हैदराबाद छोड़ने से पूर्व मेरे मन में आया कि क्यों न सम्पत जी से भी मिल लिया जाये। सम्पत यानि सम्पत देवी मुरारका हैदराबाद में कादंबनी क्लब से जुड़ी हैं और हिन्दी लेखिका के तौर पर देश विदेश की यात्रा कर चुकी हैं। पिछले वर्ष काठमाण्डू, नेपाल में हुये परिकल्पना समारोह में वे शिरकत कर चुकी हैं । इनका ब्लॉग है बहुवचन। इस ब्लॉग पर ढेर सारे यात्रा वृतांत और साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से संबंधित रिपोर्ताज देखने को मिला।

My Photoयद्यपि मुझे यहाँ से बंगलुरु के लिए प्रस्थान करना था, किन्तु ऐसा लग रहा था जैसे इस शहर में कुछ छूट रहा है। मैं काफी परेशान था, तभी पेशानी में बल पड़े और याद आयी चंद्रमौलेश्वर प्रसाद की। इनका ब्लॉग है कलम। चन्द्र्मौलेश्वर कहते हैं कि ‘मेरी दीवानगी पर होशवाले बहस फ़रमायें’ और आयें मेरे ब्लॉग से जो कुछ भी ले जाना चाहे ले जाएँ।

हैदराबाद से बंगलुरु तक की 500 किलोमीटर की यात्रा में मुझे एक सहयात्री मिले प्रवीण पाण्डेय। जी हाँ वही प्रवीण पाण्डेय जिनका ब्लॉग न दैन्यं न पलायनम् हिन्दी के हर ब्लॉगर को निरंतर बौद्धिक व्यायाम हेतु प्रेरित करता रहता है। प्रवीणजी का मुसकुराता हुआ चेहरा क्लासिक लगता है और ब्लॉग प्रस्तुति किसी कालजयी कृति की तरह। प्रवीण कहते हैं, कि "पहली बार जब १९९३ में बंगलुरू आया था तो मन अभिभूत हो गया था, हर ओर हरा भरा, हर ओर पेड़ ही पेड़। सुदृढ़ नगरीय बससेवा होने पर भी मित्रों के साथ प्रतिदिन ६-७ किमी का स्वच्छंद पैदल चलना हो ही जाता था। अच्छा लगता था, बतियाना, गपियाना और गहरी साँसों में प्रकृति की सोंधी गंध को भर लेना। उस समय यह सेवानिवृत लोगों का प्रतिष्ठित आधार बन चुका था, पर आईटी के उत्थानपथ पर अपनी शैशवास्था में था। वह प्रवास भले ही ६ माह का रहा हो पर मन में बंगलुरु के प्रति एक विशिष्ट आकर्षण बना रहा। १६ वर्ष बाद जब रेलवे ने यहाँ मुझे अपनी सेवायें देने का अवसर दिया तो मन ही मन ईश्वर को मन की अतृप्त इच्छाओं को मान देने के लिये धन्यवाद दिया और सपरिवार यहाँ रहने आ गया।"

praveenpandeypp@gmail.comमुझसे रहा नाही गया, मैंने आखिर पूछ ही लिया कि यह शहर आपको इतना पसंद क्यों है तो कहने लगे-"शरीर जो झेलता है, मन भी वैसा बनने लगता है। यही कारण है कि किसी स्थान की जलवायु व्यक्तित्व का बाहरी आकार भी गढ़ती है और व्यवहार की मानसिकता भी। बंगलुरू का तापमान सम है, पर्याप्त वर्षा भी होती है यहाँ। आप आश्चर्य करेंगे कि पिछले पाँच वर्षों में मैंने एक बार भी मुझे स्वेटर नहीं पहना है, सुबह की हवाओं से बचने के लिये अधिकतम ट्रैकसूट का अपर। लोग कहते हैं कि सम तापमान शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम करता है और वातावरण में जीवाणुओं को पनपने में सहायता करता है। पूर्ववर्ती स्थानों के विषम तापमानों से तपे और सिकुड़े शरीर की सहनशीलता का प्रताप था या सौभाग्य कि शरीर ने कोई विशेष कष्ट नहीं दिया यहाँ पर। आगे शरीर का क्या होगा, यह तो भविष्य ही बतायेगा, पर इस सम तापमान ने मन पर एक विशेष प्रभाव डाला है। मन कहीं अधिक संतुलित और सम हो गया, क्रोध कम हो गया। अब दृष्टिगत असहजता विकार नहीं लाती है अपितु समाधान ढूढ़ने में तत्पर हो जाती है।समत्वता आच्छादित है, स्थितिप्रज्ञता की छिटकी सुगन्ध दे गया बंगलुरू।"

कहते-कहते अचानक गंभीर हो गए प्रवीण और कहने लगे कि-"अच्छी राजधानी बनने के जीतोड़ प्रयास में यह नगर अपनी मौलिकता खो बैठा है। एक स्वच्छंदता का भाव जो दो दशक पहले यहाँ की सोंधी हवा में मुझे मिला था, उसका स्थान कॉन्क्रीट मिश्रित गुरुत्व और रूक्षता ने ले लिया है। ठीक वैसा ही कुछ परिवर्तन मेरे व्यवहार में भी हुआ। बचपन की स्वच्छंदता और युवावस्था की ऊर्जा के स्थान पर व्यवहार में गृहस्वामी और बड़े अधिकारी का गांभीर्य आ गया। मुझे जब भी स्मृतियों का बंगलुरू ढूढ़ना होता था तो किसी हरे भरे बड़े पेड़ की छाँह निहारने लगता, उसकी छाँह में मुझे मेरा बचपन भी दिख जाता। नित विकास और विस्तार करता बंगलुरू मुझे अपना सा लगता, स्मृतियों से जूझता, फिर भी आगे बढ़ता, सबको स्वयं में समाहित करने के लिये, सागर सा विशाल और खारा।"

ब्लॉगरीय  आत्मीयता की जब बात चली तो उन्होने कहा, कि "बहुत से ऐसे ब्लॉगर हैं जिनसे अभी तक भेंट तो नहीं हुयी है पर मन का यह पूर्ण विश्वास है कि उन्हें हम कई वर्षों से जानते हैं। उनकी पोस्टें, हमारी टिप्पणियाँ, हमारी पोस्टें, उनकी टिप्पणियाँ, सतत वार्तालाप, विचारों के समतल पर, बीच के सारे पट खुलते हुये धीरे धीरे, संकोच के बंधन टूटते हुये धीरे धीरे। इतना कुछ घट चुका होता है प्रथम भेंट के पहले कि प्रथम भेंट प्रथम लगती ही नहीं है।"

ब्लॉग को नशा मानते हैं प्रवीण जी, कहते हैं कि "हिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो, पर विचारों का सतत प्रवाह, घटनाओं को देखने का अलग दृष्टिकोण, नये अनछुये विषय, भावों के कोमल धरातल और व्यक्तित्वों के विशेष पक्ष, क्या किसी लाभ से कम है? नित बैठता हूँ ब्लॉग-साधना में और कुछ पाकर ही बाहर आता हूँ, हर बार।"

उनसे गपियाते हुये मैं कैसे 500 किलोमीटर की यात्रा तय कर गया मुझे पता ही नही चला। बंगलुरु पहुँचने पर जब मैंने बंगलुरु के ब्लॉगरों की सुध ली तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना ही नही रहा कि इस शहर में हिन्दी, अँग्रेजी सहित अन्य सभी ब्लॉगरों को मिलाकर ब्लॉगरों की संख्या साढ़े चार हजार के आसपास है। अँग्रेजी की ब्लॉगर प्रिया सचान कहती हैं, कि जहां जिस मुहल्ले में जाओ सात-आठ ब्लॉगर तो मिल ही जाएँगे। इंडी ब्लॉगर के अनुसार 4 हजार 4 सौ इक्यासी ब्लॉग हैं इस शहर में।


खैर छोड़िए आपको एक दिलचस्प बात बताता हूँ, कि बंगलुरु की एक ब्लॉगर हैं पूजा उपाध्याय। इनका ब्लॉग है लहरें। प्रेममय अनुभूतियों को एक आधुनिक लड़की कैसे बहाती है, कैसे उनमें बहती है जैसे कि एक चिड़िया मुक्त आकाश में उड़ती है! बिलकुल उन्मुक्त। इनकी पोस्टें अद्भुत होती हैं। मन के गीले कैनवास पर इश्क रंग चढ़ाने में माहिर पूजा की भावभिव्यक्ति सचमुच लाजबाब है।

My Photoपूजा की तरह ही इस शहर में एक ब्लॉगर अभी निवास करते हैं, जिनके ब्लॉग हैं -एहसास प्यार का.., मेरी बातें और कार की बात। अभी कहते हैं कि बस कुछ सपने के पीछे भाग रहा हूँ, देखता हूँ कब पूरे होते हैं वो...होते भी हैं या नहीं! यह मत पूछिएगा कि इनका सपना क्या है? क्योंकि ये बात ये किसी को बताते ही नहीं। हम दुआ करेंगे कि उनका सपना जल्द पूरा हो।

अभी के ब्लॉग के अवलोकन के पश्चात मैं पहुंचा अपने होने की सार्थकता की तलाश में दर-बदर एक ब्लॉगर साहित्यकार के पास जो गुल्‍लक, यायावरी और गुलमोहर के माध्‍यम से समय से मुठभेड़ जारी रखे हुये है। नाम है राजेश उत्साही और उनके ब्लॉग है- गुलमोहर, गुल्‍लक और यायावरी

मैंअगले ब्लॉगर हैं पीडी। पीडी बोले तो प्रशांत प्रियदर्शी। पहले चेन्नई में रहते थे अब बंगलुरु में विराजते हैं। इनका ब्लॉग मेरी छोटी सी दुनिया है, जिसमें एक ओर जहां पारिवारिक ख़ुशी बेसुमार दिखती है वहीं सपनों की आँखों में अनुभव की गहराई। ब्लॉग पर पारिवारिक जीवन के तमाम किस्से हैं इस वैरागी ब्लॉगर के। प्रशान्त ने अपने मम्मी-पापा को याद करते हुये तमाम पोस्टें लिखीं हैं। अपनी दो बजिया वैराग्य सीरीज में बहुत बार उन्होंने अपने बचपन, मां-पिताजी के साथ बिताये समय को याद किया है और अपने मन की बात कही है। बचपन में दुनियावी लिहाज से कम सफ़ल रहने पर होने वाले अनुभव को साझा किया है। भाषा और विंब का ये ऐसा प्रयोग करते हैं कि पढ़ता ही रह जाये और उसे आभास ही न हो कि किस्सा खत्म हो चुकी है। जैसे इश्क़ का धीमी आंच में पकना, ज्वलंत समय में लिखना प्रेम कविता, ज़िन्दगी जैसे अलिफ़लैला के किस्से आदि।

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प्रशांत प्रियदर्शी के विचारों से मिलकर जैसे ही आगे बढ़ा बंगलुरु में मिथिला की सोंधी महक आई। अपन भाषा अपन गाम की बात  करण समस्तीपुरी से सुनकर मन विभोर हो उठा। करण कहते हैं कि न किसी की आँख का नूर हूँ, न दिल का करार हूँ ! जो किसी के काम न आ सका, वो गुस्ते गुब्बार हूँ !! 

इस विचार मिलन के बारे में करण कहते हैं, कि वह सुखद स्मृति...! वह आनंद तो अनिर्वचनीय था... अभी भी है। "चार मिले चौतिस खिले, बीस खड़े कर जोड़ । सज्जन से सज्जन मिले, पुलके साठ करोड़॥" उस संगम की पुलक की अनुभूति आज भी मेरे रोम-रोम में है।
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करण जी से विदा लेकर जैसे ही आगे बढ़ा एक व्यक्ति ने मेरा रास्ता रोका, मैंने पूछा आप कौन? उन्होने मुसकुराते हुये कहा मैं राजपूत हूँ। मैं पहले घबराया फिर सोचा कि इस शहर में मैंने किसी का बिगाड़ा ही क्या है जो कोई मुझसे पंगा लेगा। मैं सकुचाया हुआ कहा आप राजपूत हैं तो मैं क्या करूँ। उन्होने मुसकुराते हुये कहा कि मैं राजपूत बाद में हूँ किन्तु पहले एक ब्लॉगर हूँ। फिर उन्होने कहा कि दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है। इनका ब्लॉग है-भावाभिव्यक्ति। इस ब्लॉग पर आप इनकी अच्छी और सच्ची कविताओं का आनंद ले सकते हैं। 


बंगलुरु में ब्लॉगरों से मिलने का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नही ले रहा, इसलिए मैंने इस शहर में आज रात्रि विश्राम का मन बनाया है।   

21 टिप्पणियाँ:

  1. बहुत सुकूनभरी भावों की अभिव्यक्ति खूब मजा मिल रहा है पढ़कर

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  2. aapki yah yatara blog ki bhuli bisri yaadon se rubaru karwa rahi hai bahut rochkata liye hue hai yah yatara aur is yatara mein milne waale log ...shubhkaamaayen agli yatara ke liye :)

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  3. रवींद्र जी. बहुत खूब , पढ़कर इतनी मज़ा आ रहा है की क्या कहे ब्लॉग्गिंग में प्राण फूँक दिए आपकी पोस्ट्स ने .
    बधाई
    विजय

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  4. Lajawab Yatra...Bahut rochak shaili...likhte rahiye...abhi safar bahut lamba hai dost..

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  5. धीरे धीरे आपकी यात्रा के हर पड़ाव से गुजरने में आनंद आ रहा है ।शेष पड़ाव भी रुकिकर होंगे ही ।

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  6. आपकी यह दशकीय ब्लॉग यात्रा निरंतर नए आयाम स्थापित कर रही है .... पहले शब्द से पढ़ना शुरू करें तो विराम अंतिम पंक्ति पर ही लगता है .... एक बेहतर प्रस्तुति ... साथ ही चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी का जो जिक्र आपने किया यह उनकी याद को ताजा कर गया .... 12/9/2012 को रात के 10-50 बजे हमने ब्लॉग जगत के एक प्रेरक ब्लॉगर को खो दिया .... आपकी यह यात्रा जारी रहे ...... !!!!

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    1. केवल जी सही कहा आपने चंद्रमौलेश्वर जी को हम सब ने खो दिया है, किन्तु यह यात्रा दशकीय है और उनके योगदान को कैसे नकारा जा सकता है। हालांकि प्रवीण पाण्डेय भी अब बंगलुरु में नही रहते।

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    2. जी इसे हम समझ रहे हैं ... आपजी इस यात्रा के अनेक पड़ाव हैं .... बढ़ते रहे ..... चलते रहें ....!!!

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  7. रवीन्द्र जी ,हैदरावाद से बैंगलोर दूसरा पड़ाव पढ़कर बहुत अच्छा लगा कि आप हमारी नगरी में ही हैं । स्वागत है। यहाँ के अनेक ब्लोगर्स के बारे में जानकर खुशी हुई और उन्हें जानने का मौका मिला ।

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    1. अभी मैं आपके शहर में ही विश्रामरत हूँ , आगे की कड़ी में शायद आपसे भी मुलाक़ात हो।

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  8. एक नौजवान शेखर सुमन भी बंगलौर में ही हैं ...

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  9. अभी मैं आपके शहर में ही विश्रामरत हूँ , आगे की कड़ी में शायद शेखर सुमन से भी मुलाक़ात हो।

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  10. रवीन्द्र जी,आपका ब्लॉग विश्लेषण की यात्रा यूँ ही अनवरत चलती रहे और हमें ब्लागरों की जानकारी मिलती रहे। आपका विश्लेषण पढ़कर हम सब आनंदित हो रहे हैं। बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको :)

    डॉ रमा द्विवेदी

    डॉ रमा द्विवेदी

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  11. वाह बैंगलोर के ब्लॉगरों के बारे में जानकार तो बड़ा आनंद हुआ.. और किस किस शहर की यात्रा कर रहे हैं आप?

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  12. शहर दर शहर- यह यात्रा रोचक और प्रेरक है। अहर्निश चले यह यात्रा! शुभकामनायें।

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  13. हम भी हैं बंगलौर में .... डा श्याम गुप्त .

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  14. अत्यंत रोचक एवं आनंदवर्धक संस्मरणात्मक रिपोर्ताज ! आपके माध्यम से अन्य सुधी ब्लोगर्स से परिचित होने का सुअवसर मिल रहा है ! आभार आपका !

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  15. बढ़िया प्रयास सभी ब्लोगर्स से जुडने का ...!!आगे के लिए भी शुभकामनायें ...!!

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