवा ट्रस्ट लॉ ने जो सर्वे करवाया उसके अनुसार महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश हैं...
१. अफगानिस्तान
२. कोन्गो
३. पाकिस्तान
४. भारत
५. सोमालिया, यानि महिलाओं के लिए चौथा सबसे खतरनाक देश भारत।"
इस ब्लॉग से नज़र हटाने की इच्छा तो हो नहीं रही थी, किन्तु आगे बढ़ना जो था, इसलिए सोचा कि चलो चलते हैं गज़लों की दुनिया में जहां कशिश भी हो, नज़ाकत भी, नफासत भी और तमद्दुन भी। सोच ही रहा था कि
नीरज गोस्वामी जी का मुसकुराता चेहरा सामने आ गया।
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति वाले नीरज जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद अब मुंबई में हैं। वे फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत हैं और लेखन स्वान्त सुखाय के लिए करते हैं। इनका ब्लॉग है
नीरज ।
नीरज कहते हैं कि "आज के दौर में ग़ज़ल लेखन में बढ़ोतरी तो जरूर हुई है पर "तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो" जैसा खूबसूरत मिसरा पढ़ने को नहीं मिलता। ये कमाल ही रिवायती शायरी को आज तक ज़िंदा रखे हुए है। वक्त के साथ साथ इंसान की मसरूफियत भी बढ़ गयी है। आज रोटी कपडा और मकान के लिए की जाने वाली मशक्कत शायर को मेहबूबा की जुल्फों की तरफ़ देखने तक की इज़ाज़त नहीं देती सुलझाना तो दूर की बात है। शायर अपने वक्त का नुमाइन्दा होता है इसीलिए हमें आज की शायरी में इंसान पर हो रहे जुल्म, उसकी परेशानियां, टूटते रिश्तों और उनके कारण पैदा हुआ अकेलेपन, खुदगर्ज़ी आदि की दास्तान गुंथी मिलती है।" उनकी गजल की कुछ पंक्तियाँ देखिये:
"रखोगे बात दिल की जब तुम जुबाँ पे लाकर
जीना नहीं पड़ेगा फ़िर यार मुहं छुपाकर
ज़ज्बात के ये कागज़ यूँ न खुले में रखना
आंधी ये हकीकत की ले जायेगी उड़ा कर। "
गज़लों से ताज़गी लेने के बाद मैं पहुंचा बोरिवली का संजय गांधी नेशनल पार्क, जहां मुलाक़ात हुई विवेक रस्तोगी से। जैसी मुंबई की प्रकृति वैसा ब्लॉग
कल्प तरु। विवेक कहते हैं, कि "लोग कहते हैं कि खराब समय चल रहा है, और वाकई कई बार हम भी महसूस करते हैं कि उस कालखंड में व्यक्ति कुछ भी करे, वह उसके लिये खराब ही होती है, तो इस समय को को भुगतना व्यक्ति की नियती है या ज्योतिष के किसी उपाय से इस खराब समय का प्रभाव कम या खत्म किया जा सकता है?" अपने ब्लॉग पर विवेक कभी स्वास्थ्य बीमा, व्यक्तिगत दुर्घटना की जानकारी देते दिखाई देते हैं तो कभी बित्तीय प्रबंधन पर खुलकर बोलते हुये। आर्थिक राजधानी में आर्थिक विषयों पर ब्लॉग लेखन का अपना एक अलग मजा जो विवेक पूर्णता के साथ निर्वाह करते नज़र आते हैं। विवेक का लेखन जादूई है और कुछ ब्लॉग पोस्ट तो सीधे असर डालने में समर्थ है, जैसे: टर्म इंश्योरेंस क्या है, जीवन बीमा को समझिये – कुछ सवाल खुद से पूछिये और खुद को जबाब दीजिये… आदि।
मुंबई की बात हो और
विमल वर्मा से न मिला जाये तो जैसे लगता है इस शहर में कुछ छूट रहा है । विमल कहते हैं कि "बचपन की सुहानी यादों की खुमारी अभी भी टूटी नही है.. जवानी की सतरंगी छाँह आज़मगढ़, इलाहाबाद,बलिया और दिल्ली मे.. फिलहाल 20 वर्षों से मुम्बई मे.. मनोरंजन चैनल के साथ रोजी-रोटी का नाता......।" इनका ब्लॉग है:
ठुमरी। इस ब्लॉग पर आप जहां अपनी मिट्टी की सोंधी खुशबू महसूस करेंगे, वहीं दादरा और ठुमरी की थाप। कभी गज़लें तो कभी नाटककार बादल सरकार के जन्मदिन के बहाने....कुछ यादें। अपने आप में नायाब है यह ब्लॉग, लेकिन ब्लॉगर के लिए तो मानसिक आहार है यह ब्लॉग!
विमल वर्मा के पड़ोस में मुलाक़ात हो गई युनूस खान से, जिनका ब्लॉग है
रेडियोवाणी। कहते हैं हम तो आवाज़ हैं, दीवारों से छन जाते हैं। आवाज़ में गजब की कशिश और प्रस्तुति शानदार युनूस भाई की एक बड़ी विशेषता है। इस ब्लॉग पर आपको कहीं सुनेंगे पंडित छन्नूलाल मिश्रा को तो कहीं मजरूह साब के गीतों को। शास्त्रीय हो या पश्चिमी, इसपर आप अपनी पसंद का कोई भी गाना ढूंढ सकते हैं।
आगे बढ़ा तो मुलाक़ात हो गई
अनूप सेठी से । मुंबई जैसे भाग-दौर वाले शहर में विशुद्ध साहित्यिक हलचलों को मूर्तरूप देने वाला उनका ब्लॉग भी
अनूप सेठी ही है। साहित्यिक प्रस्तुतियों का एक अनोखा संग्रहालय है यह ब्लॉग। अपने आप में अनुपम और अद्वितीय।
मुंबई छोड़ने से पहले एक और व्यक्तित्व से मैं आपको मिलवाना चाहूँगा, नाम है डॉ मनीष कुमार मिश्रा। विभागाध्यक्ष हैं कल्याण स्थित के एम अग्रवाल कॉलेज के। इनका ब्लॉग है
हिन्दी विभाग यानि इनके कॉलेज का हिन्दी विभाग। यहाँ थोड़ी देर रुकना शुकुन देता है ब्लॉगरों को, क्योंकि यह ब्लॉग सेमीनारों का एक अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से अवगत करता है और महसूस कराता है वेब मीडिया के अनुप्रयोगों से। चलिये अब समय आ गया है मुंबई छोड़ने का और हैदराबाद की ओर प्रस्थान करने का।
अब आपको ले चलते हैं
बी॰ बी॰ सी॰ हिन्दी ब्लॉग पर जहां सुशील झा कहते हैं- "मुंबई से हैदराबाद का रास्ता क़रीब सत्रह घंटों का है और ये सत्रह घंटे भारत की वो तस्वीर दिखाते हैं जो अब तक मैं अख़बारों में कभी कभी देखता रहा था। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाक़ों से होती हुई ट्रेन कर्नाटक के रास्ते होते हुए जब आंध्र प्रदेश में प्रवेश करती है तो मिट्टी का रंग भूरे और सलेटी से काला होता चला जाता है। गर्मी बढ़ती जाती है और धूप में हाथ निकालने पर जलन का अहसास होता है। लेकिन इसी तपती गर्मी में यहां के किसान कपास, ज्वार और धान उगाते हैं। जब अनाज न पैदा हो तो मज़दूरी करते हैं और जब मज़दूरी न मिले तो आत्महत्या करने पर मज़बूर हो जाते हैं।
यात्रा के दौरान मुझे लगा मानो काली मिट्टी पर सफेद कपास और अनाज उगाने वाले इन किसानों का जीवन यहां की मिट्टी की तरह स्याह हो गया है।
मुंबई की चकाचौंध भरी दुनिया से निकला तो दिमाग में हैदराबाद का ख़्याल था और साथ ही ख़्याल था सूचना प्रौद्योगिकी के ज़रिए बने साइबराबाद का। सोचा नहीं था कि इन दोनों आधुनिक शहरों के बीच भारत की सबसे दुखद तस्वीर देख सकूंगा जिसके बारे में अब तक पढ़ा ही था। मुझे लगता था कि किसानों का दुख जानने के लिए अंदरुनी इलाक़ों में जाना पड़ता है लेकिन ऐसा नहीं है। किसी भी शहर से बाहर निकलने के बाद आंखें खुली रखें तो हमें देश के असली अन्नदाताओं की खस्ताहाल छवि बिल्कुल साफ दिख सकती है।
हैदराबाद पहुँचकर सबसे पहले जिस ब्लॉग से मुखातिब होने की इच्छा हुई वह है ऋषभदेव शर्मा का
ऋषभउवाच। यह साहित्य, सृजन और समीक्षा का एक अनूठा ब्लॉग है। यहाँ सुदूर मणिपुर में हिन्दी की झलक मिलती है तो वहीं जनसंघर्ष की पक्षधर कहानियों से रूबरू होने का अवसर भी। इस ब्लॉग पर आप दक्षिण भारत का पूरा साहित्यिक दृश्यों का अवलोकन कर सकते हैं वहीं दक्षिण भारत में हिन्दी की स्थिति की विवेचना भी। इस ब्लॉग में कहीं काव्यभाषा का चिंतन है तो कहीं काव्यभाषा का संदर्भ। इस ब्लॉग पर मैंने काफी समय व्यतीत करना चाहा किन्तु समय की प्रतिबद्धता ने रोक दिया फिर भी हिन्दी तथा तेलुगू के प्रमुख संतों की रचनाओं का अंतरसंबंध और प्रयोजन प्रेरित रचनात्मक वार्तालाप शृंखला को बिना बाँचे इस ब्लॉग से हटने का लोभ संवरण नही कर पाया।
इस ब्लॉग पर थोड़ी देर विचरण करने के बाद मैं पहुंचा डॉ रमा द्विवेदी जी के ब्लॉग
अनुभूति कलश पर। इस ब्लॉग में डॉ रमा द्विवेदी जी ने नारी-चेतना, नारी-अस्मिता और नारी-जीवन के दुःख-दर्द को युक्ति और तर्क के साथ निर्भीक और निडर होकर नारी की मातृत्त्व शक्ति को महिमा मंडित करते हुए रेखांकित किया है। बढ़ती हुयी कन्या भ्रूण हत्या के प्रति उनकी घृणित मानसिकता के लिए समाज को ही नहीं, अपने परिवार और पति को भी कठघरे में खड़ा किया है। सोच और कथ्य की दृष्टि से यह एक अनूठा कार्य है। इस ब्लॉग पर उनकी क्षणिकाएँ, हाइकु और हाइगा जैसे नए प्रयोग से रूबरू होने का मौका मिला।
दक्षिण भारत के निज़ामों का शहर हैदराबाद में चाहे
कहानियों के मन से हो या कविताओं के मन से कविता और कहानी करना और कहना कि मुझे मेरी तलाश है .मैं वक़्त के जंगलो में भटकता एक साया हूँ ,जिसे एक ऐसे बरगद की तलाश है जहाँ वो कुछ सांस ले सके..ज़िन्दगी की.......!!!! ब्लॉगर की एक दिव्य अभिव्यक्ति का अहसास करता है। ब्लॉगर विजय कुमार सपत्ति के लिये कविता उनका प्रेम है। विजय अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा हिन्दी को नेट पर स्थापित करने के अभियान में सक्रिय हैं। वे वर्तमान में हैदराबाद में अवस्थित हैं व एक कंपनी में वरिष्ठ महाप्रबंधक के पद पर कार्य कर रहे हैं।
() रवीन्द्र प्रभात