कनाडा के भारतीय ब्लोगर समीर लाल ने उड़न तस्तरी में अपने कविताई अंदाज़ में जहाँ कुछ इस तरह वयां किया " समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त मैं शोक व्यक्त करुँ या शहीदों को सलाम करुँ या खुद पर ही इल्जाम धरुँ....!" वहीं अनंत शब्दयोग के एक पोस्ट में दीपक भारत दीप पाकिस्तान की पोल खोलते हुए कहा , कि-"पाकिस्तान का पूरा प्रशासन तंत्र अपराधियों के सहारे पर टिका है। वहां की सेना और खुफिया अधिकारियों के साथ वहां के अमीरों को दुनियां भर के आतंकियों से आर्थिक फायदे होते हैं। एक तरह से वह उनके माईबाप हैं। यही कारण है कि भारत ने तो 20 आतंकी सौंपने के लिये सात दिन का समय दिया था पर उन्होंने एक दिन में ही कह दिया कि वह उनको नहीं सौंपेंगे।
नारी ब्लॉग पर रचना के द्वारा जब एक पोस्ट के दौरान इन बक्ताव्यों कि "आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये । इस चित्र को अपने ब्लॉग पोस्ट मे डाले और साथ दे । एक दिन हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे । " के माध्यम से अभियान चलाने की बात की गयी , जिसमें रचना का सांकेतिक शोक और आक्रोश परिलक्षित हुआ ..इसी पोस्ट के अंतर्गत अपनी सारगर्भित प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए डा अमर कुमार ने कहा कि "लीक पर वो चले जिनके कदम दुर्बल और हारे है" स्वप्नदर्शी को सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ये पंक्तिया अपने इस ब्लॉग के लिये बहुत ही उपयुक्त लगती हैं यह समय विरोध दर्ज़ करने का है, न कि विलाप व शोक का.. " डा अरविन्द मिश्र ने कहा "हमारा शोक विरोध भी लिए है -कुछ लोगों के लिए हर मौका आकादमीय बहस का हो जाता है !" वहीँ दिनेश राय द्विवेदी जी के तेवर कुछ तीखे रहे , उन्होंने कहा कि "नहीं लगाएंगे यह चित्र, हम अपने ब्लाग में। यह शोक की नहीं, अपने अंदर की आग को सुलगाने का वक्त है। " द्विवेदी जी कि टिप्पणी से सहमति व्यक्त करते हुए सुरेश चिपलूनकर ने कहा कि "द्विवेदी जी से सहमत, किस बात का शोक, दिल में आग और गुस्सा भरना जरूरी है, शोक करने वाले फ़िर कभी ठीक से खड़े नहीं हो पाते, हाथोंहाथ हिसाब करने वाले ही याद रखे जाते हैं… कोई जरूरत नहीं है हमें शोक के सिम्बल की… "
इसी की प्रतिक्रया के क्रम में सारथी पर एक पोस्ट प्रकाशित की गयी जिसमें दिनेश राय द्विवेदी का कहना था कि "बम्बई में जो कुछ हुआ वह भारतमां के हर बच्चे के लिये व्यथा की बात है !राष्ट्रद्रोहियों को चुन चुन कर खतम करने का समय आ गया है!!शायद एक बार और कुछ क्रांतिकारियों को जन्म लेना पडेगा !!!शोक!शोक!शोक!
किस बात का शोक?
कि हम मजबूत न थे
कि हम सतर्क न थे
कि हम सैंकड़ों वर्ष के
अपने अनुभव के बाद भी
एक दूसरे को नीचा और
खुद को श्रेष्ठ साबित करने के
नशे में चूर थे।
कि शत्रु ने सेंध लगाई और
हमारे घरों में घुस कर उन्हें
तहस नहस कर डाला।
अब भी
हम जागें
हो जाएँ भारतीय
न हिन्दू, न मुसलमां
न ईसाई
मजबूत बनें
सतर्क रहें
कि कोई
हमारी ओर
आँख न तरेरे।"
वहीं ज्ञान दत्त पाण्डेय का मानसिक हलचल में श्रीमती रीता पाण्डेय जी कहती हैं की "टेलीवीजन के सामने बैठी थी। चैनल वाले बता रहे थे कि लोगों की भीड़ सड़कों पर उमड़ आई है। लोग गुस्से में हैं। लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं। चैनल वाले उनसे कुछ न कुछ पूछ रहे थे। उनसे एक सवाल मुझे भी पूछने का मन हुआ – भैया तुम लोगों में से कितने लोग घर से निकल कर घायलों का हालचाल पूछने को गये थे? "
कविताई अंदाज़ में अपनी भावनाओं को कुछ कठोर शब्दों में वयां किया कवि योगेन्द्र मौदगिल ने कुछ इस प्रकार "बच्चा -बच्चा आज जगह ले अपने स्वाभिमान को , उठो हिंद के बियर सपूतों , पहचानो पहचान को,हिंसा से ही ध्वस्त करो , हिंसा की इस दूकान को , रणचंडी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को ...!" वहीं निनाद गाथा में अभिनव कहा , कि "किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई....!"हिन्दी ब्लोगिंग की देन में एक पोस्ट के दौरान रचना कहा , कि-"हर मरने वालाकिसी न किसी करकुछ न कुछ जरुर थाइस देश कर था या उस देश का थापर आम इंसान थाशीश उसके लिये भी झुकाओयाद उसको भी करोहादसा और घटनामत उसकी मौत को बनाओ...!"विचार-मंथन—एक नये युग का शंखनाद में सौरभ कहा , कि-"कुरुक्षेत्र की रणभूमि के बीच खड़े होकर तो सिर्फ अर्जुन ने शोक किया था, पर आज देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मैदान के बीचो-बीच अकेला खड़ा हुआ हूँ—नितांत अकेला, शोकाकुल और ग़ुस्से से भरपूर। मेरे परिवार के 130 से ज्यादा सदस्य आज नहीं रहे. जी हाँ, ठीक सुना आपने, मेरे परिवार के सदस्य नहीं रहे. मौत हुई है मेरे घर में और मेरे परिवार को मारने वाले मेरे घर के सामने है, हँसते हुए, ठहाके लगाते हुए और अपनी कामयाबी का जश्न बनाते हुए. और मैं.... !" एक आम आदमी यानी ऐ कॉमन मन ने बहुत ही सुंदर प्रश्न को उठाया , कि "कोई न कोई तो सांठ-गाँठ है इन मुस्लिम नेताओं, धार्मिक गुरुओं तथा धर्मनिरपेक्षियों (सूडो) के बीच....!"मेरी ख़बर में ॐ प्रकाश अगरवाल ने कहा , कि "हमारे पढ़े-लिखे वोटर पप्पुओं के कारण फटीचर किस्म के नेता चुने जा रहे हैं .....!"
कुछ अनकही में श्रुति ने कहा , कि - "कहाँ है राज ठाकरे । मुंबई जल रही है , जाहिर है नेताओं की कमीज पर अब दाग काफी गहरे हो चुके हैं । " वहीं इयता पर कुछ अलग स्वर देखने को मिला , मगर सन्दर्भ था मुंबई का हमला हीं जिसमें उन्होंने कहा कि "इस दौरान शराब की बिक्री में ७० फीसदी की कमी आयी । मयखाने खाली पड़े थे और शराबी डर के भाग लिए थे । नरीमन पॉइंट पर दफ्तर बंद है । किनारे पर टकराती सागर की लहरों के पास प्रेमी जोड़े नही हैं । सागर का किनारा वीरान हो गया है । बेस्ट की बसों में कोई भीड़ नही है ...!"
इस सब से कुछ अलग हटकर दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है पर मुंबई धमाकों में शहीद हुए जवानों की तसवीरें पेश की गयी , जो अपने आप में अनूठा था । वहीं हिन्दी ब्लॉग टिप्स पर ताज होटल का विडियो लगाया गया, जहाँ ताज की पुरानी तसवीरें देखी जा सकती थी ।
...............अभी जारी है ...........
nice
जवाब देंहटाएंब्लाग इतिहास की जानकारी आपके माध्यम से प्राप्त कर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआभार
इस संकलन को पढना अच्छा लग रहा है !!
जवाब देंहटाएंachha lag raha hai janna aur padhna.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी है...
जवाब देंहटाएंek nayi pahal ke liye aapakaa aabhaar
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंआप का ब्लॉग स्वस्त ही नहीं अति स्वस्त है.
जवाब देंहटाएंMubarak Ho
जवाब देंहटाएं"सारथी पर अपने पोस्ट के माध्यम से जे सी फ्लिप शास्त्री जी कहा , कि- "आज राष्ट्रीय स्तर पर शोक मनाने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएं# Shastri JC Philip Says:
November 28th, 2008 at 1:14 pm
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2008/11/blog-post_27.html
This campaign was initiated on this post
it was naari blog and chokher bali blog which started this campign and again while putting in the historical facts you missed in to put in the correct name
i again request you humbly to please keep the facts right because as you say you are bloging the history of bloging and distortion of facts will mean distorting history
जवाब देंहटाएंdocumenting historical events needs more authenciation and the comment should be treated in the same direction
for proof you can see the comment by mr shahstri in the post you have included
संकलन को पढना अच्छा लग रहा है
जवाब देंहटाएंये तो जमा करने लायक है
जवाब देंहटाएंवाह आभार सहित
रचना जी,
जवाब देंहटाएंआप की टिपण्णी के आधार पर आलेख में संशोधन कर दिया गया है , आशा है आप अब इससे सहमत होंगी, आपका आभार इस सुझाव के लिए !