हम बात कर रहे हैं मुम्बई हमले के बाद हिंदी ब्लॉग की भूमिका के बारे में , चलिए आगे बढ़ते हैं -
जनवरी-२००८ में हिंदी ब्लॉगजगत में एक गंभीर बहस को जन्म देने वाला ब्लॉग आया "मेरी आवाज़ " शिकागो निवासी श्री राम त्यागी के इस ब्लॉग ने बड़ा ही महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया, कि -मुंबई के कुछ ही शहीदों को सलाम क्यूं ?? इसमें उनका कहना था कि "ये बात सच है की आप सबके दिमाग में भी यही सवाल बार बार आता होगा की क्यूं हर रोज केवल चुनिन्दा पुलिस वालो को ही बार बार शहीद बताया जा रहा है, सिर्फ़ इसलिए की वो उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी थे या फिर इसलिए की वो तथाकथिस शहरी वर्ग से आते थे, क्यों महानगरीय ठप्पे वाले लोग जैसे हेमंत जी, सालसकर जी को ही हम अशोक चक्र या वीरता चक्र देने की बात कर रहे है ? क्या वो पुलिस वाले जो तीसरे विस्वयुद्ध की बंदूको से लड़ रहे थे या फिर अपने डंडे से ही कुछ कमाल दिखा रहे थे, शहीदी का तमगा नही लगा सकते ?"
..इसी विचार, इसी पृष्ठभूमि पर रंजना [रंजू भाटिया] ने अपने ब्लॉग " कुछ मेरी कलम से " पर बहुत प्यारी कविता पोस्ट की इस वर्ष, जिसे काफी लोगों ने सराहा । कविता की भूमिका में उन्होंने कहा कि -"२६ /११ को ..जो हुआ वह किसी से सहन नही हो रहा है..क्यों नही सहन हो रहा है यह ? बम ब्लास्ट तो हर दूसरे महीने में जगह जगह जहाँ तहां होते रहते हैं ..लोग भी मरते रहते हैं ,पर इस बार का होना शायद सीमा को लाँघ गया .....या जगा कर हमें एहसास करवा गया कि हम भी जिंदा है ...और यह बता गया कि हम एक हैं .अलग अलग होते हुए भी ..आज भी आँखों से मेजर संदीप .हेमंत करकरे और कई उन लोगों के चेहरे दिल पर एक घाव दे जाते हैं ..यह कुछ चेहरे हम निरंतर देख रहे हैं ..पर इतने दिनों की ख़बरों में अब धीरे धीरे बहुत कुछ सामने आया है ..वह लोग जो अपनी शाम का शायद आखिरी खाना खाने इन जगह गएँ जहाँ यह उनके लिए" लास्ट सपर "बन गया ...वह मासूम लोग जो स्टेशन से अपने घर या कहीं जाने को निकले थे पर वह उनका आखिरी सफर बन गया ..उनका नाम कहीं दर्ज नही हुआ है .... !" अर्थात-
"एक लौ मोमबत्ती की
उन के नाम भी .....
जिन्होंने..
अपने किए विस्फोटों से
अनजाने में ही सही
पर हमको ...
एक होने का मतलब बतलाया
एक लौ मोमबत्ती की..
उन लाशों के नाम....
जिनका आंकडा कहीं दर्ज़ नही हुआ
और न लिया गया उनका नाम
किसी शहादत में....
और ................... "
मुंबई हमलों से संवंधित पोस्ट के माध्यम से वर्ष के आखरी चरणों में एक महिला ब्लोगर माला के द्वारा विषय परक ब्लॉग लाया गया , जिसका नाम हैमेरा भारत महान जसके पहले पोस्ट में माला कहती है कि -"हमारी व्यापक प्रगति का आधार स्तम्भ है हमारी मुंबई । हमेशा से ही हमारी प्रगतिहमारे पड़ोसियों के लिए ईर्ष्या का विषय रहा है । उन्होंने सोचा क्यों न इनकी आर्थिक स्थिति को कमजोड कर दिया जाए , मगर पूरे विश्व में हमारी ताकत की एक अलग पहचान है , क्योंकि हमारा भारत महान है । "
चलिए अब मुंबई हमलों से उबरकर आगे बढ़ते हैं और नजर दौडाते हैं भारतीय संस्कृति की आत्मा यानी लोकरंग की तरफ़ । कहा गया है, कि लोकरंग भारतीय संस्कृति की आत्मा है , जिससे मिली है हमारे देश को वैश्विक सांस्कृतिक पहचान । ऐसा ही एक ब्लॉग है लोकरंग जो पूरे वर्ष तक लगातार अपनी महान विरासत को बचाता - संभालता रहा । यह ब्लॉग लोकरंग की एक ऐसी छोटी सी दुनिया से हमें परिचय कराता रहा, जिसे जानने-परखने के बाद यकीं मानिए मेरे होठों से फूट पड़े ये शब्द, कि " वाह! क्या ब्लॉग है .......!"
वर्ष-२००८ में इस ब्लॉग में जो कुछ भी प्रस्तुत किया गया , वह हमारी लोक संस्कृति को आयामित कराने के लिए काफी है । चाहे झारखंड और पश्चिम बंगाल के बौर्डर से लगाने वाले जिला दुमका के मलूटी गाँव की चर्चा रही हो अथवा उडीसा के आदिवासी गाँवों की या फ़िर उत्तर भारत के ख़ास प्रचलन डोमकछ की ....सभी कुछ बेहद उम्दा दिखा इस ब्लॉग में ।
कहा गया है, कि जीवन एक नाट्य मंच है और हम सभी उसके पात्र । इसलिए जीवन के प्रत्येक पहलूओं का मजा लेना हीं जीवन की सार्थकता है । इन्ही सब बातों को दर्शाता हुआ एक चिट्ठा सक्रिय रहा इस वर्ष - कुछ अलग सा । कहने का अभिप्राय यह है, कि लोकरंग का गंभीर विश्लेषण हो यह जरूरी नही , मजा भी लेना चाहिए ।
रायपुर के इस ब्लोगर की नज़रों से जब आप दुनिया को देखने का प्रयास करेंगे , तो यह कहने पर मजबूर हो जायेंगे कि- " सचमुच मजा ही मजा है इस ब्लोगर की प्रस्तुति में ....!"
मेरी कविता की एक पंक्ति है - " शब्द-शब्द अनमोल परिंदे, सुंदर बोली बोल परिंदे...!"शब्द ब्रह्म है , शब्द सिन्धु अथाह, शब्द नही तो जीवन नही .......आईये शब्द के एक ऐसे ही सर्जक की बात करें नाम है-अजीत बडनेकर , जिनका ब्लॉग है - शब्दों का सफर । अजीत कहते हैं कि- "शब्द की व्युत्पति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नजरिया अलग-अलग होता है । मैं भाषा विज्ञानी नही हूँ , लेकिन जब उत्पति की तलाश में निकालें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नज़र आता है । "अजीत की विनम्रता ही उनकी विशेषता है ।
शब्दों का सफर की प्रस्तुति देखकर यह महसूस होता है की अजीत के पास शब्द है और इसी शब्द के माध्यम से वह दुनिया को देखने का विनम्र प्रयास करते हैं . यही प्रयास उनके ब्लॉग को गरिमा प्रदान करता है . सचमुच यह ब्लॉग नही शब्दों का अद्भुत संग्राहालय है, असाधारण प्रभामंडल है इसका और इसमें गजब का सम्मोहन भी है ....! इस ब्लॉग ने भी कई महत्वपूर्ण पहलूओं को आयामित कर वर्ष-२००८ में खूब धमाल मचाया ।
वैसे लोकरंग को जीवंत रखते हुए वर्ष-२००८ में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने वाले चिट्ठों की श्रेणी में एक और नाम है- ठुमरी , जिसपर आने के बाद महसूस होता है की हमारे पास सचमुच एक विशाल सांस्कृतिक पहचान है और वह है गीतों की परम्परा । इसी परम्परा को जीवंत करता हुआ दिखाई देता है यह ब्लॉग। अपने आप में अद्वितीय और अनूठा ।
कहा गया है, की भारत गावों का देश है, जहाँ की दो-तिहाई आवादी आज भी गावों में निवास करते है । गाँव नही तो हमारी पहचान नही , गाँव नही तो हमारा अस्तित्व नही , क्योंकि गाँव में ही जीवंत है हमारी सभ्यता और संस्कृति का व्यापक हिस्सा । तो आईये लोकरंग- लोकसंस्कृति के बाद चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जो हमारी ग्रामीण संस्कृति का आईना है ….नाम है खेत खलियान । इस ब्लॉग ने भी वर्ष-2008 में अपने कुछ महत्वपूर्ण पोस्ट के माध्यम से अच्छी सक्रियता दिखाई ।
खेती के हर पहलू पर बारीक नज़र है यहाँ । वर्ष-२००८ में पहली बार जाब इस ब्लॉग पर मेरी नज़र पडी उतसाहितमैं काफी हो गया था , कि यार ऐसी जानकारी हिंदी ब्लॉग में । इसमें चलती- फिरती बातें नही , जो भी है खेती से जुड़े तमाम तरह के दस्तावेज।
खेत-खलियान की सैर कराता यह ब्लॉग एक ओर जहाँ खेत-खलियान की सैर कराता है , वहीं मध्यप्रदेश के किसानों की आवाज़ बनकर उभरता भी दिखाई देता है । सिर्फ़ मध्यप्रदेश ही नही इसमें मैंने पंजाब के मालवा इलाके में कीट नाशकों के दुष्प्रभाव की पोल खोलते पोस्ट भी पढ़े हैं। कुल मिलाकर यहाँ बातें “ गेंहू , धान और किसान की है , यानी पूरे हिन्दुस्तान की है…॥!”
वैसे खलियान से जुड़े हुए एक और ब्लॉग पर नज़र गयी उस वर्ष , जिसके ब्लोगर हैं कुमार धीरज ,हालांकि ब्लॉग का नाम खलियान जरूर है , मगर ब्लोगर की नज़रें खेत- खलियान पर कम , राजनीतिक गतिविधियों पर ज्यादा रही !वैसे इस ब्लॉग पर हर प्रकार के सामयिक पोस्ट देखे गए , लेखनी में गज़ब की धार देखी गयी और हर विषय पर लिखते हुए ब्लोगर ने एक गंभीर विमर्श को जन्म देने का विनम्र प्रयास किया ।
इनके ब्लॉग से गुजरते हुए सबसे पहले मेरी नज़र एक पोस्ट ओडीसा और कंधमाल के आंसू पर गयी और इस ब्लोगर की प्रतिभा के सम्मोहन में मैं आबद्ध होता चला गया ।
खेत- खलियान के बाद आईये चलते हैं बनस्पतियों की ओर ….! पूरी दृढ़ता के साथ बनस्पतियों से जुडी जानकारियों का पिटारा लिए रायपुर के पंकज अवधिया अंध विशवास के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए नज़र आये इस वर्ष । विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने वाले अवधिया का ब्लॉग है मेरी प्रतिक्रया , जिसका नारा है अंध विशवास के साथ मेरी जंग।
पंकज की जानकारियां दिलचस्प है । पढ़कर एक आम पाठक निश्चित रूप से हैरान हो जायेगा कि जंगलों में पानी, रोशनी के लिए पेड़-पौधों में कड़ी स्पर्धा होती है । मैदान जितने के लिए वे ख़ास किस्म के रसायन भी छोड़ते हैं ताकि प्रतोयोगी की बढ़त रूक जाए। वे बिमारियों के लिए पारंपरिक दबाओं का दस्तावेज भी बना रहे हैं। साईप्रस, कोदो और बहूटी मकौड़ा आदि के माध्यम से अनेक असाध्य वीमारियों पर की भी बातें करते हैं जो ब्लोगर की सबसे बड़ी विशेषता है।
सचमुच मेरी प्रतिक्रया एक ऐसा ब्लॉग है जो हमें उस दुनिया की जानकारी देता है जिसके बारे में हम अक्सर गंभीर नही होते। कृषि वैज्ञानिक पंकज अवधिया हमें अनेक खतरों से बचाते हुए दिखाई देते हैं। ख़ास बात यह है की उनका हर लेख एक किस्सा लगता है,किसी विज्ञान पत्रिका का भारी-भरकम लेख नही….अपने आप में अनूठा है यह ब्लॉग !
ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित एक और ब्लॉग पर मेरी नज़र गयी इस वर्ष नाम है बिदेसिया जो एक कम्युनिटी ब्लॉग है और इसके ब्लोगर हैं पांडे कपिल, जो भोजपुरी साहित्य के प्रखर हस्ताक्षर भी हैं, साथ ही इस समूह में शामिल हैं प्रेम प्रकाश , बी. एन. तिवारी और निराला ।
है तो इस ब्लॉग में गाँव से जुड़े तमाम पहलू मगर एक पोस्ट ने मेरा ध्यान बरबस अपनी और खिंच लिया था वह है नदिया के पार और पच्चीस साल । १९८२ में आयी थी यह फ़िल्म जिसे मैंने दर्जनों बार देखी होगी उस समय मैं बिहार के सीतामढी में रहता था और उस क्षेत्र में नदिया के पार की बहुत धूम थी , पहली बार मेरे पिताजी ने मुझसे कहा था रवीन्द्र चलो आज हम सपरिवार इस फ़िल्म को देखेंगे …..फ़िर उसके बाद अपने स्कूली छात्रो के साथ इस फ़िल्म को मैंने कई बार देखी … आज भी जब इस फ़िल्म के ऑडियो कैसेट सुनता हूँ तो गूंजा और चंदन की यादें ताजा हो आती है । ब्लोगर ने इस फ़िल्म के २५ साल पूरे होने पर गूंजा यानी साधना सिंह के वेहतरीन साक्षात्कार लिए हैं ।
बहुत कुछ है विदेसिया पर, जो क्लिक करते ही दृष्टिगोचर होने लगती है । सचमुच लोकरंग के चिट्ठों में एक आकर्षक चिट्ठा यह भी है। अगर कहा जाए की लोक संस्कृति को जीवंत रखने में विदेसिया की महत्वपूर्ण भुमिका है तो न किसी को शक होना चाहिए और न अतिशयोक्ति ही …!
वैसे एक और ब्लॉग है दालान ,नॉएडा निवासी रंजन ऋतुराज सिंह जी द्वारा मुखिया जी के नाम से लिखित चिट्ठाअपने कुछ सार्थक पोस्ट से वर्ष-२००८ में पाठकों को खूब चौंकाया । इसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह ग्रामीण परिवेश से जुडी हुयी बातों का गुलदस्ता होगा , मगर है विपरीत इसमें पूरे वर्ष भर ग्रामीण परिवेश की बातें कम देखी गयी , इधर – उधर यानी फिल्मी बातें ज्यादा देखी गयी । मुखिया जी का यह ब्लॉग अपने कई पोस्ट में गंभीर विमर्श को जन्म देता दिखाई देता है ।
वर्ष के आखरी कई पोस्ट में उनके द्वारा अमिताभ और रेखा के प्रेम संबंधों से कई भावात्मक बातों को उद्धृत करता हुआ पोस्ट महबूब कैसा हो ?कई खंडों में प्रकाशित किया गया है, जो मुझे बहुत पसंद आया …….शायद आपको भी पसंद आया हो वह आलेख और उससे जुडी तसवीरें …..कुल मिलाकर यह ब्लॉग सुंदर और गुणवत्ता से परिपूर्ण नज़र आया !
नोएडा के मुखिया जी के ब्लॉग दालान की चर्चा के बाद आईये चलते हैं बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी । वाराणसी वैसे पूर्वांचल का एक महत्वपूर्ण शहर है , जहा का परिवेश आधा ग्रामीण तो आधा शहरी है । मैं इस शहर में लगभग पाँच वर्ष मैंने भी गुजारे हैं । खैर चलिए यहाँ के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग की चर्चा करते हैं, नाम है सांई ब्लॉग । हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों का संग्राहालय है यह ब्लॉग, जो पूरी दृढ़ता के साथ आस्था और विज्ञान के सबालों के बीच लड़ता दिखाई देता है . इस सन्दर्भ में ब्लोगर का कहना है, की उन्होंने जेनेटिक्स की दुनिया की नवीनतम खोज जीनोग्राफी के जांच का फायदा उठाया है।
एक पोस्ट में ब्लोगर मंगल ग्रह पर भेजे गए फिनिक्स की कथा मिथकों के सहारे कहते हुए दिलचस्पी पैदा करते हैं . कई प्रकार के अजीबो-गरीब और कौतुहल भरी बातों से परिचय कराता हुआ यह ब्लॉग अपने आप में अनूठा है । सुंदर भी है और इसकी प्रस्तुति सारगर्भित भी ।
अपने ब्लॉग के बारे में अरविन्द मिश्रा बताते हैं, की “ डिजिटल दुनिया एक हकीकत है और यह ब्लॉग उस हकीकत की एक मिशाल है …..!” वर्ष-२००८ में यह ब्लॉग विज्ञान से जुड़े विषयों को परोसने के कारण मुख्यधारा में दिखा !
……..अभी जारी है……../
सटीक आलेख
जवाब देंहटाएंसार्थक ब्लागिंग का ज़िक्र ज़रूरी है
1. ब्लाग4वार्ता :83 लिंक्स
2. मिसफ़िट पर बेडरूम
लिंक न खुलें तो सूचना पर अंकित ब्लाग के नाम पर क्लिक कीजिये
बढ़िया.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंकितना अथक और स्तुत्य परिश्रम कर रहे हैं आप -यह एक दस्तावेज है !
जवाब देंहटाएंमिश्र जी के कथन से अक्षरशः सहमत ! साथ ही निवेदन सभी से कि अगर गलती से आपका ब्लॉग निगाह में न आ पाया हो तो रविन्द्र जी को मेल इत्यादि पर सूचित करें जिससे उनकी आप इस महान कार्य में सहायता कर सकें !
जवाब देंहटाएंरविन्द्र जी आप धन्यवाद के पात्र है इस महान कार्य के लिए !
अथक और स्तुत्य परिश्रम,मिश्र जी से सहमत !
जवाब देंहटाएंबढ़िया,धन्यवाद इस महान कार्य के लिए !
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