.........गतांक से आगे .....
वर्ष-२००८ में चिट्ठा चर्चा के ३ वर्ष पूरे हुए, यह एक सुखद पहलू रहा हिंदी ब्लोगिंग के लिए, क्योंकि जनवरी-२००५ में ज़ब इसकी शुरुआत हुई थी, तब उस समय हिन्दी ब्लॉगजगत मे गिने चुने ब्लॉगर ही हुआ करते थे। उस समय हिन्दी ब्लॉगिंग को आगे बढाने और उसका प्रचार प्रसार करने पर पूरा जोर था, इसलिए चिट्ठा चर्चा ब्लोगिंग को एक नयी दिशा देने में सफल हुआ । अनूप शुक्ल, जीतू आदि जो ब्लोगर इससे जुड़े थे कोई भी मंच और कोई भी अवसर, हिन्दी ब्लॉगिंग को प्रचारित प्रसारित करने के लिए नही छोड़ते थे। जीतू के अनुसार -"अक्सर भाई लोग अंग्रेजी ब्लॉगों पर हिन्दी मे टिप्पणियां कर आया करते थे, जिसे कुछ अंग्रेजी ब्लॉग वाले अपनी तौहीन समझकर हटा दिया करते थे, लेकिन कुछ अच्छे ब्लॉगर भी होते थे, उन टिप्पणियों को अपने ब्लॉग पर लगाए रखते थे, इस तरह से लोगों को पता चलता था कि हिन्दी में भी ब्लॉगिंग हुआ करती है।"
पुरानी यादों के बारे में जीतू कहते हैं कि -"बात शुरु हुई थी ब्लॉग मेला से। यजद ने अपने ब्लॉग पर ब्लॉग मेला आयोजित किया था, जिसमे हम लोगों ने भी शिरकत की थी। इस तरह से हम लोगों अंग्रेजी ब्लॉग वालों के साथ सब कुछ सही चल रहा था। फिर बारी आयी मैडमैन के ब्लॉग मेले की, जिसमे हम लोगों ने शिरकत की थी, वहाँ पर मैडमैन ने हिन्दी चिट्ठों की समीक्षा करने से साफ़ साफ़ मना कर दिया। ऊपर से एक जनाब, जो अपने को सत्यवीर कहते थे ने हिन्दी को एक क्षेत्रीय भाषा कह दिया और सुझाव दिया कि आप लोग अपना अलग से मंच तलाशो। बस फिर क्या था, इस पर मुझे, अतुल, देबाशीष और इंद्र अवस्थी को ताव आ गया, हम लोगों ने उनको अंग्रेजी मे ही पानी पी पी कर कोसा। काफी कहासुनी हुई, मेरे विचार से अंग्रेजी-हिन्दी ब्लॉगिंग का वो सबसे बड़ा फड्डा था। नतीजा ये हुआ कि मैडमैन ने अपनी उस पोस्ट पर कमेन्ट ही बन्द कर दी ।
उनकी नजर मे मसला वंही समाप्त हो गया, लेकिन हमारे दिलों मे एक कसक रह गयी थी। जिसका नतीजा चिट्ठा चर्चा की नीव के रुप मे सामने आया। चूंकि चिट्ठे कम थे, इसलिए मासिक चर्चा हुआ करती थी, फिर ब्लॉग बढने के साथ साथ इसको पंद्रह दिनो, सप्ताह मे और अब तो रोज (कई कई बार तो दिन मे कई कई बार) ही चिट्ठा चर्चा होती है। काफी दिनो तक चिट्ठा चर्चा, चिट्ठा विश्व के साथ जुड़ी रही, फिर चिट्ठा विश्व मे कुछ समस्याएं आयी, तब नारद का उदय हुआ, धीरे धीरे और भी एग्रीगेटर आएं। लेकिन चिट्ठा चर्चा लगातार जारी रही।"
०४ अक्तूबर २००८ को चिट्ठा चर्चा पर प्रकाशित अपने आलेख " चिट्ठाचर्चा: आज तक का सफ़र "में अनूप शुक्ल कहते हैं कि -"शुरू के दिनों में हम चर्चा एक माह में एक बार करते थे। फ़िर शायद पन्द्रह दिन में करते थे। सब मिलकर चर्चा करते थे। देबाशीष, अतुल, जीतेंद्र और मैं। आप शुरुआत के चिट्ठे देखें तो आपको हिदी ब्लाग जगत के साथ भारतीय ब्लाग जगत की तमाम बेहतरीन पोस्टें देखने को मिल जायेंगी।" इसकी पूरी कहानी आप अनूप शुक्ल की जुबानी यहाँ पढ़ सकते हैं । इस आलेख के माध्यम से अनूप शुक्ल ने कई कड़वी-मीठी यादों को संजोया है । उनके इस आलेख में हिन्दी ब्लागरी के इतिहास की एक खिड़की दिखाई दी।
वर्ष-२००८ में चिट्ठा चर्चा के ३ वर्ष पूरे हुए, यह एक सुखद पहलू रहा हिंदी ब्लोगिंग के लिए, क्योंकि जनवरी-२००५ में ज़ब इसकी शुरुआत हुई थी, तब उस समय हिन्दी ब्लॉगजगत मे गिने चुने ब्लॉगर ही हुआ करते थे। उस समय हिन्दी ब्लॉगिंग को आगे बढाने और उसका प्रचार प्रसार करने पर पूरा जोर था, इसलिए चिट्ठा चर्चा ब्लोगिंग को एक नयी दिशा देने में सफल हुआ । अनूप शुक्ल, जीतू आदि जो ब्लोगर इससे जुड़े थे कोई भी मंच और कोई भी अवसर, हिन्दी ब्लॉगिंग को प्रचारित प्रसारित करने के लिए नही छोड़ते थे। जीतू के अनुसार -"अक्सर भाई लोग अंग्रेजी ब्लॉगों पर हिन्दी मे टिप्पणियां कर आया करते थे, जिसे कुछ अंग्रेजी ब्लॉग वाले अपनी तौहीन समझकर हटा दिया करते थे, लेकिन कुछ अच्छे ब्लॉगर भी होते थे, उन टिप्पणियों को अपने ब्लॉग पर लगाए रखते थे, इस तरह से लोगों को पता चलता था कि हिन्दी में भी ब्लॉगिंग हुआ करती है।"
पुरानी यादों के बारे में जीतू कहते हैं कि -"बात शुरु हुई थी ब्लॉग मेला से। यजद ने अपने ब्लॉग पर ब्लॉग मेला आयोजित किया था, जिसमे हम लोगों ने भी शिरकत की थी। इस तरह से हम लोगों अंग्रेजी ब्लॉग वालों के साथ सब कुछ सही चल रहा था। फिर बारी आयी मैडमैन के ब्लॉग मेले की, जिसमे हम लोगों ने शिरकत की थी, वहाँ पर मैडमैन ने हिन्दी चिट्ठों की समीक्षा करने से साफ़ साफ़ मना कर दिया। ऊपर से एक जनाब, जो अपने को सत्यवीर कहते थे ने हिन्दी को एक क्षेत्रीय भाषा कह दिया और सुझाव दिया कि आप लोग अपना अलग से मंच तलाशो। बस फिर क्या था, इस पर मुझे, अतुल, देबाशीष और इंद्र अवस्थी को ताव आ गया, हम लोगों ने उनको अंग्रेजी मे ही पानी पी पी कर कोसा। काफी कहासुनी हुई, मेरे विचार से अंग्रेजी-हिन्दी ब्लॉगिंग का वो सबसे बड़ा फड्डा था। नतीजा ये हुआ कि मैडमैन ने अपनी उस पोस्ट पर कमेन्ट ही बन्द कर दी ।
उनकी नजर मे मसला वंही समाप्त हो गया, लेकिन हमारे दिलों मे एक कसक रह गयी थी। जिसका नतीजा चिट्ठा चर्चा की नीव के रुप मे सामने आया। चूंकि चिट्ठे कम थे, इसलिए मासिक चर्चा हुआ करती थी, फिर ब्लॉग बढने के साथ साथ इसको पंद्रह दिनो, सप्ताह मे और अब तो रोज (कई कई बार तो दिन मे कई कई बार) ही चिट्ठा चर्चा होती है। काफी दिनो तक चिट्ठा चर्चा, चिट्ठा विश्व के साथ जुड़ी रही, फिर चिट्ठा विश्व मे कुछ समस्याएं आयी, तब नारद का उदय हुआ, धीरे धीरे और भी एग्रीगेटर आएं। लेकिन चिट्ठा चर्चा लगातार जारी रही।"
०४ अक्तूबर २००८ को चिट्ठा चर्चा पर प्रकाशित अपने आलेख " चिट्ठाचर्चा: आज तक का सफ़र "में अनूप शुक्ल कहते हैं कि -"शुरू के दिनों में हम चर्चा एक माह में एक बार करते थे। फ़िर शायद पन्द्रह दिन में करते थे। सब मिलकर चर्चा करते थे। देबाशीष, अतुल, जीतेंद्र और मैं। आप शुरुआत के चिट्ठे देखें तो आपको हिदी ब्लाग जगत के साथ भारतीय ब्लाग जगत की तमाम बेहतरीन पोस्टें देखने को मिल जायेंगी।" इसकी पूरी कहानी आप अनूप शुक्ल की जुबानी यहाँ पढ़ सकते हैं । इस आलेख के माध्यम से अनूप शुक्ल ने कई कड़वी-मीठी यादों को संजोया है । उनके इस आलेख में हिन्दी ब्लागरी के इतिहास की एक खिड़की दिखाई दी।
इस आलेख पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी देते हुए सतीश सक्सेना ने कहाकि -"मेरा यह विश्वास है कि अच्छे लेखन को किसी सहारे की आवश्यकता नही है और किसी भी लेखन से चिटठा लेखक की मानसिकता साफ़ पता चल जाती है ! पाठकों पर छोड़ दें कि कौन कैसा लिख रहा है, आज जिस तरह नए उदीयमान लेखकों की प्रतिभा सामने आ रही है, यह एक शुभ संकेत है कि एक दूसरे पर कीचड़ फेक कर, अपने को श्रेष्ठ साबित करने में लगे, पुराने लिक्खाड़, जो बेहद घटिया लिख कर भी अपने आपको हिन्दी ब्लाग का करता धरता समझते हैं, के दिन आ गए हैं कि पाठक उन्हें दर किनारा कर दे । "
हिंदी ब्लोगिंग को प्रारंभिक दिशा देने वाले इस चिट्ठा चर्चा के बाद आईये दुनिया की भीड़ के बीच अपना वजूद तलाशता और तराशता एक आम आदमी से मिलते हैं जिसकी इंसान बनने की कोशिश जारी है..जिन्दगी के बहुत सारे उतार चढावों को देखते हुए कब बचपना छूटा और वयस्कता की देहलीज़ पर कदम रखा इन्हें पता ही नहीं चला, अंगरेजी साहित्य में प्रतिष्ठा के बाद पत्रकारिता में डिप्लोमा..फिर विधि की शिक्षा...न्यायमंदिर ..तीस हजारी में फिलहाल कार्यरत...सफ़र जारी है...लिखना , पढ़ना शौक था..कब आदत बनी पता नहीं चला..अब हालात जूनून की हद तक पहुँचते जा रहे हैं... आप समझ गए होंगे मैं किसकी बात कर रहा हूँ , जी हाँ अजय कुमार झा की, जिन्होंने वर्ष-२००७ में " झा जी कहिन" लेकर आये ।
इस ब्लॉग पर इनके द्वारा प्रारंभ से ही चुटीली चिट्ठा चर्चा की जाती रही है , यह ब्लॉग छोटी-छोटी चर्चाओं के साथ वर्ष-२००८ में पूरे एक वर्ष का सफ़र तय कर लिया है और इस पर चर्चा लगातार जारी है ।
इसके अलावा जबलपुर के महेंद्र मिश्र भी कभी-कभार अपने ब्लॉग समय चक्र पर छोटी-छोटी चिट्ठा चर्चा करते हुए नज़र आते रहे हैं ।
इसके अलावा जबलपुर के महेंद्र मिश्र भी कभी-कभार अपने ब्लॉग समय चक्र पर छोटी-छोटी चिट्ठा चर्चा करते हुए नज़र आते रहे हैं ।
इस वर्ष सारथी पर भी कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठों की व्यापक और मूल्यपरक चर्चा हुई , शास्त्री जे सी फिलिप ने चिट्ठों को कई वर्गों में अर्थात 1. विचारोत्तेजक चिट्ठे
2. विश्लेषणात्मक चिट्ठे
3. प्रेरणादायक चिट्ठे
4. संगणक-तकनीकी चिट्ठे
5. विषयकेंद्रित/विषयाधारित चिट्ठे
6. युवा तुर्कों के चिट्ठे
7. काव्य (जिन पर मुख्यतया काव्य प्रकाशित होता है)
8. स्त्रीरत्नों के चिट्ठे
9. चिट्ठे जो उभर सकते हैं
10. कम सक्रिय चिट्ठे
11. अन्य
बांटकर हिंदी के कई महत्वपूर्ण चिट्ठों यथा ज्ञान दत्त पांडे का मानसिक हलचल, दीपक बाबू कहिन , भारतीयम , परिकल्पना, महाशक्ति, सुनो भाई साधो, किसानों के लिए , शब्दों का सफ़र , साई ब्लॉग आदि की व्यापक चर्चा हुई । उनकी चर्चा पांच खण्डों की रही जिसके लिंक इसप्रकार है -
मेरी पसंद के चिट्ठे-१ मेरी पसंद के चिट्ठे-२मेरी पसंद के चिट्ठे-३ मेरी पसंद के चिट्ठे-४मेरी पसंद के चिट्ठे-५ मेरी पसंद के चिट्ठे-६
2. विश्लेषणात्मक चिट्ठे
3. प्रेरणादायक चिट्ठे
4. संगणक-तकनीकी चिट्ठे
5. विषयकेंद्रित/विषयाधारित चिट्ठे
6. युवा तुर्कों के चिट्ठे
7. काव्य (जिन पर मुख्यतया काव्य प्रकाशित होता है)
8. स्त्रीरत्नों के चिट्ठे
9. चिट्ठे जो उभर सकते हैं
10. कम सक्रिय चिट्ठे
11. अन्य
बांटकर हिंदी के कई महत्वपूर्ण चिट्ठों यथा ज्ञान दत्त पांडे का मानसिक हलचल, दीपक बाबू कहिन , भारतीयम , परिकल्पना, महाशक्ति, सुनो भाई साधो, किसानों के लिए , शब्दों का सफ़र , साई ब्लॉग आदि की व्यापक चर्चा हुई । उनकी चर्चा पांच खण्डों की रही जिसके लिंक इसप्रकार है -
मेरी पसंद के चिट्ठे-१ मेरी पसंद के चिट्ठे-२मेरी पसंद के चिट्ठे-३ मेरी पसंद के चिट्ठे-४मेरी पसंद के चिट्ठे-५ मेरी पसंद के चिट्ठे-६
हिंदी चिट्ठों की विश्लेषण श्रृंखला की शुरुआत परिकल्पना पर वर्ष-२००७ में हुई थी , वर्ष-२००८ में यह विश्लेषण परिकल्पना पर ११ भागों में प्रकाशित हुआ , जिसका लिंक इसप्रकार है -
वर्ष-२००८ : हिंदी चिट्ठा हलचल -१
वर्ष-२००८ : हिंदी चिट्ठा हलचल -१
इसके अलावा कतिपय ब्लॉग जिनकी संख्या काफी है ने भी अपने - अपने ढंग से अपने चहेते ब्लॉग का लिंक देकर उत्साह्बर्द्धन किया इस वर्ष ।
यहाँ एक ब्लॉग का जिक्र प्रासंगिक है, कि वर्ष के आखिरी महीनों में एक ब्लॉग का प्रादुर्भाव हुआ , संजय ग्रोबर के इस ब्लॉग का नाम है - संवाद घर यानी चर्चा घर । इस घर में ब्लॉग की तो चर्चा नहीं होती , किन्तु जिसकी चर्चा होती है वह कई मायनों में महत्वपूर्ण है . इस पर चर्चा होती है समसामयिक मुद्दों की , समसामयिक जरूरतों की , समाज की, समाज के ज्वलंत मुद्दों की यानी विचारों के आदान-प्रदान को चर्चा के माध्यम से गंभीर विमर्श में तब्दील करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है इस ब्लॉग ने !
........जारी है .......
आप के इस लेख को पढ़ कर लगा आज हम हिंदी में कितनी सरलता के साथ ब्लोगिंग कर रहे हैं ,
जवाब देंहटाएंऔर हमारे महान ब्लॉगर बंधुओं ने कितना अथक परिश्रम किया हिंदी ब्लॉग मंच को एक अलग पहचान दिलाने में
बहुत बहुत धन्यवाद
dabirnews.blogspot.com
अच्छा लगा ये आलेख काफी परिश्रम किया सभी ने.और हिंदी ब्लोगिंग को नए आयाम और अपना मंच दिया .परन्तु मेरे ख़याल से आज भी एक अच्छी निस्वार्थ और निष्पक्ष चर्चा की गुंजाईश है
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंओह रविन्द्र भाई , कह नहीं सकता कि आपके स्नेह और सम्मान ने तो मेरे झझियानेपन में चार चांद लगा दिए , आज तो मुझे वो सारे इल्जाम सर माथे जो कभी कभी गाहे बेगाहे चिट्ठाचर्चाकारों पर लगाए जाते रहे । सोचा था कि अब जबकि बहुत सी चिट्ठा चर्चाएं की जा रही हैं तो झा जी कहिन को दूसरी दिशा दे दूंगा , मगर आज के बाद तो आपके इस मंच से वादा है कि अब झा जी कहिन ....और हमेशा कहिते रहिन ....वादा । शुक्रिया और शुभकामनाएं ..झा जी की तरफ़ से ..
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपका जो आपने मुझे चर्चा के योग्य समझा ....
जवाब देंहटाएंमहेंद्र मिश्र, जबलपुर.
इस जानकारी से भरे आलेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा ये आलेख
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है.. लेकिन आप ने नीचे जो लिंक दिये हैं वह एक ही जगह जा रहे हैं... कृपया चेक कर लें... या फिर मेरी गलती हो सकती है...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यह आलेख पढना हम जैसे नए लोगों को काफ़ी बातें बता गया।
जवाब देंहटाएंफिर से आभार स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका ये आलेख
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी आये
www.deepti09sharma.blogspot.com
रविन्द्र प्रभात जी ,
जवाब देंहटाएंआप शांत भाव से जो कार्य कर रहे हैं यह सबके बस का नहीं है, वाकई एक इतिहास लिखने का जटिल कार्य अपने सर लिया है, जिसमे खतरे अधिक हैं ! साधारणतया ब्लॉगजगत में जिसकी चर्चा आप करेंगे, वे आपसे जुड़ते नहीं और जिन्हें आप भूल गए वे नाराज अवश्य होंगे !
ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनायें !
आपका काम सराहनीय है. वैसे भी यह प्रणामवादी युग है.
जवाब देंहटाएंआपके इस उत्तम संयोजन के लिए साधुवाद!
जवाब देंहटाएंहर दृष्टि से एक उपयोगी लेख.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
... saarthak charchaa ... prasanshaneey post !!!
जवाब देंहटाएंआज हम हिंदी में कितनी सरलता के साथ ब्लोगिंग कर रहे हैं ,
जवाब देंहटाएंऔर हमारे महान ब्लॉगर बंधुओं ने कितना अथक परिश्रम किया हिंदी ब्लॉग मंच को एक अलग पहचान दिलाने में
बहुत बहुत धन्यवाद